Book Title: Jain Puran kosha
Author(s): Pravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 530
________________ ५१२ : जैन पुराणकोश परिशिष्ट मान ११३ १९७ १७८ ९७९. स्वसंवेद्य १४६ १७२ १८५ क्र० सं० नाम ८९७. सहस्राक्ष ८९८. सहिष्णु ८९९. साक्षी ९००. साधु ९०१. सार्व ९०२ सिद्ध ९०३. सिद्धशासन ९०४. सिद्धसंकल्प ९०५. सिद्धसाधन ९०६. सिद्धसाध्य ९०७. सिद्धात्मा ९०८. सिद्धान्तविद् ९०९. सिद्धार्थ ९१०. सिद्धि ९११. सुकृती ९१२. सुखद् ९१३. सुखसादभूत ९१४. सुगत ९१५. सुगति ९१६. सुगुप्त ९१७. सुगुप्तात्मा ९१८. सुघोष ९१९. सुतनु ९२०. सुत्वा ९२१. सुत्रामपूजित १२२ 9 . ११८ ११७ १२२ श्लोक सं० ऋ० सं० नाम श्लोक सं० ऋ० सं० नाम श्लोक सं० क्र०सं० नाम श्लोक सं० १२१ ९२२. सुदर्शन १८१ ९४७. सूक्ष्म १०५ ९७२. स्वभू २०१ १०९ ९१३. सुधी १२५, १७१ ९४८. सूक्ष्मदर्शी २१६ ९७३. स्वयंज्योति १४१ ९२४ सुधौतकलधौतथी २०० ९४९, सूनृतपूतवाक् २१२ ९७४. स्वयंप्रभ १००, ११८ १६३ ९२५, सुनय १७४ ९५०. सूरि १२० ९७५. स्वयंबुद्ध ११९ ९२६. सुनयतत्त्वविद् १४० ९५१. सूर्यकोटिसमप्रभ ९७६. स्वयंभू १०८ ९२७. सुप्रभ १९७ ९५२. सूर्यमूर्ति १२८ ९७७. स्वयंभूष्णु १०८ ९२८. सुप्रसन्न १३२ ९५३. सोममूर्ति १२८ ९७८. स्वर्णाभ १४५ ९२९. सुभग १८४ ९५४. सौम्य १४५ ९३०. सुभुत १४० ९५५ स्तवनाह ९८०. स्वस्थ १८५ १०८ ९३१.सुमुख १७८ ९५६. स्तुतीश्वर १३४ ९८१. स्वामी १४५ ९३२. सुमेधा १७२ ९५७. स्तुत्य १३४ ९८२. स्वास्थ्यभाक १०८ ९३३. सुयज्वा १२७ ९५८. स्थविर ९८३. हतदुर्नय २१० १०८ ९३४. सुरूप १८४ ९५९. स्थविष्ठ १२२ ९८४. हर १६३ १४५ ९३५. सुवर्णवर्ण १९७ ५६०. स्थवीयान् ९८५. हवि १२७ १७४ ९३६. सुवाक् १२० ९६१. स्थाणु ११४ ९८६. हाटका ति २०० १७८ ९३७. सुविधि १२५ ९६२. स्थावर ९८७. हिरण्यगर्भ २१७ ९३८. सुव्रत १७१ ९६३. स्थास्नु २०३ २१० ९३९. सुश्रुत १२० ९६४. स्थेयान् १७६ ९८८. हिरण्यनाभि १२० ९४०. सुश्रुत् १२० ९६५. स्थेष्ठ ९८९. हिरण्यवर्ण १९९ १७८ ९४१. सुसंवृत १४० ९६६. स्नातक ११२ ९९०. हृषीकेश १४० ९४२. सुस्थित १८५ ९६७. स्पष्ट ९९१. हेतु १४३ १७८ ९४३. सुस्थिर २०३ ९६८. स्पष्टाक्षर २०१ ९९२. हेमगर्भ २१० ९४४. सुसौम्यात्मा १२८ ९६९. स्रष्टा १३३ ९९३. हेमाभ १९८ १२७ ९४५. सुहित १७८ ९७०. स्वतन्त्र १२९ ९९४. हेयादेयविचक्षण २१४ १२७ ९४६. सुहृत १७८ ९७१. स्वन्त १२९ वे नाम जिनको पुनरावृत्ति हुई है नाम इलोक सं १४. विभव ११७, ४२४ अधिप १५७, १८९ वृषभ १००, १४३ अनर्घ १७२, १८६ शुद्ध १०८, २१२ अनन्त १०९, १६० १७. सुधी १२५, १७१ अनामय ११४, २१७ स्वयंप्रभ १००, ११८ जगज्जयोति ११४, २०७ महापुराण पर्व २५ (श्लोक ६६ से ९७ तक) में भी आचार्य जिनसेन जगत्पति १०४, ११८ ने तीर्थकर वृषभदेव के अनेक नामों का उल्लेख किया है। इनमें कुछ दमीश्वर नाम अर्हन्तों के गुणों पर आधारित हैं और कुछ नाम ऐसे हैं जिनका निर्मल १२८, १८४ "सहस्रनाम" में भी उल्लेख हो चुका है। कुछ नाम दार्शनिक तत्त्वों पर परंज्योति आधारित है। इस अंश का गहराई से अध्ययन करने पर ऐसे भी नाम ११०, १११ प्राप्त होते है जिनका सहस्रनाम-स्तोत्र में नामोल्लेख नहीं किया गया है परम १४२, १६५ तथा अर्हन्त-गुणों पर भी आधारित नहीं है । ऐसे नाम हैपरमानन्द १७०, १८९ क्रमांक नाम पर्व एवं श्लोक संख्या महोदय १५१,१५३ अकाय २५.९१ योगविद् १२५, १८८ अन्धकान्तक २५.७३ २०१ १८१ क्रमांक 3 ) Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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