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निकालता रहता है। एकांत हितधर्म अर्थात् अधर्म का आगमन बंद करके उससे संबंधित निषेधात्मकता को बाहर निकालना हैं। एकांत हितधर्म को निर्जराधर्म भी कहा है।
विधर्म या अधर्म का त्याग करने के लिए सत्त्व संपन्न बनना पडता हैं। सत्त्वसंपन्न बनने के लिए स्व को समझना और पर के ममत्त्व का त्याग अनिवार्य हैं। धर्म को जानना अर्थात् स्वयं को जानना है। पर पदार्थों के प्रति पदार्थ के धर्म को जानना चाहिए। एकबार एक युवक ने किसी मॉल में एक आकर्षक पेन को देखा। उसकी किंमत जानी और उसकी अवधि पूछी। दुकानदार ने कहा लाइफ टाईम चलेगी। पढीए पेन के उपर भी लिखा हैं लाईफटाईम। युवक ने पेन खरिद लिया। तीन दिन के बाद वापस दुकानदार के पास आया उससे कहा पेन की नीब टूट गयी हैं आपने कहाँ था पेन जीवनभर चलेगी। यह तो दो दिन में ही टूट चुकी। दुकानदार ने कहा साहब ! पेन जीवनभर चलेगी ऐसा कहा था यह बात सही हैं लेकिन वह आपकी जिंदगी तक चले ऐसा नहीं कहा था परंतु पेन की अपनी जिंदगी थी ही दो दिन की और वह उसने पूरी भी करली। जड पदार्थों के गॅरंटी वॉरंटी पीर्यड होते हैं। शाश्वत पदार्थों की कभी डेट एक्सपायर नहीं होती हैं। इसीलिए परमतत्त्व ने हमें सर्वज्ञता प्राप्त होते ही पहली सभा में धम्ममाईक्खमाणे धर्म का आख्यान किया। धर्म कभी एक्सपायर नहीं होगा। तू एक्सपायर हो भी जाएगा तो देह की मृत्यु होगी। तू शाश्वत हैं धर्म शाश्वत है। तू स्वयं धर्म स्वरुप हैं मोक्ष स्वरुप हैं।
धर्म दो स्वरुप से जाना जाता हैं चर्चा और चर्या। चर्चा का धर्म विकास या वास्तविकता की ओर नहीं ले जाता हैं। चर्या अर्थात् आचरण धर्म आचरण में होना चाहिए। धर्म को जानना हैं और धेर्य पूर्वक स्वयं को देखना हैं। जानना और देखना यह चर्या हैं। धर्म अर्थात् स्वयं की शोध। प्रत्येक चर्या स्वयं की शोध में सहायभूत होनी चाहिए। धम्मदयाणं धर्म दान के द्वारा हमें स्वयं की शोध का दान देते हैं। जैसे एकबार धर्मनाथ प्रभु के समवसरण में देशना से प्रसन्न हुए इन्द्र ने परमात्मा से पूछा था प्रभु आपके इस समवसरण में देशना सुनकर मेरी तरह अनेक जीव प्रसन्न हुए होंगे। उन सभी में से सबसे पहले मोक्ष में कौन जाएगा? प्रश्न का उत्तर देते हुए प्रभुने इधर उधर भगते हुए एक चूहे की ओर इशारा करते हुए इन्द्र से कहा - महेन्द्र! इतश्ततः घूमता हुआ चुहा सबसे पहले मोक्ष में जाएगा। प्रभु के इस कथन को इन्द्र ने तो सुना परंतु साथ ही उस चूहे ने भी सुना जिसके बारे में प्रभु बात कर रहे थे।
कथन सुनते ही चूहे ने अपने अंग का आधा हिस्सा उपर कर प्रभु की ओर मुडा और टिक टिकी लगाकर प्रभु की ओर देखने लगा। उसकी आँखे सजल हो गई। समवसरण में भीतर आकर देशना सुनने का अधिकार मुझे नहीं हैं तो मोक्ष का अधिकार कैसे हो सकता है? और वह भी सबसे पहले? यह उस सभा की बात हैं जहाँ भगवान के बडे बडे उतराधिकारी और ज्ञानी महापुरुष बैठे थे। मैं तिर्यंचयोनि का नाचीज प्राणी और सबसे पहले मोक्ष में जाऊंगा? उसने हिंमत जुडाई दिमाग चलाया । सोचा यह घोषणा स्वयं भगवान कर रहे हैं मैं भले ही सत्य को नहीं जानता हूँ कि मैं मोक्ष में जाऊंगा परंतु अभी भगवान के चरणों में तो जा सकता हूँ। कूदता फांदता चूहाभाई चले यात्रापर। इन्द्र उसे देखकर सोचने लगे, लग रहा हैं यह चूहे की मोक्ष यात्रा है। एक निकट मोक्षगामी आत्मा के
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