Book Title: Jain Puran kosha
Author(s): Pravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan
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इन्द्रत्याग-इन्द्रसुखोदयक्रिया
जैन पुराणकोश : ५५
ने इसे बन्धनमुक्त किया था। वजमाली इसी का पुत्र था । अनन्त- इन्द्रप्रभ-माया और पराक्रम से युक्त राक्षसवंशी लंका का राजा । वीर्य मुनि से अपना पूर्वभव ज्ञात करके इसने उनसे दीक्षा ले ली थी। पपु० ५.३८७-४०० इसने अनेक ऋद्धियाँ प्राप्त की और अन्त में ध्यान लीन होकर मुक्ति इन्द्रभूति-(१) मगधदेश के अचलग्रामवासी धरणीजट ब्राह्मण और प्राप्त की। मपु० ६८.५१८-६२४, पपु० ८.१५३-१५४, ६०.१०९, उसकी पत्नी अग्निला का पुत्र, अग्निभूति का सहोदर। मपु० ६२. ७०.२६, ७८.८-३१, ६३-८२, ८०.१२७-१२८, ११८.२३
३२५-३२६ इन्द्रत्याग-स्वर्ग के राज्य को छोड़ने की इन्द्र की क्रिया । स्वर्ग में अपनी
(२) गौतम गोत्रीय महाभिमानी वेदपाठी-ब्राह्मण । भगवान्
महावीर के समवसरण में मानस्तम्भ देखकर इनका मानभंग हो गया आयु की स्थिति थोड़ी रह जाने पर पृथ्वी पर अपनी च्युति का समय निकट जानकर स्वर्ग-भोगों के प्रति अपनी उदासीनता दिखाते हुए
था। इन्होंने अपने पाँच सौ शिष्यों के साथ दीक्षा धारण की थी। इन्द्र देवों से कहता है कि वह भावी इन्द्र के लिए अपना स्वर्ग
तप करके इन्होंने सात ऋद्धियाँ प्राप्त की थीं। महावीर के ये प्रथम माम्राज्य अर्पित करता है । मपु० ३८.२०३-२१३
गणधर हुए । श्रावण कृष्णा एकम के पूर्वाह्न में ये श्रुतज्ञानी हुए और
उसी तिथि को पूर्व रात्रि में इन्होंने सम्पूर्ण श्रत को आगम के रूप इन्द्रवत्त-(१) साकेत का राजा । दीक्षा के पश्चात् तीर्थंकर अभिनन्दन
में निबद्ध कर दिया था । इनका दूसरा नाम गौतम है । सुधर्माचार्य नाथ को इसने ही पहली बार आहार दिया था। मपु० ५०.५४
ने इनसे ही श्रुत प्राप्त किया था। इन्द्र द्वारा पूजित होने से इनको (२) विजयाध पर्वत की उत्तरश्रेणी में स्थित शुक्रप्रभनगर का
यह नाम मिला था। अन्त में विपुलाचल पर्वत पर इन्होंने मोक्ष पाया राजा, यशोधरा का पति और वायुवेग का पिता । मपु० ६३.९१-९२
था। मपु० २.५३, ७४.३५६-३७२, ७६.५०७-५१७, पपु० १.४१, (३) कौशाम्बी के राजा कोशावत्स का पुत्र । यह विशिखाचार्य
हपु० १.६०, ३.४१, वीवच०१८. १५९-१६० का शिष्य था। इसकी बहन का नाम इन्द्रदत्ता या । पपु० ९१.३०-३२
इन्द्रमत-किष्कपुर का राजा, इन्द्रायुधप्रभ का पुत्र और मेरु का जनक । इन्द्रदत्ता-कौशाम्बी के राजा कोशावत्स की पुत्री । इसका विवाह अचल
पपु० ६.१६१ के साथ हुआ था । पपु० ९१.३०-३२ दे० अचल-१४
इन्द्ररथ-(१) इक्ष्वाकुवंशी पयोरथ का पुत्र, दिननाथरथ (सूर्यरथ) इन्द्रद्युम्न-आदित्यवंशी राजा सूर्य का पुत्र और महेन्द्र जित् का जनक ।
