Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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ग्रहों का गणित : काकासा का फलित
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(पापो व्योम गतोश्वव पितुद्रव्यं न भुज्यते) मंगल क्रूर ग्रह है । इनकी दृष्टि पिता की प्रोपर्टी से मन को विरक्त करती है। मित्रों व वाहनों से विरक्त, परदेश में प्रवास करने वाला, सहनशक्ति कम, पित्तप्रधान, यह मंगल अपना प्रभाव करता है। धन भवन में बुध सूर्य के साथ
विमल-शील-युतो गुरुवत्सलः कुशलताकलितार्थमहत्सुखः।
विपुल-कांति-समुन्नति-संयुतो, धननिकेतनगे शशिनन्दने । अर्थात्-बुध धर्म घर का व शत्रु घर का मालिक है और सूर्य के साथ है, बुध वैश्य ग्रह है, निर्मल शील धारण करने वाला, जनप्रिय, अपने कार्य में दक्ष, सुखी जीवन, उन्नति के साथ ख्याति प्राप्त करवाता है, धर्म के अन्दर रुचि, यह बुध का प्रभाव है। सूर्य बुध का शामिल बैठना
प्रियवचाः सचिवो बहुसेवयाजितधनश्रवकलाकुशलो भवेत् ।
श्रुतपटुहि नरो नलिनीपतौ, कुमुदिनीप्रतिसूनु समन्विते ॥ अर्थात्-सूर्य बुध का एक स्थान में शामिल बैठना अच्छा रहता है, क्योंकि दोनों ग्रहों की प्रायः एक ही गति रहती है, मीठों शब्दों द्वारा अपना कार्य करवाने में कुशल, मैत्री, सेवा का भाव रखना, धन एकत्र करना, कलाओं में प्रवीण और शास्त्र का जानकार, चतुर । बृहस्पति भाग्य भवन में
नरपतेर्सचिवः सुकृतीवकृती-सकलशास्त्रकलाकलनादरः ।
व्रतकरो हि नरो द्विजतत्परः, सुरपुरोधसि वै तपसि स्थिते ॥ अर्थात्-बृहस्पति पराक्रम एवं व्यय भाव का अधिपति होकर भाग्यभवन के अन्दर, यही स्थान धर्मस्थान भी रहता है, बृहस्पति पूर्ण दृष्टि से लग्न को, अपने पराक्रम घर को, बुद्धि भवन को देख रहा है, यह उत्तम योग माना गया है । अपने प्रभाव के अन्दर ऋद्धि, बुद्धि, तेज, स्मरण शक्ति अच्छी, अपनी प्रशंसा प्यारी, अहंपत धर्म के अन्दर लगन यह बृहस्पति का स्वभाव है, राज्य मंत्रितुल्यमान प्राप्त, श्रेष्ठ कार्य करने में सदैव रुचि, चतुरता, सर्व शास्त्रों की जिज्ञासा, एकाग्रह, गुरुभक्ति, धर्म करते समय प्राण विसर्जन हों, ऐसा बृहस्पति का प्रभाव रहेगा।
भृगु लग्न में
बहुकलाकुशलो विमलोक्तिकृत, सुवदना मवनानुभव: पुमान् ।
अवनिनायक मानधनान्वितो, भृगुसुते तनुभावगते सति ॥ अर्थात्-शुक्र कर्मश एवं पंचमेश शुक्र लग्न में है वह श्रेष्ठ योग, केन्द्र त्रिकोण का मालिक होना, राजयोग, शुक्र म्लेच्छग्रह होने से कथनी और करनी में कभी-कभी अन्तर पैदा करता है। शुक्र का केन्द्र में
एको शुक्रो जननसमये लाभसंस्थे च केन्द्र जातो, वै जन्मराशौ यदि सहजगते प्राप्यते व त्रिकोणे । विद्याविज्ञानयुक्तो भवति नरपतिविश्वविख्यात कीतिः,
दानी मानी च शूरो हयगणसहितः सद्गजर्सेव्यमानः ॥ अर्थात्-इसी के प्रभाव से शिक्षा विज्ञान पर रुचि, दृढ़ विचार, विश्व के अन्दर कीति फैलाता है इसको राजयोग कहते हैं।
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