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तीन भव पूर्व ही सर्वजीव करुशासन रसीक के भाव के साथ जगत् के सर्व जीवों का कल्याण चाहा था। वर्तमान में विरती धर्म द्वारा और प्रवचन प्रभावना द्वारा तथा भविष्य में सिद्धत्त्व प्रगट कर अव्यवहार राशि और अनादि निगोद के जीवों का हित करनवाले होने के कारण गणधरों ने लोगहिआणं पद से नमस्कार किए है। लोकहित के दो प्रकार है - आत्महित और परहित। जो स्वयं के कल्याण की भावना करते है वे सामान्य केवलि होते है । जो स्वयं के साथ अन्य स्वजन संबंधियों के मोक्ष-कल्याण की कामना करते है गणधर होते है । जो सर्व जीवों के मोक्ष की कामना करते है, व्यवस्था करते है वे तीर्थंकर नामकर्म का उपार्जन करते है । कल्याण की इस भावना में आत्महित और परहित दोनों समाए हुए हैं।
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परहित के दो प्रक्रार है - आग्रहहित और अनुग्रहहित। जहाँ हमारा अभिप्राय हित का मुखौटा पहनकर स्वयं की बात का आग्रह रखता है उसे आग्रहहित कहते हैं । आग्रहहित में दरअसल हित नहीं होता हैं। व्यक्ति स्वयं के अहं को हित में लपेटकर हित के रुप में प्रस्तुत करता है । आग्रहहित का एक रुप बिन मांगी सलाह भी है। ऐसे लोगों को फ्री अॅडवाईझर कहते है । हमारी सलाह सूचना की किसी को आवश्यकता या अपेक्षा हो न हो हम जो कहेंगे वो कोई मानेगा या नहीं मानेगा, मेरी बात हित से संबंध रखती है या नहीं रखती है ऐसा सबकुछ सोचे बिना सलाह देते ही जाए और वह भी उसने मानना ही चाहिए ऐसा आग्रह रखते है उसे आग्रहित कहते है । प्राय: संसार ऐसे ही बिना हित के आग्रहों से भरा हुआ है। अभी कुछ दिन पूर्व ही एक लडका और एक लडकी हमारे ही चबूतरे पर बैठकर हसते हुए, बोलते हुए नास्ता कर रहे थे, पानी पी रहे थे। कुछ दिन यह घटना दोहराती गई। परिणामतः हमारे माननीय महिला मंडल की महिलाएँ एक दिन इकट्ठी होकर मेरे पास शिकायत करने लगी- यह उपाश्रय है । इसके चबूतरे पर बैठकर लडके लडकी का मस्ती करना शोभा नहीं देता । मैं ने कहा, कौन है पता करलो । तो कहने लगी ये सब लफडेवाले ही होते है। ऐसे ही एकांत जगह का ये लोग लाभ लेते है। बहुत बार शिकायत सुनकर एक दिन मैंने दोनों बच्चों को अंदर बुलाये । दोनों शरमाने लगे तो महिलाएँ आपस मैं घुस -पूस करने लगी, देखो कैसे शरमा रहे है। वे मुझे पहचानते थे, मैं उन्हें नहीं पहचान पायी थी। मुझे देखकर कहने लगे, हमें पता था कि आप एक दिन हमें अंदर बुलाऐंगे। मन करता है पर टाईम नहीं मिलता मम्मी भी कहा करती है कि स्थानक में जाया करो। मैंने पूछा आप हो कौन ? परिचय पानेपर पता लगा कि ये नासिक रोड के बच्चे हैं। दोनों भाई-बहन है। सामने कॉलेज में पढते है । एक नास्ता लाता है और एक पानी उठा के लाता है। छूट्टि में दोनों यहाँ बैठकर खाना खाते है। इसतरह हमारी गैरसमझ हैं । कईबार गलत मान्यताओं के कारण हम हिताहित से रहित केवल मान्यताओं का आग्रह रखते हैं।
कई बार आपने अनुभव किया होगा कि घर में कोई महेमान आए हो तो उनके लिए स्वादिष्ट भोजन बनाया गया है। महेमान जब भोजन कर रहे हो तब भोजन बनानेवाली महिला का ध्यान और कान निरंतर उसतरफ होता हैं। कि भोजन की प्रशंसा कैसा है। यहाँ प्रशंसा का आग्रह है । मानलो कभी महेमानों का ध्यान कही ओर हो और भोजन की तारिफ ना करे तो घर की गृहिणी बाहर आकर कहती है, जल्दी कैसे हो गया? गरम बनाने के चक्कर में
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