का पिता । पपु० २२.१५४-१५९ संसार से विरक्त होकर यह निर्ग्रन्थ हुआ और इसने मोक्ष प्राप्त
(२) रावण का जीव । सीता के जीव भरतक्षेत्र के रत्नस्थलपुर किया । पपु० ५.४-१०, हपु० १३.१०-१२
नगर के चक्ररथ नामक चक्रवर्ती का पुत्र । पपु० १२३.१२१-१२२ इन्द्रध्वज-(१) समवसरण की एक ध्वजा। समवसरण की भूमि के इन्द्रराम-जमदग्नि और रेणुकी का पुत्र, श्वेतराम का सहोदर । अपर
जयांगण के मध्य में सुवर्णमय पीठ पर इसी ध्वजा को फहराया जाता नाम परशुराम । मपु० ६५.९०-९२, १३१-१३२ है । हपु० ५७.८३-८५
इन्द्रवंश-एक राजवंश । राजा वनजंघ इसो वंश का था । पपु० ९८. (२) इन्द्र द्वारा की जानेवाली जितेन्द्र को एक पूजा। मपु० ९६-९७ ३८.३२
इन्द्रवर्मा-(१) रावण का योद्धा। इसने राम के योद्धा कुमुद के साथ (३) भरत के साथ दीक्षित एक राजा । इसने भी भरत के साथ मायामय युद्ध किया था । मपु० ६८.६२१-६२२ मुक्ति प्राप्त की थी । पपु० ३८.१-५
(२) पोदनपुर के राजा चन्द्रदत्त और उसकी रानी देविला का इन्द्रनगर-एक नगर । बालमित्र इसी नगर का राजकुमार था । मपु० पुत्र । पाण्डवों ने इसे कलाओं में निपुण किया था। अपने प्रतिद्वन्दी
स्थूणगन्ध का पाण्डवों द्वारा विनाश करवाकर इसने पुनः राज्य प्राप्त इन्द्रनीलमणि-नीला रत्न । समवसरण के धूलिसाल कोट की रचना किया था। मपु० ७२.२०३-२०५
पद्मराग और इन्द्रनोल मणि से की जाती है । मपु० २२.८८ इन्द्रविधिदानक्रिया-पैतीसवीं गर्भान्वय क्रिया। इस क्रिया में इन्द्र पद इन्द्रपथ-युधिष्ठिर द्वारा बसाया गया नगर । कौरव और पाण्डवों का को प्राप्त जीव नम्रीभूत देवों को अपने-अपने पदों पर नियुक्त करता
राज्य-विभाजन होने के पश्चात् युधिष्ठिर ने इसे ही अपनी राजधानी है । मपु० ३८.१९९ बनाया था। पापु० १६.२-४
इन्द्रवीर्य-कुरुवंशी एक राजा । इसके पूर्ववर्ती राजा वसुरथ और परवर्ती इन्द्रपुर-राजा पौलोम और चरम दोनों के द्वारा रेवा नदी के तट पर राजा चित्रवीर्य, विचित्रवीर्य आदि हुए हैं । हपु० ४५.२७
बसाया गया नगर। इसी नगर के राजा उपेन्द्रसेन ने अपनी पुत्री इन्द्रशर्मा-गिरितट नगर निवासी एक ब्राह्मण । इसके उपदेश से कुमार पद्मावती चक्रपुर नगर के राजा पुण्डरीक को प्रदान की थी। मपु० वसुदेव ने गिरितट नगर के उद्यान में विद्या-सिद्धि का आरम्भ किया ६५.१७७-१७९, हपु० १७.२७ ।
था। हपु० २४.१ इन्द्रप्रचण्ड-विभीषण का सामन्त । यह विभीषण के साथ लंका से इन्द्रसुखोदयक्रिया-छत्तीसवीं गर्भान्वय क्रिया । इस क्रिया में इन्द्रपद को
बहुमूल्य धन तथा शस्त्र आदि लेकर राम के पास गया था। पपु० प्राप्त जीव देवों को अपने-अपने विमानों की ऋद्धि प्रदान करता है। ५५.४०-४१
मपु० ३८.२००
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