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और बदलने का प्रयास करते हैं। आपको कई बार ऐसा भी अनुभव हुआ होगा कि कंपनीवालों ने आपका गॅरंटी पिरियड एक्सापायर्ड हो चुका हैं ऐसा कहा होगा। बादमें फ्री सहीस बंद हो जाएगी। लाईफ टाईम की गॅरंटी कोई नहीं देता। कांच के बरतनों की गॅरंटी कभी नहीं होती। दुकान से नीचे उतरते ही बरतन टूट जावे तो भी दुकानवाला बदल के नहीं देगा। आजकल हमारे प्यार और संबंध भी कांच के बरतन जैसे हो चुके हैं। यह आपके ही अनुभव हैं कि, लाखों रुपये खर्च करके शादि करते हैं। पंद्रह दिन घूमकर वापस लौटते हैं और डायवर्स की तैयारी करते हैं। पंद्रह-बीस दिनों में तो शादि की एक्सापायर्ड डेट आ जाती है।
पदार्थ जन्य सुखों की और स्नेहजन्य संबंधो की डेट एक्सपार्यड हो सकती हैं। आईगृराणं नमोत्थुणं कंपनी के ऐसे मालिक है जो हममें ऐसे अनंत समाधि सुख की आदि करते हैं जिसकी डेट कभी एक्सापार्यड नहीं हो सकती और समाधि सुख भी एक्सापायर्ड नहीं होता। इसीलिए उसे अनंत समाधि सुख कहते हैं जिसकी आदि है पर अंत नहीं। एक बार भगवान महावीर ने गौतम स्वामी को कहा कि, संसार में तुम ऐसा घर परिवार देखो की जिसके सुख की आदि हो पर अंत न हो। गौतम स्वामी परिभम्रण कर वापस लौटकर कहते हैं, भगवन! ऐसा कोई व्यक्ति घर या परिवार मुझे नहीं मिला जिसमें सुख ही सुख था। प्रभु! क्या वास्तव में ऐसा सुख होता हैं? हा वत्स! ऐसा सुख होता हैं। यह सुख हमारे भीतर होता हैं बाहर व्यक्ति या वस्तु में नहीं। घर या परिवार में नहीं।
आज हमे अनंत समाधि सुख देनेवाली भगवतसत्ता को हमारे भविष्य का उत्तरदायित्त्व अर्पित करना हैं। जो हमारे भीतर निरंतर सुख समाधिमय भविष्य का निर्माण करते हैं । जो प्रत्यक्ष दिखाई नहीं देते हैं, बातचीत नहीं करते हैं। हमारी इच्छाओं को जानते हुए भी हमें कोई रिस्पॉन्स नहीं देते है। ऐसी अज्ञात सत्ता हममें कुछ करती हैं ऐसा स्वीकार करना, ऐसा अनुभव करना और उन परिणामों को भीतर प्रगट होते हुए मान लेना आईगराणं के साथ संबंध स्थापित करना हैं। हमारी खोयी हुई वृत्ति व्यक्ति और वस्तु में बदलती हुयी पर्यायों में निरंतर सुख खोजती ही रहती हैं। वस्तुत: यह पर्याय हैं अत: इसमें परिवर्तन होता ही रहता हैं। ऐसा जानते हुए भी हम अनजान रहते हैं। हम पदार्थ जन्य सुख के अनुभवों को कायम रखने का प्रयास करते हैं। वे कायम नहीं रह सकते हैं। जो आज सुखदायी हैं कल या कभी दुखदायी भी बन सकता हैं। जैसे गरमी के दिनों में जो पंखा सुख देता हैं वही पंखा सर्दियों में दुखदायी लगता हैं। पंखा ऐसा क्यों करता हैं? कभी सुख देता हैं तो कभी दुःख क्यों देता हैं? इसका उत्तर दे सकते हो आप? यदि आपके पास इसका उत्तर नहीं हैं तो आओआईगराणं इसका समाधान करते हैं। यदि सुख पंखे में ही होता तो ऐसा नहीं हो सकता था। क्योंकि पंखे को चलाते हम हैं वह स्वयं न चलता हैं न बंद होता हैं। जो चलाता हैं या बंद करता हैं उसे सुख दुख का अनुभव होता हैं। अनुभव किसको होता हैं? यदि शरीर को होता हैं तो मृतदेह को भी अनुभव हो सकता था। इसका मतलब देह के भीतर अवश्य ऐसा कुछ देहातीत है जो सुख दुःख की अनुभूति करता हैं। . ज्ञानी पुरुष इसे आसान करते हुए कहते हैं कि, देह के और आत्मा के भेद को समझने की प्रक्रिया हैं उपयोग और उपासना। वस्तु का उपयोग करो और जीव की उपासना करो। अक्सर संसार में लोग जीव का उपयोग करते हैं और पदार्थ की उपासना करते हैं। वस्तु पदार्थ को सम्हाल सम्हालकर वापरते हैं। उदाहरण के लिए देखिए हम जिस मकान में बरसों तक रहते है हम जितनी बार गिरते हैं हम रोते हैं मकान कभी नहीं रोता लेकिन एक ईंट खिसक जाती है तो भी कौन रोता है ? मकान नहीं रोता हम रोते हैं।
संसार में कई कार्यक्रमों का उद्घाटन होता हैं। परंतु यहाँ तो कोई कार्यक्रम ही नहीं हैं, किसका उद्घाटन होगा यहाँ। न वस्तु हैं न वास्तु हैं न व्यावसायिक प्रतिष्ठान। संसार के उद्घाटन में रिबिन काटनेवालों का ध्यान