________________
है। क्योंकि इस स्तोत्र में परमात्मा को इअ संधुओ महायस ! इस शब्द से संबोधित किए गए हैं। स्तोत्र का यह शब्द मंत्र समान है। विधिसहित जाप करने से इस भय से मुक्त हो सकते हैं। ऐसे तो यश और अपयश दोनों नामकर्म के ही प्रकार हैं। यश वृद्धि के लिए यशस्वी महापुरुषों की आराधना करनी चाहिए। आजसे हम नमोत्थुणं के साथ अभयदयाणं के पद में प्रवेश प्राप्त कर चुके हैं। रोज एक सामयिक करते समय ४८ मिनिट्स ऐसी चिंतवना करना कि मैं समस्त जीवों को अभयदान दे रहा हूँ। प्रभु धन्य हैं आपको। आपके शासन को कि मुझे ऐसा अद्भुत अवसर मिला। अनंत तीर्थंकर भगवंतों ने और अनेक गणधर भगवंतों ने जो अभयदान दिया वही अभयदान मुझे गणधर भगवंतों के अनुग्रह से इस छोटे से सूत्र से अभयदयाणं के मंत्र स्वरुप मुझे उपलब्ध हुआ । जय हो अभय की । जय हो अभयदयाणं की।
नमोत्थुणं अभयदयाणं .. नमोत्थुणं अभयदयाणं . नमोत्थुणं अभयदयाणं .
138