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अर्थात् सदोष गंध। सदोषगंध में राग द्वेष जुडे हुए होते हैं। राग द्वेष रहित अर्थात् वीतराग भाववालों को निरामगंध होती है। रागद्वेष गंध में नहीं होते है। रागद्वेष नाक में भी नहीं होते है। रागद्वेष हमारे भाव में होते है। ..
रागद्वेष को पदार्थ और भाव में देखने के लिए हमें अपने व्यवहार जगत् को देखना होगा। एक बार मैं एक घर में अचानक गोचरी के लिए पहुंची। घर के श्रावकभाई खुश-खुश हुए। खुशी का कारण समझाते हुए उन्होंने कहा, बंबई में तो हमें आहार दान का अवसर नहीं मिलता है। आज तो मैं भाग्यशाली हो गया। ऐसा कहकर आग्रहपूर्वक आहार बहराने लगे। एक-एक पदार्थ की प्रशंशा करते हुए लेने का आग्रह करते थे। कोई चीज नहीं ली तो कहते थे ये बहुत ही टेस्टफुल है। इसे अलग लो। किसी पदार्थ को मिक्स भी करने नहीं दे रहे थे। मैंने कहा हमगोचरी टेस्ट देखकर नहीं लेते हैं। आहार की ऐसी लेन-देन चल रही थी कि अचानक मेरा ध्यान गया कि घर की गृहिणी बैठी हुई रो रही थी। मैंने आश्चर्य से पूछा, क्या हुआ आपको? आप गोचरी बहेराने भी नहीं आयी और रो भी रही हो, क्या बात हैं? क्या हुआ पता है आपको? जानते हो आप क्या हो सकता है? किसी भी दुःखी महिला को बायचान्स पूछ लिया क्या हुआ? तो फिर तो गंगा-जमना चालु। जोर-जोर से रोने लगी और बोलने भी लगी। कहने लगी, देखो! आपको पता नहीं है आज क्यों ये इन पदार्थों की तारिफ करते है। भाईने कहा, मैं तो तुम्हारी रसोई की तारीफ करता हूँ और तुम रोक्यों रही हो? कहने लगी मुझे पता है। मैं जानती नहीं क्या आपको, आप कितने स्मार्ट हो। फिर मेरी तरफ मुड कर कहने लगी, मैं कोई भी आयटम बनाऊं ये कभी इतनी तारीफ नहीं करते। आज मेरी मौसी के यहाँ से टिफीन आया तो इनकी प्रशंसा चालु। किसी का कुछ भी हो तो इनको स्वाद आता है। ये प्रशंसा करते है। भाई साहब बोले मुझे कहा पता है कि तेरी मौसी के यहाँ से टिफीन आया है। मैं तो व्याख्यान सुनके उठा और महासती जी गोचरी के लिए निकले तो मैं भी साथ हो गया। इसी वींग में आए तो मैं अपने घर लाया। पदार्थ खुलते ही खुशबु आयी तो मैं ने तारीफ कर दी। तुम कुछ ना कहती तो मैं यही समझ रहा था कि आज तुमनें इतना टेस्टफुल बनाया है।
यह देवलाली की ही घटना है। अब आप घटना से पर होकर अॅनेलाइसीस करें। पदार्थ का अपना टेस्ट, बनानेवाले का टेस्ट, खानेवाले का टेस्ट आदि आदि अनेक टेस्टों में सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण टेस्ट उस पदार्थ के उपभोग से पूर्व ही उसपर किए जानेवाली चर्चा और रागद्वेष का है। वास्तव में पदार्थ कैसा है? यह कोई भी नहीं जान रहा था। पदार्थ की अपेक्षा परिस्थिति को महत्त्व दिया जा रहा था। विषय की दृष्टि से महत्त्व पदार्थ का होता है। रस और गंध विषय का स्वभाव है। पदार्थ की पहचान उसके स्वभाव से होनी चाहिए पर हम उसकी विवक्षा अपने स्वभाव से करते है। पदार्थ की पहचान उसके रस और गंध से होनी चाहिए। जैसे एक फल है अमरुद, उसकी अपनी एक खुशबू होती है। खुशबू में जो उसका खुशबूपना है वह उसकी गंध है। अमरुद के पक जानेपर उसकी गंध प्रसारित होती हैं और हमें खुशबू आती है। गंध या खुशबू केवल घ्राणेन्द्रिय अर्थात् नाक का विषय है। परंतु गंध में उसका रस भी निहित होता है इसलिए वह स्वयं रस,स्वाद या टेस्ट जो भी कहे बन जाती है।
हम यहाँपर आमगंध और निरामगंध के बारे में सोच रहे है। आमगंध के दो प्रकार है - सुरभिगंध और दुरभिगंध। निरामगंध के भी दो प्रकार है - वीर्यगंध और सहजगंध। सामान्य केवली में सहजगंध होती है। वे जहाँ