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भी नहीं करते और हमारी अपेक्षा भी नहीं करते हैं। किसीको दयाजनक स्थिति में नहीं रहने देते। प्रत्येक हृदय में दीपक जलाते है। पूरे ब्रह्मांड को उत्तमता से भर देते है। सर्व की अधमता को उत्तमता में बदल देते है। लोकोत्तम के अतिरिक्त यह काम कौन कर सकता है? आज लोगुत्तमाणं पद की उपासना करता हुआ तू संकल्प कर की आनदि काल से परिभ्रमण करते हुए अनेक तरह से उत्तम की अभ्यर्थना की पार्थना की परंतु अब पता चला कि संपूर्ण विश्व में आप से उत्तमोत्तम अन्य कुछ भी नहीं है। आप उत्तम भी इसीलिए हो कि मेरी अधमता को टालने में समर्थ हो। मेरे में रही हुई उत्तमता को प्रगट करने में सक्षम हो। मेरे में ऐसा सामर्थ्य प्रगट करो प्रभु कि पदार्थों की अधमता का मैं स्वीकार करु और आत्मा की उत्तमता का अनुभव प्राप्त करु। हमारी यह प्रार्थना सुनकर लोकोत्तम प्रभु नाथ बनकर हमारे सामने कल प्रगट होंगे। इस अनुभूति के लिए हम लोकोत्तम पद की उपासना करते है।
।।। नमोत्थुणं लोगुत्तमाणं ।।। ।।। नमोत्युणं लोगुतमाणं ।।। ।।। नमोत्युणं लोगुत्तमाणं ।।।
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