________________
बातें भी नहीं कर सकते हैं। पुत्र-प्रेम के पागलपन में स्वयं के जीवन के जिम्मेवारी को बच्चों को सोंप देने वाले माता पिता की दुर्दशा को देखकर आपके दिखाई देनेवाले इस भ्रमित मिथ्यासंसार के प्रति घृणा होती हैं। मुझे समझ में नहीं आ रहा कि इतना कुछ बीतने के बाद भी आपको यह संसार प्रिय कैसे लगता हैं।
इस तरह कमल प्रत्यक्ष में प्रेमरुप में और परोक्ष में प्रतीक रुप में संसार में पूजा जा रहा है। आदर-सत्कार, सुशोभन-शृंगार, स्वप्न-साक्षात्कार आदि में कमल का अपना महत्त्व रहा है। हमारे देह में कितने कमल हैं पता है आपको? नीचे से शुरु करते हुए पहले पाँव को चरण कमल कहा जाता है। उसके बाद नाभिकमल, हृदयकमल, वदनकमल, नयनकमल आदि पार्थिव देह अनेक नाम कमल से संबधित है। अपार्थिव आत्मसत्ता के लिए कमल शब्द का प्रयोग होता है। मुनि मानतुंगा चार्य ने भक्तामर स्तोत्र के आठवें श्लोक में परमात्मा को कमलदल समान कहें है। हे प्रभु आप कमल के पत्रदल समान हो। जिसतरह कमल पत्रपर पडा हुआ जलबिंदु मोती की शोभा
प्राप्त होता है । प्रभु! पानी की बुंद की क्या ताकत है कि वह मोती की शोभा को प्राप्त करे। उसी तरह मेरे शब्दों में क्या ताकात हैं कि स्तोत्र का मूल्य प्राप्त करें परंतु परमात्मा आपके अचिंत्य प्रभाव के कारण मेरे शब्द स्तोत्र की मूल्यता को प्राप्त हो रहे हैं।
आठवी गाथा में परमात्मा को कमलदल की उपमा देने वाले आचार्यश्री नववीं गाथा में परमात्मा को सूर्य की, भक्त को कमल की और संसार को सरोवर की उपमा देते हुए कहते हैं, रात्रि के समय में बंद कमल सुबह होते ही प्रभात में जब सूर्य की किरणें धीमे धीमे धरती का स्पर्श होते ही खिल उठता है। सूर्य हजारों कि.मी. दूर होता हैं परंतु उसकी प्रथम किरण धरतीपर आते ही कमल खिलना शुरु हो जाता है। 'कमल को सूर्य के पास जाकर पार्थना नहीं करनी पडती है या सूर्य को कमल के पास जाकर उसका स्पर्श करना नहीं पडता है और न तो कमल को उपदेश देना पडता है। बस केवल सूर्य का अस्तित्त्व और किरणों का अवतरण मात्र कमल के खिलने में सहायक हो जाता है । इसीतरह सिद्ध परमात्मा हमसें सात राजुलोक दूर है। प्रगट अरिहंत परमात्मा सीमंधर स्वामी भले ही सदेह धरती पर विचरण करते हैं परंतु वे भी हमसें 19,31,50,000 कि. मी. दूर है। ऐसा सोचते हुए हमें घबराना नहीं है। परमात्मा सूर्य है। परमात्मा की कृपा किरण है। हम कमल है। परमात्मा रुपी सूर्य का कभी अस्त नहीं होता । नास्तं कदाचिदुपयासि.... रात में कितनी भी लाईटे हो कमल को वे उल्लसित नहीं कर सकती है। सूर्य की कुछ किरणें ही कमल को खिलने को काफी है। हे परमतत्त्व आप की अपार करुणा में से कुछ किरण ही हमारे लिए बस हैं। लाईटों की तरह अन्य कोई व्यवस्था हममें परिवर्तन करने में समर्थ नहीं है।
आगे छत्तीसवी गाथा में पंकज और पद्म दो शब्द मिलते हैं। हे प्रभु! आप जहाँ जहाँ चरण धरते है वहाँ वहाँ देव सुवर्ण कमल बिछाते हैं। सोने के होते हुए भी ये कमल मक्खन की तरह कोमल होते है । प्रभु! ऐसे देव निर्मित सुवर्ण कमल पर चरण रखकर आप समवसरण में पधारते हैं। मेरे पास ऐसे सोने के कमल भले ही नहीं है परंतु मेरा हृदय कमल भी कोमल है। देखिए मैं ने आप के चरण कमल में मेरा हृदय कमल बिछाया है। पधारिए आप मेरे हृदय कमल में, पवित्र कीजिए मेरे जीवन का जलाशय ।
79