Book Title: Namotthunam Ek Divya Sadhna
Author(s): Divyaprabhashreeji
Publisher: Choradiya Charitable Trust

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Page 43
________________ हुआ। लेप हट जानेपर तुंबी ऊपर आयी क्योंकि तुंबी स्वयं हलकी ही थी । मिट्टी के कारण वह भारी थी। यह हलकापना तुंबी का अपना स्वभाव था । इसीतरह भव्यआत्मा में स्वाभाविक ऊर्ध्वगमन होता हैं। लेपरहित होते ही वह सहज स्वाभाविक सिद्ध दशा को प्राप्त हो जाता हैं । पूर्वकथित इन प्रयोगोंसे ये तो निश्चित होता हैं कि, सिद्धत्त्व के सामर्थ्यवाले जीवों का प्रयोग के माध्यम से मोक्ष संभव हैं। ऊर्ध्वगमन उनका स्वयं का स्वभाव है। इस बात का स्वीकार करलेनेपर एक प्रश्न होता हैं जब ऊर्ध्वगमन स्वभाव हैं तो जीव नीचे जाता क्यों हैं? यद्यपी तुंबी के दृष्टांत ने समजाया भी कि, तुंबी में नीचे जाने का कारण लेप हैं और जीव के निम्नगमन में कारण कर्म हैं। आप सोचोगे कि जीव कर्मबंधन करता क्यों हैं? इस गूढ प्रश्न का समाधान करने हेतु ज्ञानीपुरुषोंने कर्मबंध का कारण संगत को माना हैं। असंगता कर्मबंध से निवृत्त करने में सहायक होता है। व्यवहार भाषा का एक सामान्य उदाहरण इसे स्पष्ट करता हैं । आपने अंग्रेजी भाषा में आई शब्द का प्रयोग किया होगा। यह तरह से लिखा जाता हैं - I और i। अब देखिए I अर्थात् मैं। मैं स्वयं में अकेला हैं। मैं एक स्वतंत्र सत्ता हैं। यह मैं समस्त द्रव्यों से भिन्न हैं । अनंतकाल से चैतन्यसत्ता कर्मपरमाणु के साथ रहते हुए भी कभी क्षणवार भी अंशात्मक रुप में कर्ममय नहीं बन सकती हैं। उसका अपना स्वतंत्र अस्तित्त्व सदा स्वतंत्र ही रहता हैं। वैराग्य बुद्धि में आप कईबार जीव अकेला आया है अकेला जाएगा कोई किसी का नहीं है ऐसी भाषा का प्रयोग करते हैं। मैं के लिए हमेशा बडे I का उपयोग होता हैं। आई के आगे या पीछे एस एन आदि जोडते समय छोटे आई का प्रयोग होता है। हमारा प्रश्न है कर्म बंध क्यों होता है? हमारी स्वतंत्र सत्ता I है । इस I के साथ जब पर की संगत होती है तब वह छोटा बन जाता है। संगत करना कर्मबंध का कारण हैं। लेप के संग से तुंबी डुबती हैं और लेपरहित होनेपर ऊपर तैरने लगती है। कर्मबंध के चार प्रकार हैं- स्पष्ट, बद्ध, निधत्त और निकाचित । पहला प्रकार स्पष्ट है। स्पष्ट अर्थात् स्पर्शा हुआ। कभी किसी कारण से कोई स्त्री घर से बाहर गयी हो । घर में बच्चे कैची से कागद आदि काटकर और अन्य पदार्थों से घर में कचरा करते हैं। वह स्त्री वापस लौटकर घर में झाडू लगाकर सफाई करती हैं। इसीतरह आत्मा के उपर कार्मिक रजें सिर्फ छायी हुयी होती हैं। इन रजकणों को सिर्फ भक्तिरुपी झाडू से साफ किया जाता है । दूसरा प्रकार बद्ध है। दूसरे दिन वह स्त्री बाहर से घर लौटी। उसने देखा आज घर में बारीश के कारण कीचड जम गया हैं सिर्फ झाडु से काम न चलेगा पोछा भी लगाना पडेगा। इसीतरह बद्धकर्म को जो आत्मा के साथ बंधे हुए हैं उन्हें नाम के साथ स्मरण, भक्ति, ध्यान कायोत्सर्ग की आवश्यकता हैं। कर्मबंधन का तीसरा प्रकार निध्धत्त हैं। तीसरे दिन उसके घर में दूध, घी, तेल आदि से घर चिकना हो गया था। उस महिला ने उस दिन सफाई में साबुन आदि के साथ कमरे की सफाई की। कर्मबंधन के निध्धत्त स्वरुप में कर्मों की बद्धता चिकनाहट के साथ होती है । इसे हटाने के लिए क्रिया-प्रक्रिया के साथ भावनात्मक और प्रयोगात्मक प्रयास होते है। जैसे दूध में नींबू नीचोडनेसे दूध और पानी अलग हो जाते है, उसी तरह क्षमा, आलोचना, तप आदि द्वारा कर्मों को आत्मा से अलग किये जाते हैं। चौथा प्रकार है निकाचित। इस उदाहरण में घर में पेंटिंग करते हुए रंग आदि से घर को गंदा किया हुआ हैं। कर्मोंके इस प्रकार में इतनी गूढता होती है कि, इनका क्षय नहीं हो पाता है। उन्हें भुगतनाही पडता है। इन कर्मबंधन भुगतते समय समकित जीव नये कर्मबंधन से बचने के लिए परमात्मा से समता रखने का सामर्थ्य मागते है। सामायिक सूत्र में कर्मपरमाणुओं से मुक्त होने के लिए चतुष्करण प्रयोग दिया गया है। ये चार करण इस प्रकार हैं - 41

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