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तीन दिन से भूखी चंदनबाला के हाथ से उडद के बाकुले लेकर प्रतिदान में प्रभु ने क्या दिया ? व्याख्यान, स्तोत्र, मंत्र क्या दिया प्रभु ने कि चंदना का आमूल परिवर्तन हो गया ?बस मात्र दृष्टि दी, चक्षु दिए। दीक्षा लेकर राजभवन में वापस लौटने की भावना के साथ भगवान के समक्ष प्रगट हुए मेघ को क्या दिया प्रभु ने ? सद्बोध, सम्यक्दृष्टि।यह ऐसा बोध था कि भवांतरों का बोध हो गया। मात्र प्रभु की दृष्टि पडते ही संबोधि प्रगट हो गयी चेतना जागृत हो गयी।
मरुदेवी माता का जीव पूर्व भव में केली का वृक्ष था। साथ ही साथ एक कंटकवृक्ष था । पवन के साथ कंटक वृक्ष का स्पर्श होकर निरंतर काँटे चुभ रहे थे। इसे सहजभाव से सहन करने से निर्जरा करके उसने मरुदेवी के रुप में जन्म लिया। यहां उन्हें वर्तमान चौबीसी के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव की माता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। पुत्र के संयम ग्रहण करने के पश्चात उसके कोई समाचार नहीं मिलनेपर उनकी यादों में आँसू बहाकर आँखों का नूर खो दिया। एकबार पौत्र भरत के प्रणाम करने के लिए आते ही बहुत उलाहनाएँ दी। भरतने भूल का एहसास कर परमात्मा के विचरण का पता किया। शिघ्र ही उन्हें प्रभु के केवलज्ञान प्राप्तकर वनिता नगरी के बाहर समवसरण में पधारने के समाचार प्राप्त किए। माता मरुदेवी को तैयारकर हाथी की अंबाडीपर बिठाकर दर्शनार्थ ले चले। मरुदेवी माता दर्शन हेतु उत्सुक थी तो परमात्मा देशना हेतु आतुर थे। उसने जब परमात्मा की ओर देखा तब परमात्मा ने माता की ओर देखा। बरसो तक स्वयं की वात्सल्यभरी नजर से माता ने पुत्र की ओर देखा। अहो आश्चर्य माता ने पुत्र को चर्मचक्षु दिए तो पुत्र ने ऋण अदा करते हुए माता को अंर्तचक्षु दिए। माँ की मोहभरी दृष्टि शुभ में बदलने लगी। पुत्र ने शुद्ध दृष्टि से माँ की ओर देखा और अठारह क्रोडाक्रोडी सागरोपम वर्षतक जिस मोक्ष को किसी ने नहीं पाया था उसे मरुदेवी माता ने प्राप्त कर लिया। माँ ने पुत्र को अरिहंत बनाया और पुत्र ने माता को सिद्ध बनाया। धन्य हैं माता और धन्य हैं पुत्र। चक्खुदयाणं की ऐसी मेहरबानी हैं।
चरम नयन करी मारगजोवता कहकर आनंदघन प्रभु कहते हैं कि अनेक जन्मों से इन चर्मचक्षुओं से संसार को देखकर तू तृप्त नहीं हो पाया। अनेक भवों से संसार को देखते हुए भी न तो संसार कम हुआ न तो तुम थके भी। आँखे पाने से पूर्व अर्थात् त्रिइन्द्रिय तक आँखों को पाने के लिए आकुल व्याकुल था। आँखे मिलनेपर खुश खुश हो गया। देखता ही रहा देखता ही रहा। इन चर्मचक्षुओं से संसार को देखते ही देखते मृत्यु के बाद दो आँखे देकर स्वयं को दानेश्वरी समझनेवाला अपने जीवनकाल में अपनी दोनों आँखे परमपुरुष के चरणों में अर्पित कर दे। तेरा जन्म सफल होगा। तेरा चक्षुदान सार्थक होगा। भीतर भगवत् दर्शन होंगे। उनकी नजरों के सामने स्वार्पण का नजाराणा धर दो। नयनपथगामी को आमंत्रण दो। जो पथ पर प्रभु की प्रतीक्षा करते हैं उन्हें मार्गानुसारी कहते हैं। चक्खुदयाणं से चक्षु मिल जानेपर आँखे बदल जाती हैं। भगवान का रुप भक्त की आँखों में छलकने लगता हैं। माँ जैसे बच्चे को जन्म देती हैं अपने जैसी आँखे देती हैं। फिर भी माँ की आँखों का तेज कम नहीं होता हैं। दूसरा बच्चा होनेपर बच्चे की आँख में माँ की आँखे दिखाई देती हैं। तब भी माँ का कुछ कम नहीं होता हैं। यद्यपि माँ के लिए
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