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हो, तुम कैसे मेरे नाथ बन सकते हो? राजा ने मुनि से कहा, कैसी बाते करते हो? मैं तो पूरी नगरी का नाथ हूँ। मेरे पास पूरा राज्य है । राजमहल और अंत: पुर है। सभा, साम्राज्य और सैन्य है। मैं कैसे अनाथ हो सकता हूँ?
मुनि ने कहा, यह सब तो मेरे पास भी था राजन् । आप नाथ और अनाथ की व्याख्या से अनभिज्ञ हो । न तुमं जाणे अणाहस्स अत्थं पोत्थं - अनाथ शब्द की अर्थ और उत्पत्ति को जानो राजन् । अनाथ शब्द की अर्थ को उत्पत्ति को समझे बिना नाथ बनना, जानना और स्वीकारना कैसे संभव है? राजन् ! नाथ शब्द के दो अर्थ होते हैं - स्वामी और योगक्षेमकर्ता । जिसका कोई स्वामी या योगक्षेम विधाता न हो वह अनाथ है। राजाने कहा, मुनि ! आप मुझे व्याख्यान मत दो। लेक्चर मत सुनाओ। आप तो मुझे यह बताओ कि, मैं या आप अनाथ कैसे हो सकते हैं? मुनि ने कहा, राजन् ! संसार में कहने योग्य सबकुछ मेरे पास था। राज्य था, साम्राज्य था, सैन्य था । मैं स्वयं एक राजकुमार था। आपके पास एक चेलणा है। मैं अनेक चेलणाओं का स्वामी था। एक दिन अचानक मुझे पीडा होने लगी। राज्य के सभी वैद्य, हकीम, चिकित्सक आदि सभी के प्रयास के बाद भी मेरी वेदना कम नहीं हो पायी। माता-पिता, भाई-बहन, पत्नी सब मुझे लाचार और विवश देख रहे थे। मुझे ऐसा अनुभव हो रहा था मैं अनाथ हूँ, मेरा लाचार हूँ, मैं विवश हूँ, मेरा कोई नहीं है। कोई मेरा कुछ नहीं कर सकता है। इसी पीडा में मैंने भगवान को भीतर से याद किया। प्रभु! आप ही मुझे पीडा मुक्त कर सकते हो। हे नाथ! आप मुझे मेरी इस अनाथता से मुक्त करो। मुझे लाचारी से मुक्त करो। ऐसी प्रार्थना करते करते कई दिनों के बाद मुझे नींद आ गई। सुबह उठकर मैंने तथाकथित स्वजनों से कहा मैं मेरे नाथ के पास जाता हूँ और चल पडा। दैहीक पीडा से मुक्त करनेवाले भगवान महावीर ने मुझे उस दिन भव पीडा से मुक्त करनेवाला संयम दिया और कहा, आज से तू तेरा नाथ हैं। जगत् का नाथ है। सभी जीवों का नाथ है।
हम स्वयं के नाथ होते हैं तो ही अन्यों के नाथ हो सकते हैं। यदि हमारे पास पैसे होते है तो पांच लोग पूछते हैं। एक कहावत है, जीम के निकलो तो सारा मोहल्ला पूछेगा। अर्थात् जब कोई भोजन करके निकलता है उसे सब भोजन का न्योता देता है। यदि कोई कारण से किसी पार्टी को धक्का लग जाए अचानक सबकुछ खो जाए ऐसी स्थिति में जिगरजान दोस्त भी मुँह फिरा लेता है। सबको पता लगता हैं कि यह अभी तकलीफ में है, तो कोई सामने भी नहीं देखता। भगवान कहते हैं जगत् का नियम यहाँ भी प्रयुक्त होता है। तुम स्वयं के नाथ होंगे तो ही अन्य जीवों के नाथ बन पाओगे । भगवानने नाथत्त्व को हमें तीन सीस्टम में बताया- १. जगत् के प्रति अनाथ होना, २ . स्वयं का नाथ होना, और ३. जगत् का नाथ होना ।
मेरे जीवन का वह अविस्मरणीय समय था जब जगत् के नाथ ने मेरी इस तथाकथित अनाथ आँखों में आखें डालकर मुझे सनाथ बनाया था। प्रथम बार मेरा मस्तक उनके चरणों में झुक गया था । पूर्ण आनंदभाव, अहोभाव अनुभूति के साथ मेरा अतः करण, मेरे रोम रोम, मेरे समस्त आत्मप्रदेशों मंत्र स्फुरित हुआ था, नमोत्थुणं लोगनाहाणं। भगवान ने कहा - वत्स ! अब तू सनाथ है। तू तेरा ही नाथ है। तू जगत् का नाथ है। सृष्टि के सभी जीवों का नाथ है। सभी जीवों की सुरक्षा की जिम्मेवारी तुम्हारी है। कमजोर न होना, विवश न होना । तुम
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