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नमोत्थुणं - सयंसंबुद्धाणं .
स्व में स्व को जानना सयंसंबुद्धाणं है। स्व से स्व को जानना सयंसंबुद्धाणं है। सर्व के स्व को जानना सयंसंबुद्धाणं है। ...
सर्व में स्व को प्रकट करना स्वयंसंबुद्धाणं है। स्व ने स्वयं का स्वयं द्वारा, स्वयं के लिए स्वयं से स्वयं के स्वयं में प्रगट होना सयंसंधुद्धाणं है। स्व ने स्वयं का स्वयं द्वारा, स्वयं के लिए स्वयं से स्वयं के स्वयं में प्रवेश करना सयंसंबुद्धाणं है।
स्वयं का स्वीकार करो, स्वयं से ही प्यार करो। वह स्वयं तुम्हारे साथ है, तुम स्वयं स्वयं के साथ रहो। तू स्वयं का अनुदान है, तू स्वयं समाधान है।
तू स्वयं इन्सान है, तू स्वयं भगवान है। तू स्वयं की शोध और तू स्वयं का बोध है। तू स्वयं से संदिग्ध है, तू स्वयं मे उपलब्ध है।
तू भले अवरुद्ध है पर तू सदा अनिरुद्ध है। तू भले अबुद्ध है पर तू स्वयंसंबुद्ध है। तू शुद्ध है, तू बुद्ध है, तू स्वयं संबुद्ध है।
आँखें बंद करे। गहरी गहरी लंबी-लंबी धीमी-धीमी सांसों के साथ भीतर प्रवेश करे। आइए भीतर आइए। स्वयं में प्रवेश कीजिए। देखिए भीतर भगवान है। सुनिए भगवान क्या कहते हैं - वत्स ! स्वयं के भीतर प्रवेश कर, अनुभव कर जो प्रतिपल, प्रतिक्षण भीतर प्रवाहित हो रहा है। अनुभूत हो रहा है। उसका अनुभव कर।तू तेरे से जितना नजदीक है उतना नजदीक विश्व में ओर कोई नहीं हो सकता। सर्वात्ममें समदृष्टि तेरा स्वभाव है। परिघ में जो भी बनता है बनने दे। तू केंद्र में स्थिर रह। जाग्रत और संबुद्ध रह। इस स्थिति में आने के लिए मैं भी सयं पवेसिया जाई - मैं ने स्वयं में प्रवेश किया क्योंकि स्वयं ही अनन्य हैं। अन्य सब अन्य है। स्वयं में आने के लिए अनन्य को ही देखना है अनन्य में ही रहना है और अनन्य में ही रमण करना है। क्योंकि,
__ जो अणण्णदंसी से अणण्णारामी,
जे अणण्णारामी से अणण्णदंसी। जो अनन्य (स्वयं) को देखता है वह स्वयं में रहता है। जो स्वयं में रमण करता है वह स्वयं को देखता है। अत: वत्स! अप्प दीवो भव। स्वयं ही स्वयं के दीपक बनो भीतर से स्वयं का आलोक प्रगट करो।अन्य के बारे में