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नमोत्थुणं लोगहिआणं
जिनके स्वयं के हित की साधना से विश्व हित की साधना हो जाती हैं उन्हें लोगहिआणं कहते हैं। जो तीन तीन जन्म से सर्व जीवों के हित का और मुक्ति का चिंतन करते हैं उन्हें लोगहिआणं कहते हैं।
विश्वहित की साधना परमात्मा के सीवा कौन कर सकता है? विश्वहित अर्थात् सर्वजीवहितकर साधना। इस साधना में अचिंत्य शक्ति होती है। साधना में प्रवेश पाते ही साधकका इस शक्ति के साथ संयोग हो जाता है। सर्वजीवहितकर साधना को स्वहित की साधना में प्रयुक्त विधान अर्थात् नमोत्थुणं लोगहिआणं। हित, हेत और हूंफ (उष्मा) भारतीय संस्कृति के हृदयस्पर्शी शब्द है। समान लगते हुए भी तीनों शब्दों में काफी अंतर है। हित किया जाता है। हेत दिया जाता है और हूंफ में जिया जाता है। हेत और हूंफ सामाजिक प्रक्रिया है और हित सैद्धांतिक प्रक्रिया है। हेत और हूंफ भावनाप्रधान है और हित भावप्रधान है। हित का हेतु हित ही होता है।
आज हम सैद्धांतिक और भावप्रधान हित के वाहक के साथ अपना संबंध स्थापित कर रहे है। हित भावप्रधान होने से इसमें भावनाओं में बहा नहीं जाता है। जैसे माँ हेत में भावनाप्रधान होकर बच्चे की पसंद की चीज हित अहित देखे बिना दे देंगी परंतु दूसरे दिन परिणाम प्रगट होनेपर प्रवृत्ति में परिवर्तन करेगी। समय आनेपर बालक का हित देखते हुए उसे नाक दबाकर कटु औषध भी पिला देती है। माँ के अतिरिक्त घर के अन्य सदस्य संबंधी, स्नेही हेत और हूंफ दे सकते है परंतु हितमात्र माँ ही देखती है। भावनाप्रधान होते हुए भी माँ जब भावप्रधान बन जाती है तब माँ के प्रेम को वात्सल्य कहते है। जो बाधा, पीडा और अपाय का परिहार करे उसे हित कहते हैं। लोगहिआणं को समझाते हुए गणधर भगवंत ने हित के परिणाम त्रय बाताए है। हित अर्थात् जिससे
१) हमाराभवरोग मिटे। २) हमारी अबोधिछूटे और
३) हमारी असमाधि टूटे। परमात्मा के प्रेम का नाम वात्सल्य है। तीर्थंकरत्त्व की प्राप्ति के कारणों में सात कारण वात्सल्य के बताए हैं। इसके लिए वच्छलयाय तेसिं शब्द द्वारा तीर्थंकर नामकर्म प्राप्त करने का उल्लेख शास्त्र में है। हित का हेतु मात्र हित ही है ओर कुछ नहीं। ऐसे परमपुरुष को जगत् में अकारणवत्सल कहते है । अर्थात् जिनके वात्सल्य के लिए और कोई कारण नहीं हो सकता। पर्याय की दृष्टि से हित के लिए अनेक शब्दों का प्रयोग हुआ है। कल्याण, शुभ, सत्य, श्रेय, उद्धार, उपकार, लाभ, गुण। व्यवहार पक्ष में हित के साथ मित और प्रीत को महत्त्व दिया गया है। आहार विज्ञान में हित और मित के साथ पथ्य को उपयुक्त माना गया है।
लोगहिआणं पद में लोक+हिआणं दो शब्द का उपयोग हुआ है। जिसका अर्थ होता है। लोक का हित करनेवाले। लोक शब्द का अर्थ हम कई बार देख चुके है। लोग अर्थात् संसार, सृष्टि, विश्व आदि। जिन्होंने जन्म
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