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नमोत्थुण पुरिसवर पुंडरियाणं पुंडरिक अर्थात् कमल। प्रकृति में पुंडरिक एक ऐसा तत्त्व है जिसके आकार का सूर्य के साथ प्रत्यक्ष संबंध हैं। सूर्योदय होते ही खुलना, खिलना, खुश होना और करीब आनेवालों को खुश करना कमल की स्वाभाविकता है। कीचड में उत्पन्न होकर और उससे आलिप्त होना कमल की साहजिकता है। ऐसी स्वाभाविकता और साहजिकता के कारण उसका देवलोक में दैवीय और मानव में चैतसिक स्थान रहा है। महापुरुषों की प्रकृति संसाररुपी कीचड से अलिप्त रहने के कारण उनके चरण, हृदय, हाथ, मुख, मस्तक आदिको कमल की उपमा दी गई है। नमोत्थुणं में प्रगट हुआ यह पुंडरियाण पद भगवतसत्ता के लिए उपयुक्त शब्द है। जो स्वयं संसार से अलिप्त है और उनके चरणों में नमस्कार करनेवालों को भी जो अलिप्त करने का सामर्थ्य रखते हैं। इसतरह कमल यह भौतिक प्रकृति का तत्त्व है और चैतसिक प्रकृति का सत्त्व है। सत्त्व और तत्त्वजब परमतत्त्व के साथ जुड़ जाते हैं तब अमरत्व का वरदान बन जाते हैं। शास्त्रों में सूयगडांग सूत्र में पुंडरिक नाम का एक अध्ययन है। ज्ञातासूत्र में पुंडरिक नाम के चरित्र की बोध कथा भी प्रसिद्ध है। इसके अतिरिक्त भी शास्त्र और साहित्य में पुंडरिक अनेक नाम से प्रसिद्ध है। प्रसिद्ध नामों में से नव नाम के साथ साधना का विशेष संबंध रहा है। १. पुंडरिक, २. पद्म, ३. पंकज, ४. अरविंद, ५. अंबुज, ६. कमल, ७. जलज, ८. नलिनी, ९. सोमनस। इन नवों में पुंडरिक नाम का अत्यधिक महत्त्व हैं। ऐसे तो कमल का मुख्य गुणधर्म सभी में समाया हुआ है। फिर भी नाम के अनुसार उसकी व्याख्याएं उसकी विभिन्न पर्यायें प्रगट करती हैं।
नाम चाहे कोई भी हो पर उसका सहज स्वभाव असंगता है। इसी स्वाभाविकता के कारण इसे साधना में स्वतंत्र स्थान मिला है। कमल उत्पन्न कीचड में होता है। उसके बाद पानी में बड़ा होता है। परिपुष्ट हो जानेपर पानी से भी अलग हो जाता है। उसी तरह तीर्थंकर प्रभु जन्म कर्म से होता है। संसार के दिव्यभाव रुप पानी में बडे होते है। देव समुदाय उनकी सेवा में अलौकिक भोग सामग्री प्रदान करते है। उसका उपभोग करते हुए वे बडे होते है परंतु जिस तरह कमल पूर्ण रुपेण तैयार हो जानेपर कीचड और पानी के उपर आ जाता है। एक बार उपर आ जाने के बाद उसका दोनों से संपर्क टूट जाता है। उसी तरह अरिहंत परमात्मा कर्म रुप कीचड से और दिव्यभोग जल दोनों को छोडकर विरती भाव और सर्वज्ञता में आ जाते है। निर्लिप्त दशा में निसंग भाववाले होते है।
पुंडरिक अर्थात् श्वेतकमल, पुरिसवर अर्थात् इन्दिवर अर्थात् पुष्कर। पुष्कर एक कमल का नाम हैं जिसे निलकमल कहते हैं। इससे एक बात स्पष्ट हो गई कि पुरिसवर और पुंडरिक का अर्थ कमल ही होता है परंतु दोनों कमल में अंतर यह हैं पुरिसवर अर्थात् निलकमल और पुंडरिक अर्थात् श्वेतकमल। श्वेतकमल शुभ्रता, दिव्यता
और पवित्रता का प्रतीक है। निलकमल गौरव, गरिमा, महत्ता और उच्चता का प्रतीक है। इस पद में परमात्मा को श्वेतकमल और निलकमल दोनों की उपमा दी है। परमात्मा का श्वेतकमल का ध्यान जीवन में दिव्यता, भव्यता और पवित्रता प्रगट करता है और परमात्मा के निलकमल का ध्यान जीवन में अशुभता और विकृति का नाश करता
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