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भगवंत मिले या नहीं, सत्संग कैसा रहा? इसकी चर्चा कम होती हैं। व्यवस्था की प्रशंसा किंवा अव्यवस्था का विवरण अधिक मिलता हैं। इसे यात्रा नहीं प्रवास कहते हैं। यात्रा में दर्शन की प्रधानता होती हैं।
एकबार सूरदास रास्तेपर से निकल रहे थे। दोनों आँखों से दिखता नहीं था। पर हरिकीर्तन करते हुए रास्तेपर से जा रहे थे। चलते चलते एकबार किसीने मजबूताइ से उनका हाथ पकडा। हाथ पकडकर रास्ता बदलकर वापस आगे बढने को प्रेरित किया। सुरदास ने पूछा कौन हो तुम ? क्यों मेरा हाथ पकडकर मेरे मार्ग का दिगदर्शन करते हो। बाजु पकडनेवाला कुछ बोला नहीं आगे मार्ग पकडाकर चला गया। सुरदास को आश्चर्य हुआ ऐसा कौन था जो मार्गदर्शन करना चाहता था और पहचान या मुलाकात नहीं चाहता था। संसार में तो ऐसा कोई होता नहीं। पहले पहचान देते हैं। बिना पहचान दिए काम करनेवाले संसार में केवलमात्र संत भगवंत ही होते हैं। यह कौन था? ऐसा कहकर उन्होंने वहाँ लकडी घुमाई तो पता लगा आगे गड्ढा था। समझ गए मार्ग में खड्ढा था। यदि मैं इसीतरह चलता रहता था तो उसमें गिर पडता था। अत: किसीने मेरा हाथ पकडकर मुझे बचा लिया। जोर से आवाज लगाई ठहरो भाई तुम कौन हो? मेरा हाथ पकडकर मुझे खड्डे में से बचा लिया। एकबार थोडा सा ठहर जाओ, मुझे आपसे मिलकर आभार मानना हैं। बहुत बिनती के बाद भी कोई प्रगट नहीं हुआ तो समझ गए कि आभार की अपेक्षा रखे बिना दूसरों को भार मुक्त करनेवाले परमपुरष होते हैं।
जगत् में तीन प्रकार के लोग होते हैं -
काम करके छीपजाते हैं वे भगवान हैं। काम करके प्रगट हो जाते हैं वे इन्सान हैं। काम किए बिना प्रगट हो जाते हैं वेशैतान हैं।
सूरदास जी सोचने लगे। कुछ बोलते नहीं हैं प्रगट होते नहीं हैं अत: स्वयं परमपुरुष ही हैं। अत: कहते हैं
हाथ छुडायके जातहो, निर्बल जाने मोय।
हृदय में से जोखसो, तोमरद कहु मैं तोय॥ हे प्रभु! आप बलवान हो अपने हाथ से मेरा हाथ पकड सके। मैं आपका हाथ नहीं पकड सका। परंतु मेरा हृदय इतना बलवान हैं आप उस में से नहीं खिसक सकते। किसी शायर ने कहा हैं -
युं तो हर दिल किसी दिल पे फिदा होता है, प्यार करने का तौर मगर जुदा होता है। " आदमी लाख सम्हलने पर भी गिरता है, झुक कर जो उसे उठा ले वही तो खुदा होता है।
कभी ऐसा भी समय था। हम सब अव्यवहार राशि में थे। जब एक जीव का मोक्ष होता हैं तब एक जीव अव्यवहार राशि में से व्यवहार राशि में आता हैं। अव्यवहार राशि अर्थात् जहाँ जन्म-मृत्यु जन्म-मृत्यु होते ही रहते हैं। विकास की कोई दिशा वहाँ नहीं मिलती हैं उसे अनादि निगोद या नित्य निगोद कहते हैं। एक जीव का मोक्ष होते ही एक जीव व्यवहार राशि में आता हैं और विकास यात्रा का प्रारंभ होता हैं। एक मुक्त आत्मा जिसने हमें व्यवहार
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