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राजाने कुछ समझा न हो उस मुद्रा में कहा - क्या कहा आपने? हे राजन् अभय पाओ और अभय का दान करो। मुनि की इस सर्वोत्तम भाषा को नहीं समझते हुए राजा ने पुन: कहा, महाराज! आप पहले मुझे एक वचन दो।। राजन ! हम अभयवचन के अतिरिक अन्य कोई वचन नहीं देते हैं। राजाने कहा, बस महाराज मुझे आपसे यही चाहिए। आप आज्ञा करो तो ओर कुछ पूछू । संत सदा समाधान के लिए तैयार होते हैं अत: मुनि ने पूछने की स्वीकृति दी। महाराज! क्या ये मृग आपके हैं?
हा राजन् ! ये मृग मेरे हैं। कहते कहते मुनि मृगपर प्रेम भरा हाथ फेरने लगे। जैसे माँ लाड प्रेम से बच्चे के सिर पर हाथ फेरती हैं, पीठ थपथपाती हैं। वैसे ही मुनि मृग को प्रेम करने लगे। मुनि के वात्सल्य में खोया मृग भी अपने सब दुःख भूल गया हो ऐसा वातावरण बन गया था।
सोचो मुनि ने ऐसा उत्तर क्यों दिया ? देह और आत्मा अलग है। यह देह भी मेरा नहीं है ऐसे सैद्धांतिक विचारों की मक्कमता में घरबार का महात्याग करनवाले मृग को अपने कैसे कहने लगे। कोई भी वस्तु, कोई भी व्यक्ति या किसी भी घटना को भणगार अपनी नहीं मानते हैं। इतना ही नहीं संयम के उपकरण, रजोहरण, आसन, मुहपत्ती या पात्रे आदि को भी मुनि अपने नहीं मानते हैं। यदि कोई उन्हें ऐसा पूछ कि ये रजोहरण या पात्रा आपका हैं ? तो भी मुनि ऐसा कहते हैं हा यह मेरी नेश्रायका हैं। मेरा है ऐसा नहीं कहते। नेश्राय अर्थात् सान्निध्य (मेरे पास रहनेवाला)। इतना ही नहीं परंतु शिष्य-शिष्याओं के लिए भी यह मेरी निश्राय में हैं अर्थात् मेरी आज्ञा में रहनेवाला हैं। समस्त मेरापना अर्थात् ममत्त्व से रहित रहनेवाले इन अद्भुत अणगार ने आतंकित मृग को वात्सल्य से सहलाते हुए राजा से कहा, हाँ राजन् !ये मृग मेरे हैं।
राजा ने कहा आपका कैसे ? क्या आप इसे पालते हो?
सोचो मुनि ने क्या उत्तर दिया होगा? क्या वास्तव में मुनि जनावरों को पालते हैं? यदि मृग को पालते हैं तो हमें कुत्तों को पालने में क्या दिक्कत हैं? जंगल में हमारी सुरक्षा भी करेंगे।
जो पाले जाते हैं उससे प्रेम भी होता है चाहे वे मानवीय बच्चे हो चाहे जनावर। इस रागजन्य प्रेम की कोई सीमा मर्यादा नहीं होती। कईबार तो विवेकहीनता की भी हद होती है। दिल्ली की एक घटना सुननेवाली हैं। एक घर में गोचरी के लिए गयी थी। बंगला था। दरवाजा खुला था। आगे एक हॉल था। अंदर से कुछ शब्द सुनाई दे रहे थे। जो किसी पुरुष के थे। मैं ने तुझे पहले ही कहा की मुझे वृद्धाश्रम में जाने दे तो टाईम से सात बजे चाय और नास्ता तो मिल जाएगा। तुम मुझे जबरदस्ती माला गिनने का कहती हो पर मेरा मन तो लगना चाहिए। अत्यंत भूख लगी हो तो भजन कैसे हो पाएगा। वार्तालाप सुनकर सोचने लगी अंदर कैसे प्रवेश करु? जहाँ वृद्ध इसतरह बोल रहे हो। आगे कहते हैं, पता नहीं कब उठेगे कब चाय बनाकर देंगे भगवान जाने। अभी तो वह उठेगा दूध लाएगा भी तो अपने कुत्ते को पिलाएगा। कुत्ते से भी खराब हालत बेटे ने हमारी की हैं। खाने के लिए हमेशा तरसना। खाना मांगने के
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