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इतिहास में एक मल्लमुनि हो गए। जो शास्त्रों में पारंगत थे। एकबार किसी सूत्र का अर्थ न लगने पर उसने देवताओं की सहाय मागी तुरंत ही शासन देवों ने गुप्तावास में रखी हुयी प्रते प्रगट करी । प्रतों का स्वाध्याय करते हुए अचानक कुछ प्रते मुनिश्री से जमीनपर रखी गई। तुरंत ही शासन देवों ने प्रत उठा ली। सत्य का बोध होते ही मुनिश्री ने माफी मांगी। प्रत परत करने की बिनती की तब शासन देव ने कहा, शास्त्र की अशातना शासन की अशातना है। एक के हित के हेतु पूरे शासन का अहित नहीं हो सकता। ऐसा है हमारा शासन । ऐसा है हमारे प्रभु के हित का पथ जहाँ हित का हेतु हित ही है। ऐसे जनजन के हित का, विश्व के हित का, समस्त ब्रह्मांड के हित का, तीनों लोकों का हित चिंतवन करनेवाले परमात्मा के चरणों में अंजलि करके बिनती करेंगे, लोगहिआणं पधारो हमारे हित का हेतु सार्थक करो। अनादि काल से अंधकार में मार्ग भूले हुए हमें पथ प्रदर्शन करों अतः दीपक बनकर जन्म जन्म के अंधकार से हमें मुक्त करो।
नमोत्थुणं लोगहिआणं ..
नमोत्थुणं लोगहिआणं...
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नमोत्थुणं लोगहिआणं.