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चरण कमल के बाद नाभिकमल आता है। जलाशय के कमल की तरह ही हमारा नाभि कमल भी रात को बंद हो जाता है। सूर्योदय के साथ ही जैसे जलाशय का कमल विकसित होता है वैसे ही हमारा नाभि कमल भी सूर्योदय के साथ खिलता है, खुलता है और प्रगट होता है। इसी कारण भगवान महावीर एवं अन्य सभी तीर्थंकरों ने रात्रिभोजन नहीं करने की प्रेरणा, प्रत्याखान और प्रज्ञापना दी है। नाभिकमल के मध्यभाग से निकली हुई नाल(डंडी) नीचे उर्जा केंद्र के मुल आधार में समायी हुई होती है। योगिलोग इसे मुलाधार चक्र कहते है। यह नाल मुलाधार के कमल के मध्यभाग से निकलकर अन्य चक्रों का आवर्तन करती हुई सहस्त्रार चक्र तक पहुंचती है। मध्यमार्ग में अन्य चक्रों के साथ जुड़कर हमारे जीवन और जगत् के उर्जामय संबंधो की व्यवस्था का संतुलन रखती है। हमारे नाभिकमल में हमारे जीवन का स्रोत समाया हुआ है। नाभिकमल खुलते ही आनंद और उल्हास होता है। हमारे अस्तित्त्व का केंद्र नाभि है। माता के गर्भ में हम नाभि से ही जुडे हुए होते हैं। माता की उर्जा नाभि के द्वारा प्रवाहित होकर हममें जीवन के रुप में प्रगट होती है। जब हम स्वयं अपनी उर्जा का संचय करने में समर्थ हो जाते है। तब नाभि के साथ का हमारा संबंध संपन्न होता है। जैसे माता के साथ हमारा उर्जामय संबंध है वैसे ही परमात्मा के साथ भी हमारा उर्जामय संबंध हैं। केवल समझना यही हैं कि मातृ संबंध दृश्य और भगवत् संबंध अदृश्य हैं। जब तक हम हमारा सामर्थ्य प्रगट न कर सके तब तक हमें परमात्मा के संबंध को घनिष्ठ बनाए रखना चाहिए। लोगस्स सूत्र में हमें नाभि के द्वारा परमात्मा के साथ जोड रखने की साधना पद्धति है। यह पद्धति वैज्ञानिक भी हैं और एक शास्वत योगिक योजना भी है। परमात्मा के साथ सुमिलन साधकर साक्षीभाव के साथ सिद्धत्त्व तक पहुंचने का एक सफल प्रयोग अर्थात् लोगस्स ।
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तीसरा हृदय कमल है । है पुरिवसर पुंडरियाणं ! हमनें हमारे हृदयकमल को तेरे चरणकमल में समर्पित किया हैं अब संसार के साथ हमारा हृदय पूर्वक संयोग न हो इसका ध्यान आपको रखना है। पर्युषण में शास्त्रों में कल्पसूत्र और अंतगड सूत्र का स्वाध्याय होता है। क्योंकि इस शास्त्र में अनेक जगह हृदय कमल का निरुपण प्रस्तुत किया है। जैसे कि अंतगड सूत्र में देवकी माता का आधिकार आता है। दो-दो मुनियों के समुदाय में छह अणगार तीन बार गोचरी को पधारते हैं तब तब देवकी माता का हृदय कमल की तरह खिल जाता है। शास्त्र में इसके लिए परमसोमणस हियया शब्द का अद्भुत प्रयोग दिया है। कभी इसका ध्यान करके तो देखिए जब देवकी माता अपने नयनकमल अणगार के उपर बिछाती है उसका हृदयकमल खिल जाता है। कमल की प्रत्येक पंखुडी में भगवान नेमिनाथ के दर्शन होते है। दिखते हैं संत और दर्शन होते है भगवंत के । आदर करती है संतों का और सत्कार होता है भगवंत का । चरण कमल संतो के और चरणरज भगवंत की । देवकी माता में इतना अद्भुत सामर्थ्य प्रगट होता है कि वह तीर्थंकर नामकर्म का निकाचन करती हैं। अंतगड सूत्र में तो जगह जगह पर हृदयकमल के अद्भुत ध्यान प्रस्तुत हैं । हे पुरिसवर पुंडरियाणं ! आज मेरा हृदयकमल आपके चरणकमल में अर्पित हो रहा है। मेरे परमसोमणस हियया ! पधारो मेरे अंत:करण में। भगवन् ! मेरे नाभि कमल में आपका आगमन होते ही आपके
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