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जैन-रत्न
जड़ हों वह धर्म अनादि अनन्त है यह बात मानलेनेमें किसीको कोई ऐतराज नहीं हो सकता। दुनियामें जितने धर्म प्रचलित हैं उन सबमें उपर्युक्त सिद्धान्त ही किसी और किसी अंशमें काम कर रहे हैं। और उन्हीं सिद्धान्तोंके कारण वे धर्म टिके हुए हैं। __जैनधर्ममें उपर्युक्त सिद्धान्तोंकी विस्तृत विवेचना की गई है । उन सिद्धान्तोंके अनुसार जीवन बितानेवाली आत्माएँ महान् हुई हैं, होती हैं और होती रहेंगी। ऐसे सिद्धान्तोंको पालनेवाले सामान्य जीव भी सर्वज्ञ-सिद्ध-ईश्वर तक हो सकते हैं। एक महात्माने कहा है कि
'जो नर करणी करे, तो नर नारायण होय ।'
यह कथन बिल्कुल ठीक है। आदमी अगर करणी करे यानी वह सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य इन पाँच सिद्धान्तोंका अपने जीवनमें पूरा पालन करे तो वह आदमी मामूली आदमी मिटकर नारायण-ईश्वर-सर्वज्ञ बन जाता है।
जो पूर्णरूपसे इन सिद्धान्तोंको पालते हैं वे ईश्वर-तीर्थकर या सामान्य केवली-सर्वज्ञ होते हैं । जो इनका पालन करनेमें कुछ कमी करते हैं वे उनसे नीचे दर्जेके होते हैं । जैनशास्त्रोंने उनके चक्रवर्ती, वासुदेव, बलदेव, पति वासुदेव और श्रावक ऐसे दर्जे गिनाये हैं। आचार्य, उपाध्याय और साधु ये पूर्ण रूपसे पाँचों सिद्धान्तोंको पालनेवालोंकी पंक्तिमें आ जाते हैं।
जैनरत्नमें हम उपयुक्त सिद्धान्तोंका जिन महापुरुषोंने पालन किया है या करते हैं उन्हींके जीवनका परिचय करायँगे ।
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