Book Title: Jain Puran kosha
Author(s): Pravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan
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ज ननाभिषव - जम्बू
रूप में उत्पन्न इनका पुत्र भामण्डल पूर्व वैर वश एक यक्ष द्वारा हरा जाकर निर्जन वन में छोड़ा गया था। चन्द्रगति ने उसका लालनपालन किया तथा भामण्डल नाम रखा था। जानकी-परिणय के पश्चात् भामण्डल और जानकी एक दूसरे से परिचित होकर हर्षित हुए। इसे भी असीम हर्ष हुआ था। पपु० २६.१११-१४९, ३०.१५५-१५८ आयु के अन्त में मरकर यह आनत स्वर्ग में जहाँ राजा दशरथ, उनकी रानियाँ और भाई कनक सभी मरकर देव हुए थे, यह भी देव हुआ था । पपु० १२३.८०-८१
जननाभिषव तीर्थंकरों का जन्माभिषेक | इसे देव सम्पन्न करते हैं ।
मपु० १३.३६-१६०, पपु० ८१.२२-२३
जनपद सत्य- दस प्रकार के सत्यों में एक सत्य । आर्य-अनार्य सभी देशों में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का साधक कथन जनपद सत्य होता है । हपु० १०.१०४
जनमेजय - चम्पा नगरी का राजा। इसे यहाँ भयंकर काल-कल्प राजा से युद्ध करना पड़ा था । पपु० ८.३०१-३०२
जनवल्लभ - उच्चकुलीन और सदाचारी राजा । इसने भरतेश के साथ
दीक्षित होकर मोक्ष प्राप्त किया था। पापु० ८८.१-२, ४
जनानन्द - प्रमदवन के चारों और स्थित सात उद्यानों में द्वितीय उद्यान । पपु० ४६.१४३-१४५
जनार्दन - श्रीकृष्ण । हपु० ४३.७६ जन्मकल्याण - तीर्थंकरों के जन्म का उत्सव । पापु० २.१२६ दे० जन्माभिषेक
जन्मदन्त - आगामी बारह चक्रवर्तियों में तीसरा चक्रवर्ती। हपु० ६०. ५६४
जन्माभिषेक — सौधर्म और ऐशान स्वर्ग के इन्द्रों द्वारा पाण्डुकशिला पर निर्मित सिंहासन पर जिनेन्द्र को विराजमान कर की गयी उनकी अभिषेक क्रिया । असंख्य देव क्षीरसागर से जल कलश भरकर सुमेरु पर्वत तक हाथों हाथ लाते हैं। इस समय सौधर्मेन्द्र तीर्थंकर को पूर्वाभिमुख विराजमान करके सोत्साह जलधारा छोड़ता है । अन्य सभी स्वर्गी के इन्द्र स्वर्ण कल्यों से अभिषेक करते हैं शेष देव जयध्वनि करते हैं । मपु० १३.८२ - १२१, वीवच० ९.८-४०
जन्मोत्सव - पुत्र - जन्म के समय आयोजित उत्सव | इस अवसर पर नृत्य - गीत वाद्य आदि के अनेक मनोरंजक आयोजन किये जाते हैं । हपु० ४३.६०
जन्तु - चक्रवर्ती सगर का पुत्र भागीरथ का पिता । यह रत्नपुर नगर का एक विद्याधर नृप था । इसकी एक पुत्री गंगा थी, जिसे इसने पराशर राजा से विवाहा था । पपु० ५.२८४, पापु० ७.७७-७८
जमदग्नि - राजा सहस्रबाहु के काका शतबिन्दु और उसकी रानी श्रीमती
का पुत्र । यह कान्यकुब्ज के राजा पारत का भानजा था। कुमारावस्था में इसकी मां मर गयी थी अतः विरक्त होकर यह तापस हो हो गया था तथा पंचाग्नि तप करने लगा था । इसने राजा पारत के पास जाकर उनसे एक कन्या की याचना की थी। राजा पारत भी उसे कन्या देने के लिए सहमत हो गया था किन्तु पारत की सौ
