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जैन-रत्न
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- आश्रय
सुख और दुःख जिनके सामने तुच्छ थे; मोह-माया जिनको कभी विचलित न कर सके; आरंभ किया हुआ काम जिन्होंने कभी अधूरा नहीं छोड़ा, आत्मकल्याण और जीव मात्रकी भलाई करना जिनका ध्रुव ध्येय था; भयका भयंकर भूत और स्नेहका हृदयको पानी पानी कर देनेवाला महान स्वर्गीय देव जिनको कभी अपने स्थिर मार्गसे चहित नहीं कर सका और जिनका नाम प्रत्येक मानव हृदय-पटपर, जानमें या अजानमें, अंकित है उन्हीं वीतराग वीर प्रभुका बलदायक आश्रय ग्रहणकर आज 'जैनरत्न'का यह महान कार्य आरंभ करता हूँ।
आरंभ
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जैनशास्त्र कहते हैं कि, जैनधर्म अनादि अनंत है । इस कथनमें कोई अतिशयोक्ति नहीं मालूम होती। कारण सत्य और अहिंसा, अस्तेय और अपरिग्रह एवं ब्रह्मचर्य ये सिद्धान्त अनादि अनन्त हैं। कोई नहीं बता सकता कि वे कबसे आरंभ हुए और कबतक रहेंगे ? ऐसे महान् सिद्धान्त जिस धर्मकी
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