Book Title: Namotthunam Ek Divya Sadhna
Author(s): Divyaprabhashreeji
Publisher: Choradiya Charitable Trust

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Page 186
________________ पूर्ण धर्मोपलब्धि के कारण परमात्मा ग्रंथातीत अर्थात् निग्रंथ होते हैं। उनकी देशना जीवों की ग्रंथि खोलने में आलंबन रुप होती हैं। ग्रंथियों को खोली जाती हैं तोडी नहीं जाती । मेरे महान उपकारी गुरुमाता कईबार ऐसे संकेत देती थी। कभी कभी साधारण काम में आनेवाली डोरी उलझ जाती हैं। समय के आभाव में इसको सुलझाने के बजाय काट डालना शॉर्टकट लगता था। पर वे काँटने नहीं देते थे। वे कहते थे यदि डोरी की गाँठे नहीं सुलझा पाओगे तो जीवन की गुत्थियाँ कैसे सुलझाओगे ? और यदि उसे नहीं सुलटा पाए तो ग्रंथिभेद कर श्रेणी का आरोहण कैसे करोगे? ग्रंथिभेद की स्वाभाविकता परमात्मा का गुणधर्म हैं। अन्यों में भी ग्रंथिभेद का सामर्थ्य उत्पन्न हो ऐसा प्रवचन करते हैं। इसीलिए परमात्मा की देशना को न्याययुक्त नेतृत्त्व करनेवाली देशना माना जाता हैं। देशना के सात प्रकारो में न्याययुक्त नेतृत्त्व पाँचवा प्रकार हैं। स्वयं निग्रंथ होकर अन्य को भी निग्रंथ बनानेवाले ग्रंथातीत परमात्मा की देशना के गुणसप्तक चिंतनीय हैं। कैसे होते हैं परमात्मा के प्रवचन जानते हो - सच्चमणुत्तरं केवलियं पडिपुण्णं नेयाउयं संशुद्धं सलकत्तणं - ये सात लक्षण युक्त परमात्मा के प्रवचन होते हैं। देशना का पहला लक्षण सच्चं हैं। सच्चं अर्थात् सत्य कितना अजीब लगता हैं यह कथन । भगवान के वचन सत्य होते हैं ये कहने की बात हैं क्या ? भगवान के वचन सत्य होते हैं इसलिए हम सुनते हैं। सत्य सबको प्रिय होता हैं परंतु सत्य का प्रवर्तन दुर्लभ होता हैं। कई लोग कईबार ऐसे कहते सुनाई देते हैं कि मुझे कोई झूठ बोलता हैं तो सहन नहीं होता, मुझे झूठ से सख्त नफरत हैं। कोई झूठ बोलता हैं तो मुझे गुस्सा आता हैं। ऐसे कई कथन आपको सुनाई देते होंगे तो कभी आप खुद इसका प्रयोग करते होंगे। ऐसे हम स्वयं को सत्यप्रिय मानते हैं। वास्तव में सब ऐसा कहते हैं परंतु सत्य बहुत महान हैं। शास्त्र में कहा हैं - सच्चं खलु भगवया । सत्य ही भगवान हैं। भगवान ही सत्य है। भगवान स्वयं सत्य स्वरुप हैं। इसीलिए भगवान संसार में सत्य प्रगट कर सकते हैं। ऐसे सत्य स्वरुप होने के कारण परमात्मा अनुत्तर कहलाते हैं। स्वयं अनुत्तर होते हैं और उनकी देशना भी अनुत्तर होती हैं। अनुत्तर अर्थात् श्रेष्ठ। उत्तर अर्थात् जवाब समाधान । भगवान की अंतिम देशना जो सोलह प्रहर तक चली थी उसका नाम उत्तराध्ययन सूत्र हैं। उत्तर का अध्ययन अर्थात् उत्तराध्यन। यह ऐसा शास्त्र हैं जिसमें सारे समाधान भरे हुए हैं। कोई भी प्रश्न हो इसमें उत्तर आवश्यक हैं। उत्तर का अन्य अर्थ दूसरा भी होता हैं। जैसे उत्तरासन के पहले पूर्वासन होता है। इसीतरह उत्तरक्रिया के पहले पूर्वक्रिया होती है । मृत्यु के बाद की जानेवाली क्रिया को उत्तरक्रिया कहा जाता हैं। जीवन में की जानेवाली क्रिया पूर्वक्रिया है । विवाहादि कार्यक्रम में कंधे के उपर रखे जानेवाले वस्त्र का नाम उत्तरीय वस्त्र है। सामायिक सूत्र में एक सूत्र का नाम तस्स उत्तरीकरणेणं हैं। इसमें तस्स शब्द इर्यावहिया सूत्र का पूर्वीकरण का सूचन है । जो भी पूर्वदोष है उसका उत्तरीकरण करने स्वरुप यह विधानसूत्र है। सारे उत्तर समा जाए उसे अनुत्तर कहते है । अनुत्तर का अर्थ हैं जिसके बाद अब किसी ओर के कथन की आवश्यकता नहीं हैं। देशना के उपरांत अन्य परमवचन कोई नही होता। देशना के शब्द मंत्र माने जाते है । जो शब्द परमशब्द बन जाते हैं वे शब्द अनुत्तर हो जाते है। पुच्छिसुणं में परमात्मा के धर्म को अनुत्तर धर्म कहा गया हैं । 184

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