Book Title: Jain Puran kosha
Author(s): Pravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 519
________________ परिशिष्ट २०. २१. २२. २३. २४. २५. विधाता विश्वतोमुख विष्णु वृषभ far सूक्ष्म 'महापुराण के अनुसार अहिंसाव्रत भावनाएँ १. मनोति २. वनगुप्ति ३. ईर्यासमिति ४. कायनियन्त्रण ५. विष्वाणसमिति मपु० २०.१६१ १. क्रोध त्याग २. लोभ त्याग ३. भय त्याग ४. हास्य त्याग ५. वृषानुग वाणी बोलना मपु० २०.१६२ १. मिताहार २. उचिताहार ३. अभ्यनुज्ञातग्रहण ४. अहोऽन्यथा ५. संतोष भक्तपान इस प्रकार दाईं ओर दर्शाए गये नाम उनके सामने दर्शाए गये नामों के समानार्थी हैं। ये नाम २५ हैं। ऊपर दर्शाए १३३ नामों में ये २५ नाम कम कर देने से शेष १०८ वे नाम ज्ञात होते हैं जिनके द्वारा चक्री भरतेश ने वृषभदेव की स्तुति की थी । भावनाएँ महाव्रत -भावनाएं ३१ ३१ मपु० २०.१६३ Jain Education International ३५ १. स्त्रीकथा त्याग २. स्त्री आलोकन त्याग ३. स्त्री संसर्ग त्याग ४. प्रातस्मृतयोजनमर्जन ३० ४४ ३८ सत्यव्रत- भावनाएं स्रष्टा विश्वदुक् हरि ज्येष्ठ हर अणीयान् हरिवंशपुराण के अनुसार अहिंसाव्रत भावनाएँ १. सुवारगुप्ति २. सुमनोगुप्ति ३. स्वकालेवीक्ष्य भोजन अचौर्यव्रत भावनाएँ ४. ईर्यासमिति ५. आदान निक्षेपणसमिति १. स्वक्रोध त्याग २. स्व लोभ त्याग ३. स्व भीरुत्व त्याग हपु० ५८.११८ ४. स्व हास्य त्याग ५. उद्ध भाषण (प्रशस्त्र वचन बोलना ) हपु० ५८.११९ १. शून्यागारवास २. विमोचितागारवास ब्रह्मचर्य व्रत भावनाएँ ३१ ३२ ३६ हपु० ५८.१२० ४३ ३६ ४३ ३. अन्यानुपरोधित (परोपरोधाकरण) ४. शुद्धि ५. (स) विसंवाद १. स्त्रीराग कथा श्रवण त्याग २. स्त्री- रम्यांग निरोक्षण त्याग ३. अंग संस्कार का त्याग ४. वृष्य रस त्याग ५. वृष्यरस वर्जन मपु० २०.१६४ इन्द्रियविषयभूत सचित, अचित्त, पदार्थों में आसक्ति का त्याग । १. दर्शनविशुद्धि २. विनयसम्पन्नता ३. शीलव्रतेष्वनतीचार ४. अभीवनोपयोग १. उत्तम क्षमा २. उत्तम मार्दव ३. उत्तम आर्जव ४. उत्तम सत्य ५. उत्तम शौच १. संवेग २. प्रशम ३. स्थैर्य ४. असंमूढता परिग्रह परिमाणव्रत १. मैत्री २. प्रमोद मपु० २०.१६५ सोलह कारण-भावनाएँ ९. वैयावृत्य ५. पूर्व रतस्मृति स्याम हपु० ५८.१२१ ११. आचार्य भक्ति १२. बहुश्रुतभक्ति ५. संवेग १३. प्रवचनभक्ति ६. शक्तितस् त्याग १४. आवश्यक परिहाणि ७. शक्तिस् तप १५. मार्ग प्रभावना ८. साधु-समाधि १६. प्रवचनवात्सल्य मपु० ७.८८, ११.६८-७८, पपु० २.१९२, हपु० ३४.१३१-१४९ धर्मध्यान की इस भावनाएं For Private & Personal Use Only जैन पुराणको ५०१ इन्द्रियों के इष्ट-अनिष्ट विषयों में राग-द्वेष का त्याग करना । १०. अहं भक्ति सम्यक्त्व भावनाएं ६. उत्तम संयम ७. उत्तम तप ८. उत्तम त्याग ९. उत्तम आकिंचन्य १०. उत्तम ब्रह्मचर्य सामान्य चार भावनाएँ हपु० ५८.१२२ ५. अस्मय ६. आस्तिक्य ७. अनुकम्पा मपु० ३८.१५७-१५८ ३. कारुण्य ४. माध्यस्थ मपु० २१.९७ हपु० ५८.१२५ मिथ्या दृष्टियाँ मूलतः दृष्टियां चार प्रकार की होती हैं। ये हैं-क्रियादृष्टि, अक्रियादृष्टि, अज्ञानदृष्टि और विनयदृष्टि । इनमें क्रियादृष्टि के एक सौ अस्सी, अक्रियादृष्टि के चौरासी, अज्ञानदृष्टि के सड़सठ और विनयदृष्टि के बत्तीस भेद होते हैं। चारों की कुल दृष्टियाँ तीन सौ तिरेसठ होती हैं। इन दृष्टियों का विवरण निम्न प्रकार है www.jainelibrary.org

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