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रही हो? मॉ ने कहा, अब बच्चे का जगना जरुरी है क्योंकि शयन स्वप्न है और जागरण जीवन है। जो सोता है वही जगता है। जिसे सोना ही नहीं आता वो जगेगा क्या।।
शास्त्रकारों ने जाग्रत पुरुषों की तीन कॅटेगरी बताई है। पहले वे ज्ञानी पुरुष जो जगत के सब जीवों को शासन प्रेमी बनाकर मोक्ष ले जाने की भावना रखते हैं वे तीर्थंकर होते हैं। दुसरे जो अपने स्वजन संबंधी, मित्र आदि सब परिचित जीवों को मोक्ष तक पहुंचाने की जीम्मेवारी लेते है वे गणधर होते है। तीसरे वे जो स्वयं साधना करते है और स्वयं मोक्षजाते है वे सामान्य केवली होते हैं। ___इन्द्र से पराजित होते हुए दशार्णभद्र राजा जब भगवान महावीर के चरणों में मस्तक झुकाते हैं तब भगवान ने उन्हें ऐसा क्या कहा था की भगवान ने कहा, “भद्र ! स्व में आओ स्व में जाग्रत हो जाओ। संबुद्ध हो जाओ। जिसे तुमने अपना ऐश्वर्य माना है वह सिर्फ पदार्थ मात्र है। वह जगत् का है और जगत् में ही रहेगा। न तुम्हारा हैं न तुम्हारे साथ जाएगा। तुम्हारे भीतर तुम्हारा अपार वैभव है। जिस वैभव के साथ इन्द्र कभी प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकता। सत्त्व संपन्न होकर अंतवैभव को देखो। स्वयं संबुद्धत्त्व तुम्हारा धर्म है।"
दशार्णभद्र राजा की चेतना जग गई। जन्म जन्म के अंधारा टूट गया। जीवन में एक ऐसा सूरज उगा जिसने हमेशा के लिए अंधेरे की छेद दिया। संबुद्धत्त्व धर्म को पाकर दशार्णभद्र का मस्तक प्रभु चरणों में झुक गया। शर्मिंदा करने आये हुए इन्द्र स्वयं शरमा गए। गदगदित होकर इन्द्र ने प्रभु को बधाई दी विरती धर्म की जयघोषणा हुयी। सयंसंबुद्धाणं ऐसे होते हैं। स्व को भेदते है। स्व को जगाते है। सबको संबुद्ध करते हैं। चलो हम भी सयं संबुद्धाणं होने के लिए
नमोत्युणं सयं संधुद्धाणं. . . .नमोत्थुणं सयं संधुद्धाणं. . . .नव्मोत्थुणं सयं संधुद्धाणं. ...