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अब देखिए दहलीजदीपन्याय | घर में प्रवेश के पूर्व एक चौखट होती है जिसे दहलीज कहते है । सामाजिक वातावरण में विशेष त्योहारों में और विशेष अवसरों में दहलीजपर दीया प्रगट करते है । इसके दो अभिप्राय होते है। कोई भी नया आगंतुक आता है तो आंगन में उजाला मिलता है और दीये का उजाला भीतर घर प्रकाशित करता है अर्थात् घर और आंगन दोनों को जो दीया प्रकाशित करें उसे दहलीजदीप कहते है । । दूसरा अभिप्राय है - हमनें किसी देव का आव्हान किया हो तो उसके स्वागत में दीया प्रज्ज्वलीत करते है तो देव घर में प्रवेश करते है। इसी को न्याय का रूप देते हुए पारिवारिक संस्कार का कारण माना गया है। बेटा या बेटी जब स्वयं के घर को भी खुश और संस्कारीत रखते हैं और बाहर समाज में भी दान, धर्म, सेवा आदि द्वारा वातावरण को "संस्कारीत बनाने में सफल रहते है; उसे देहलीदीपन्याय कहते है ।
हमें हमारे दिल को जीवन की दहलीज बनाना है। जो हमारे दिल में भी उजाला करे और हमारे जीवन में आनेवालों को भी उजाला दे। जो हमारा भीतर और बाहर दोनों को प्रकाशित करते हैं वे हैं लोगपइवाणं । दिल से नमोत्थुणं के द्वारा लोकपइवाणं को दिल में आंमत्रित करो। वे हमारे जीवन में और आसपास के वातावरण में दीये जलाऐंगे। दहलीजदीपन्याय की तरह हम और हमारा जगत् प्रकाशित हो जाएगा ।
दीपक का नियम हैं कि दीया दीये को जलाता है। दीये से दीया प्रगट होता है। प्रगट करनेवाला दीया जिन हजारों दियों को प्रज्ज्वलित करता है उन्हें स्वयं की तरह ही ज्योतिर्मान करता है। समान ज्योत, समान तेज और समान प्रकाश सर्वत्र व्याप्त होता है। दीक्षाशास्त्र में इसे स्पर्श दीक्षा कहते हैं। दीये में सबकुछ हो बत्ती हो, तेल हो, उसे बहुत अच्छा सजाया गया हो लेकिन जबतक ज्योति का स्पर्श नहीं हो पाता वह ज्योतिर्मान नहीं हो पाता है। स्पर्शदीक्षा के लिए शास्त्र में कहा है
जह दीवा दिवस, पइप्पर य सो दीवो । दीवसमा आयरिया दिवंति परं च दिवंति ॥
जबतक परमात्मा गगट नहीं रहते है तब आचार्य को दीपक की मान्यता दी जाती है। जो प्रज्ज्वलित दीपक की तरह होते है। स्वयं भी प्रकाशित होते है और अन्यों को भी प्रकाशित करते है। स्पर्श के दो प्रकार है - द्रव्यस्पर्श और भावस्पर्श। पदार्थ का पदार्थ के साथ का स्पर्श द्रव्यस्पर्श कहलाता है। यही स्पर्श हमारे अंत:करण को छूकर भाव - उत्पन्न करते है उसे भावस्पर्श कहते है। जिसतरह गरम पदार्थ के साथ हाथ का स्पर्श हो जानेपर जो गर्मी का अनुभव होता है उसे द्रव्यस्पर्श कहते है। इस अनुभव का हमारे उपर जो अच्छा-बूरा प्रभाव होता है उसे भावस्पर्श कहते हैं। जैसे आँख से रुप देखना, कान से शब्द सुनना यह द्रव्यस्पर्श है। परंतु यह सुनने के बाद हममें अच्छे बुरे परिणाम प्रगट होते है और उनका हमारे उपर प्रभाव पडता है इसे भावस्पर्श कहते हैं। ओर खुलासा चाहिए? अच्छा सुनिए आप भोजन करने बैठते हैं। पदार्थ आपकी प्लेट में आता है। आपके मुँह में जाता हैं द्रव्यस्पर्श है। अब दाल स्वादिष्ट है, सब्जी में नमक कम है आदि चेष्टाएं भावस्पर्श हैं। द्रव्यस्पर्श के बाद अच्छे बूरे परिणाम प्रगट होना और उसका प्रभाव भीतर प्रगट होना भावस्पर्श है। भावस्पर्श से ही हममें राग द्वेष उत्पन्न होते हैं ।
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