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लोगों को परमात्मा की स्पर्शना होती है। किस चीज की स्पर्शना होती है? किस चीज को छूने की बात की है यहाँ ? आप जब सामायिक करते है उसके समापन में कहते हैं - "समकाएणं न फासियं न पालियं न तिरियन कित्तीयं ....... तस्स मिच्छामि दुक्कडं।" यहाँ कहने का तात्पर्य यह है की स्पर्श न किया हो, पालन न किया हो आदि आदि तो तस्स मिच्छामि दुक्कडं अर्थात स्पर्श होना आवश्यक है। यहाँ आठ स्पर्शोवाले स्पर्श का कथन नहीं है। या आत्मस्पर्शना का कथन है। आत्मस्पर्शना न होना एक दोष है और उसी दोष के निवारणका मिच्छामि दुक्कडं है। मिच्छामि दुक्कडं आलोचना की बहुत बडी कडी है। मोक्ष की मंगलमय आरती है। दो शब्दों में संपूर्ण निवृत्ति का विधान है। स्पर्शना न होने के कारण यह केवल मात्र शाब्दिक अभिव्यंजना रह जाता है।
राजस्थान में खमतखामणा करने का ऐसा रिवाज था। छोटे लोग बडे लोगों के पास जाते थे। एकबार राजस्थान का कोई व्यापारी अपने गाँव से पाली में किसी काम के लिए पहुंचा हुआ था। पाली में पहुंचते ही संवत्सरी का दिन आ गया। उसने वहीपर पाली में ही पौषध कर लिया प्रतिक्रमण भी कर लिया। समूह में बैठ कर पारणा भी कर लिया फिर सोचा गाँव जाने की गाडी शाम को ५-६ बजे है तो सोचा मेरा ससुराल यही पर है । सासु धापीबाई भी अभी यहीपर आयी है। उसे मिल भी लूं और उनकी बेटी की तरफ से खमतखामणा भी कर लू। ऐसा सोचकर वह सासु माँ के यहाँ पहुंचा। खमतखामणा सा! बोलते हुए घर में प्रवेश किया। अचानक जवाई को घर के आंगन में देखकर सासु माँ घबरा गई। जीमने का टाईम है। मैं ने तो सिर्फ पतीली में दलीया बनाया है। इसे थूलि भी कहते है। जिसमें मनचाहा घी, गुड़ अथवा शक्कर डाल कर खाया जाता है। अचानक जवाई को आए देखकर पहले तो उसने बूंघट निकाला। चूंघट में से देखते हुए बोलने लगी। अरे कॅवर सा आज काय आया दूजा किसा दिन आवता तो मैं थाने जिमावती भी अने इस टाइम में आया कि मै काई बणा भी ना सकू। बोले कोई बात नहीं माताजी आपने अपने लिए जो बनाया उसमें से दो कवे खा लूंगा। ये तो मैं किसी काम से आया था। अनायास संवत्सरी आ गई तो सोचा प्रत्यक्ष खमतखामणा कर लूँ और आपको आपकी बेटी की खबर भी दे दू। उसके भी मिच्छामि दुक्कडं दे दू। तो सासुको लगा कि जमाई आए है तो जमाई को कुछ देना भी पडेगा। खिलाना भी पडेगा। जमाई ने कहा आपको मेरी कसम है आपने मेरे लिए कुछ बनाया तो। जो आपने बनाया उसीमें से आपके साथ बैठकर दो कवें खा लूंगा। बताईए आपने अपने लिए क्या बनाया। सास कहती है मैंने तो अपने लिए थुली बनाई है। चिंता मत करो मै थूलि खा लूंगा। आप भी ये बूंघट यूँघट हटाइए। इन सब का जमाना गया। आप तो मेरे साथ बैठिए आराम से परोसीए। मै भी दलीया ही खाऊंगा। तो सासु बोलती है ठीक है और कोई चीज नहीं बनानी पडेगी। सासु अंदर जाती है गर्म-गर्म थुली निकालती है। थाली में परोसकर जवांई के पास रखकर फिर घी लाने जाती है। राजस्थान में घी के बडे सिस्टम रहते है। जिसमें घी रखते है उसे घिलोडी कहते है उसमें एक नालछा लगा रहता है जिसमें से घी परोसा जाता है। घिलोडी में घी गर्म करके सासु मां रखती है और पूछती है, कॅवरसा दलियारा साथे काई चाले, गुड या शाकर? बोले माता जी कुछ भी चलेगा जो तैयार हो वो ले आओ। जमाई ने सोचा घी कैसा है ? थोडा देखें तो सही उसने घीलोडी को हाथ की ओर झुकाया तो मुश्किल से घी की दोन बूंदे टपकी। सोचा क्या रुकावट है देखू तो
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