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आइगराणं
4 आईगराणं।
अंत हो गया अंत का, अरिहंत प्रभु अनंत। भव, भय, भ्रम सब ना रहे, प्रगट भये भगवंत । आदि करो मुझ में प्रभु, दो सुख सादि अनंत।
बोधि समाधि सिद्धिरुप भय भंजन भगवंत। जो अनंत समाधि सुखकी आदि करते हैं वे आईगराणं। जो अनंत समाधि सुखका प्रारंभ करते हैं वे आईगराणं।
जो अनंत समाधि सुखका उद्घाटन करते हैं वे आईगराणं । जो अनादि अनंत हैं उस अनादि अनंत की आदि करने के कारण इस पद के उपास्य को आईगराणं कहा गया हैं। प्रस्तुत दोनों पद अरिहंताणं और भगवंताणं में हमने अंत की चर्चा की हैं । कितने कुछ अंत के बाद इस पद में आदि की चर्चा की जा रही हैं। स्पष्ट हैं कि यह कुछ ऐसी आदि हैं जिसके पहले कुछ अंत की आवश्यकता हैं। अंत के बाद ही अनंत की आदि हैं। अनंत कालसे अनंत बार अनंतज्ञान अनंतदर्शन, अनंतसुख, अनंतवीर्य, अनंतसमाधि ऐसे अनंत की हमें खोज हैं। अनंतकाल की खोज के बाद भी आईगराणं के साथ न रहने से खोज की आदि नहीं हो पाई। नमोत्थुणं यह सतस्वरुपकी शोधमयी शुरुआत है। अनादि काल से जिसकी शोध शुध्धि और सिध्धि हो चुकी है नमोत्थुणं उसकी आदि है। शोध उसकी होती है जिसकी कभी शरुआत हुई हो। दूसरी तरह से कहे तो शोध उसकी होती है जिसका अंत नहीं हुआ। अथवा ऐसा भी कहते है शोध उसकी है जो है पर अगम अगोचर है। जैसे हम स्वयं और हमारा अपना सत्स्वरुप।
अब एक छोटा सा शब्द देकर सूत्रकार हमारा विकासयात्रामें प्रवेश कराते हे यह पद है आईगराणं जिसका अर्थ है आदि करनेवाले। किस चीज की आदि, किस चीज की शुरुआत, किस चीजका प्रारंभ ? कितना अजीब है यह आयोजन। पहले है अंत की चर्चा और बादमें है आदि की चर्चा? कितना उलटा क्रम है यह ? आदि की चर्चा पहले और अंत की चर्चा बादमें हो सकती है, परंतु अंत की पहले और आदि की बादमें कैसे संभव है ? सबसे बड़ा प्रश्न तो यही हैं कि, वे आदि किसकी करेंगे? हमनें कितनी आदि करी हैं? सोचो तो बडा लिस्ट बन जाता है। जन्म लेते ही रोने कि शुरुआत की। आँख खोलते ही देखने की, भूख लगते ही खाने की, प्यास लगते ही पीने की शुरुआत की। अब तो बडा लिस्ट है। बोतल छोडी ग्लास में पीने की आदि। खाना शुरु किया। चलना शुरु किया। शिक्षा व्यवस्था की आदि हुई। अभी अभी एक महिला आई कहती थी, बेटी के लिए लडका और बेटे के लिए लडकी देखनी की शुरुआत कर रहे हैं। कहा न मैं ने, बडा लिस्ट बनेगा। फिर भी ऐसा कुछ बाकी है, जिसकी
आदि प्रभु करने वाले हैं और वह आदिमात्र भगवंताणं ही कर सकते हैं। अव्यवहार राशी से व्यवहार राशी की यात्रा सिद्ध भगवान कराते हैं परंतु व्यवहार राशी में आनेपर मोक्ष यात्रा की आदि अरिहंत भगवान करते हैं। बहते नदी के प्रवाह में रुलते हुए पत्थर की तरह हमारा काफी समय बीत गया।
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