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भगवंताणं शब्द को समझाते हुये व्याख्याकारोंने "भग" शब्द के छ: अर्थ प्रस्तुत किये हैं। इसे भगवत्षटक् कहते हैं।
समग्र ऐश्वर्य, समग्ररुप, समग्र यश, समग्रधर्म और समग्र प्रयत्न।
परमात्मा की ये छहों चीजें अत्यंत उत्कृष्ट होती हैं, परंतु हमें इससे क्या लाभ हो सकता है ? वृत्तिकार ज्ञानी पुरुष हमें इसका उत्तर देते हुए समझाते है कि इसी कारण यहाँ छहों अर्थ के पूर्व “समग्र" शब्द लगाया गया है। समग्र अर्थात अखंड, अविभाज्य पृथ्वीतल से लेकर लोकाग्र तक व्याप्त। इस समग्रता के कारण भगवत्ता का हमारे साथ संबंध बन जाता है।
परमात्मा का समग्र ऐश्वर्य हमारी निजचेतना का साक्षात्कार है। परमात्मा का समग्ररुप हमारी निजचेतना के हस्ताक्षर है। परमात्मा का समग्र यशहमारे पुण्य का अविष्कार करता है। परमात्मा कीसमग्र श्रीहमारे भाग्यका संस्कार करती है। परमात्मा का समग्रधर्म हमें मिला हुआ परमार्थ पुरस्कार है। परमात्मा का समग्र प्रयत्नहमारे सिद्धत्त्व का मंगलाचार है।
सर्वप्रथम है भगवान का समग्र ऐश्वर्य। समग्र अर्थात अखंड अविभाज्य, अव्यय। जो खंडित नहीं होता, जिसका कोई भाग नहीं होता, जिसका कोई विभाग नहीं होता और जो न कभी बांटा जाता है। यहाँ हम परमात्मा के ऐश्वर्य की बात करते हैं जिसे अद्वितीय पराभोगी संवर्धित ऐश्वर्य कहते है। कोई कितना भी ऐश्वर्य संपन्न हो उससे हमारा क्या मतलब है? हमारे घर के पास किसी श्रीमंत का बंगला हो नित्य नवीन गाडियाँ आती जाती हो हमारे किस काम की? इसी तरह परमत्मा का ऐश्वर्य कितना भी क्यों न हो हमें कैसे काम आएगा? आपके पास ऐश्वर्य है या वैभव है? वैभव और ऐश्वर्य में क्या अंतर है? जो है परंतु दिखता नहीं उपभोग में नही आता है वह वैभव है वही जब बाहर आकर उपयोग में आता है तब वह ऐश्वर्य बन जाता है। जैसे सेफ में जेवर होते है वह वैभव है। जब किसी प्रसंग पर उन्हें निकाल कर धारण किया जाता है। सब के सामने वैभव प्रगट होता है तब ऐश्वर्य बन जाता है। इसे भक्तामर स्तोत्र में अच्छी तरह समझाया गया है -
इत्थं यथा तव विभूतिर्भूजिनेन्द्र, धर्मोपदेशनविधौ न तथा परस्य। ___ यहा परमात्मा की विभूति का वर्णन करते हुये कहा है कि हे जिनेन्द्र ! आपकी विभूति अर्थात वैभव धर्मोपदेश के समय पराभोगी बन जाता है। हमारा वैभव और ऐश्वर्य स्वभोगी होता है। परमात्मा का ऐश्वर्य पराभोगी होता है। इसलिए यहाँ वैभव को विभूति कहा है। भू याने रक्षा करना। जैसे भभूति भ याने भस्म भूति याने राख। जो राख से रक्षा करते है उसे भभूति कहते है। विभूति अर्थात विशेष रुप से रक्षा करनेवाले। इसी भूति शब्द पर से इन्द्रभूति, अग्निभूति और वायुभूति तीनो गणधर बंधुओं के नाम है। इन्द्र की तरह जगत की रक्षा करनेवाला तेरा बेटा होगा ऐसा स्वप्न में जानकर गौतमस्वामी की माता ने उनका नाम इन्द्रभूति गौतम रखा था। इसीतरह अग्निकाय की रक्षा करने के कारण अग्निभूति और वायुकाय की रक्षा करने कारण वायुभूति नाम रखा था।
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