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जैन पुराणको १३५
पुत्रियों में से किसी एक ने भी तप से दग्ध इसे अर्धदग्ध शव मानकर नहीं चाहा । अन्त में एक धूलि में खेलती हुई छोटी सी लड़की के पास गया और उसे केला दिखाकर पूछा कि क्या वह उसे चाहती है । इस प्रश्न के उत्तर में हाँ कहलवाकर इसने राजा से वह लड़की प्राप्त कर ली थी। यह वन की ओर चला गया था। इसने उस लड़की का नाम रेकी रखकर उससे विवाह कर लिया था। रेणुकी से इसके इन्द्र और श्वेतराम नामक दो पुत्र हुए। रेणुकी के भाई अजय मुनि ने रेणुकी को सम्यग्दर्शन रूपी घन देते हुए कामधेनु नाम की विद्या और मन्त्र सहित एक फरसा दिया था। जमदग्नि के भाई सहस्रबाहु का पुत्र कृतवीर रेणुकी से कामधेनु विद्या लेना चाहता था जिसे रेणुकी नहीं देना चाहती थी। कृतवीर को बलपूर्वक कामधेनु के जाते देखकर इसने उसका विरोध किया और विरोध के फलस्वरूप यह कृतवीर के द्वारा मारा गया। मपु० ६५.५८-६१, ८१-१०६ हपु० २५.९
जम्बु - जम्बूद्वीप - स्थित विजयार्ध उत्तरश्रेणी के जाम्बव नगर के राजा विद्याधर जाम्बव और उसकी रानी जम्बुषेणा का पुत्र । यह जाम्ब वती का सहोदर था । इसकी बहिन को कृष्ण ने अपनी पटरानी बनाया था । मपु० ७१.३६८-२६९, ३७३-३८२ जम्बुषेणा -- जाम्बव विद्याधर की रानी । मपु० ७१.३६८-३६९ दे० जम्बु
जम्बू (१) एक चैत्यवृक्ष यह तीर्थकर विमलनाथ का दीक्षावृक्ष या । इसी वृक्ष के कारण इस द्वीप का नाम जम्बूद्वीप हुआ। ममु० ५. १८४, पपु० २०.४९
(२) रत्नपुर नगर निवासी सत्यक ब्राह्मण की स्त्री । इसने अपनी पुत्री सत्यभामा का विवाह कपिल के साथ किया था । मपु० ६२. ३२८-३२९
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(३) एक फल (जामुन ) कपित्थ आदि अन्य फलों से
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भरत चक्रवर्ती ने इस फल से तथा वृषभदेव की पूजा की थी । मपु० १७.
(४) तीर्थंकर महावीर के निर्माण के पश्चात् बासठ वर्ष में हुए गौतम आदि तीन चुतकेबलियों में अन्तिम श्रुतकेबाली इन तीनों में में सर्वप्रथम इन्द्रभूति (गौतम) गणचर ने वर्तमान जिनेन्द्र के मुख से सुनकर श्रुतको धारण किया । इस श्रुत को गौतम से सुधर्माचार्य ने और फिर उनसे इन्होंने धारण किया । मपु० १.१९९, २. १३८ - १४० पु० १.६० वीवच० १.४१-४२ चम्पा नगरी के सेठ अर्हदास की पत्नी जिनदासी के गर्भ में आने पर जिनदासी ने पाँच स्वप्न देखे थे । वे हैं - १. हाथी २. सरोवर ३. चावलों का खेत ४. निर्धूमल और ५. देवकुमारों के द्वारा लाये गये जामुनफल । विपुलाचल पर्वत पर गणधर गौतम के आने का समाचार सुनकर बेतिनी के पुत्र कुलिक के परिवार के साथ ये भी विरक्त हो दीक्षा के लिए उत्सुक हुए, किन्तु भाइयों के साथ दीक्षित होने का आश्वासन पाकर ये घर लौट आये तथा इन्होंने पद्मश्री, कनकश्री,
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