Book Title: Namotthunam Ek Divya Sadhna
Author(s): Divyaprabhashreeji
Publisher: Choradiya Charitable Trust

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Page 150
________________ ज्ञान, दर्शन, चारित्र्य से प्राप्त होता हैं। इस कथन के लिए मोक्षमार्ग प्रकाश नाम का स्वतंत्र ग्रंथ हैं। उत्तराध्यन सूत्र में इस मोक्षमार्ग नाम का एक स्वतंत्र अध्ययन हैं। तत्त्वार्थ सूत्र का प्रथम सूत्र हैं - सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः। श्रीमद राजचंद्रजी ने कहा हैं मूळमारग सांभळो जिननो रे, करि वृत्ति अखंड सन्मुख... ज्ञान, दर्शन, चारित्रनी शुद्धता रे, एकपणे अने अविरुद्ध...। मुक्तिमार्ग पाने के लिए पूर्व प्रयास होते हैं। एकबार मार्ग मिल जानेपर उसपर चलना और चलकर पहुंचना होता है। मुक्ति का मार्ग साधना का मार्ग है। परमात्मा ने मुक्तिमार्ग के साथ दूसरा शांतिमार्ग कहा है। शांतिमार्ग सहजमार्ग है। प्रतिक्षण इसकी अपेक्षा रहती है। शांति जीव को हर क्षण चाहिए। सारे प्रयत्न शांति के लिए किए जाते हैं। कुछ प्रयास शांतिमय दिखाई देते हैं परंतु वे अशांत भी कर सकते है। शांति को जानने के लिए समझने के लिए और पाने के लिए परम का अनुग्रह अनिवार्य है। इसीलिए संयत आत्मा को भगवान ने ग्रामानुग्राम विचरण कर - संतिमग्गंमच बूहए। वत्स ! शांतिमार्ग को संवर्धित कर। शांति के प्रवाह को सर्वत्र बहने दे। बृहद शांति में कहा हैं- शान्तिः शान्तिकरः श्रीमान शान्तिं दिसतु मे गुरु। शान्तिरेव सदा तेषाम् येषाम्शान्तिर्गृहे गृहे ॥ शांतिमार्ग की प्ररुपणा कर परमात्मा ने मार्ग का सार्वकालिक, सार्वभौमिक और सार्वत्रिक स्वरुप प्रस्तुत किया। ____मार्ग के महत्त्व को समझाने के लिए मार्ग के पांच प्रकार बताएं हैं। १. सिद्धिमग्गं २. मुत्तिमग्गं ३. निज्जाणमग्गं ४. निव्वाणमग्गं ५. सव्वदुक्खपहीणमग्गं। एक अपेक्षा से इन पांचों का अर्थ एक ही होता हैं वह है मोक्ष। परंतु यहाँ प्रस्तुत पांचों प्रकार अपना अपना शाब्दिक और व्यवहारिक अर्थ प्रस्तुत करते हैं। प्रथम हैं सिद्धिमार्ग। अर्थसिद्धि, सर्वार्थसिद्धि, परमार्थसिद्धि, पुरुषार्थसिद्धि और सिद्धासिद्धि ये पांचों सिद्धिमार्ग की विशदता दर्शाते हैं। सिद्धिमार्ग अर्थात् आत्मा की सिद्धि का मार्ग। सिद्धिमार्ग मुक्तिमार्ग की ओर प्रेरित करता हैं। क्योंकि मुक्तिमार्ग के द्वारा मुक्त अवस्था को प्राप्त करना सिद्धिमार्ग का उश्य हैं। प्रत्येक बुद्ध की कथा आपने सुनि होगी। बिना किसी गुरु, बिना किसी उपदेश सिद्धि मार्ग की सिद्धि हेतु श्रमणधर्म स्वीकार कर प्रत्येक बुद्ध सिद्ध होते हैं। कलिंगदेश के करकंडु राजा को जन्म से शरीर में सुखी खाज थी। इसलिए उनका नाम करकंडु था। करकंडु राजा स्वभाव से गोवंश प्रिय थे। उनकी गोशाला में उत्तम गाये रहा करती थी। एक दिन राजाने अपनी गोशाला में एक श्वेत और तेजस्वी बछडे को देखा। उसपर अधिक प्रेम आने के कारण उसके विशेष पालन-पोषण का आदेश दिया। बहुत वर्षों के बाद एक दिन राजा को उस बछडे की याद आयी। उसे देखने राजा गौशाला में आए। उन्होंने देखा वह बछडा तो एक कृशकाय अस्थिपंजर मात्र दयनीय दिख रहा था। उसका वय, रुप, बल, वैभव और प्रभुत्त्व सब नश्वर हो चुके थे। बैल में नश्वरता के दर्शनकर राजन विरक्त हो चुके। राज्य का त्यागकर श्रमणधर्म को अंगीकारकर अप्रतिबद्धविहारी बनकर आराधना कर प्रत्येकबुद्ध सिद्ध होकर उन्होंने सिद्धिमार्ग प्रस्तुत किया। दूसरे प्रत्येक बुद्ध पांचालदेश के कांपिल्यपुर नगर के जयवर्मा राजा हो गए। एक दिन आस्थान मंडप में बैठकर चित्रशाला की नींव खुदवाते हुए एक अद्भुत रत्नमय मुकुट निकला। उसके धारण करनेपर वे दर्शकों को 148 .

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