Book Title: Jain Puran kosha
Author(s): Pravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan
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रुद्राश्व- रैवतक
स्वाश्व - भरतक्षेत्र के विजयार्धं पर्वत की उत्तरश्रेणी का ग्यारहवां नगर । हपु० २२.८६
रुधिर - अरिष्टपुर नगर का राजा। इसकी महारानी मित्रा थी। इन दोनों का हिरण्ययम पुष और रोहिणी पुत्री थी। वसुदेव इसका जामाता था । हपु० ३१.८-११, ४३
रुषित--- देवों का एक विमान । जम्बूद्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र की प्रभाकरी नगरी के राजा प्रीतिवर्धन का आनन्द पुरोहित इसी विमान में प्रभंजन नामक देव हुआ था। मपु० ८.२१३-२१४, २१७ रूक्ष-अवसर्पिणी-काल के अन्त में सरस, विरस और तीक्ष्ण मेघों के सात-सात दिन वर्षा करने के पश्चात् सात दिन तक बरसनेवालेमेघ । मपु० ७६.४५२-४५३
रूप - चक्षु इन्द्रिय का विषय । यह पाँच प्रकार का होता है— काला, पीला, नीला, लाल, सफेद 1 मपु० ७५.६२३
रूपगता - चूलिका - दृष्टिवाद अंग के पाँच भेदों में चूलिका भेद का एक उपभेद । हपु० १०.६१, १२३
रूपपरावर्तनविद्या - रूप परिवर्तन करने में समर्थ विद्या । सूर्पणखा ने इसी विद्या की सहायता से अपना एक वृद्धा का रूप बनाया था । मपु० ६८.१५२
रूपवती - ( १ ) इन्द्र विद्याधर की पुत्री । इन्द्र के पिता सहस्रार ने इस कन्या को देकर रावण से सन्धि करने के लिए कहा था। पपु० १२. १६४-१६९
(२) दशांगभोगनगर के राजा वज्रकर्ण की कन्या । यह लक्ष्मण की दूसरी पटरानी थी। इसके पुत्र का नाम पृथिवीतिलक था। पपु० ८०.१०९, ९५.२०, ३१
रूपवर - मध्यलोक के अन्तिम सोलह द्वीपों में सातवाँ द्वीप एवं सागर । हपु० ५.६२३
रुपचीसेठ दस और सेठानी धनश्री की पुत्री इसका विवाह जम्बूस्वामी से हुआ था । मपु० ७६.४८-५० दे० जम्बू--४
रूप सत्य — सत्यप्रवाद पूर्व में कथित दस प्रकार के सत्यभाषणों में एक प्रकार का सत्यभाषण । इसमें पदार्थ के न होने पर रूप मात्र की मुख्यता से कथन किया जाता है । हपु० १०.९१, ९९
रूपानन्द — एक व्यन्तर देव | इस योनि के पश्चात् यह रजोवली नगरी में कुलन्धर नाम से उत्पन्न हुआ था । पपु० ५.१२३-१२४ रूपानुपात - देशव्रत का पाँचवाँ अतिचार - मर्यादा के बाहर काम करने वालों को निजरूप दिखाकर सचेत करना । हपु० ५८. १७८ रूपिणी - ( १ ) द्वितीय नारायण द्विपृष्ठ की पटरानी । पपु० २०.२२७
(२) रावण की रानी । पपु० ७७.१३
(३) इच्छानुसार निज रूप परिवर्तन करने में सक्षम एक विद्या । मपु० ३८.३९
रूप्यकूट – रुक्मिपर्वतस्थ छठा कूट । हपु० ५.१०२-१०३ रूप्या— जम्बूद्वीप के हरण्यवत क्षेत्र में प्रवाहित एक महानदी । मपु० ६३.१९६, हपु० ५.१२४
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मैनपुराणको ३३१
रूप्या
पश्चिम पुष्करा के पश्चिम विदेहक्षेत्र का विजय पर्वत । हपु० ३४.१५
रेचक केवली के केवल समुदात में होनेवाली आत्मप्रदेशों की अन्तिम उपसंहार की अवस्था । मपु० २१.१९१
रेणुकी - राजा पारत की कन्या । जमदग्नि ने इसे केला दिखाकर अपने में आकृष्ट करके इससे यह स्वीकार करा लिया था कि वह उसे चाहती है । इसके पश्चात् पारत से निवेदन करके जमदग्नि ने इसे विवाह लिया था। इसमें दो पुत्र इन्द्र (परशुराम और श्वेतराम । अरिंजय मुनि इसके बड़े भाई थे । इसे अरिंजय मुनि ने सम्यक्त्व धन के साथ-साथ कामधेनु नाम की एक विद्या भी दी थी। राजा कृतवीर इससे कामधेनु विद्या से लेना चाहता था। उसने इससे विद्या देने को निवेदन भी किया किन्तु इसके द्वारा निषेध किये जाने पर कुपित होकर कृतवीर ने इसके पति को मार डाला था। प्रत्युत्तर में इसके पुत्रों ने जाकर कृतवीर के पिता सहस्रबाहु को मार दिया था। इसके पुत्रों ने इक्कीस बार क्षत्रियवंश का निमूल नाश किया था। अन्त में यह इन्द्र (परशुराम ) भी चक्रवर्ती सुमोम द्वारा मारा गया था। मपु० ६५.८७-११२, १२७-११२, १४१-१५०
रेवत- अरिष्टपुर के राजा हिरण्यनाभ का बड़ा भाई । यह बलदेव का मामा था। इसको चार पुत्रियाँ थीं रेवती बन्धुमती, सीता और राजीवनेत्रा । ये चारों बलदेव को दी गयी थीं । अन्त में यह पिता के साथ दीक्षित हो गया था। हपु० ४४.३७-४१
रेवती (१) अरिष्टपुर के राजा के भाई रेवती की पुत्री यह मलदेव ' की स्त्री थी । हपु० ४४.४०-४१ दे० रेवत
(२) एक नक्षत्र । पपु० २०.५०
(३) भरतक्षेत्र में हस्तिनापुर के राजा गंगदेव की रानी नंदयशा की धाय । इसने नन्दयशा के सातवें पुत्र निर्नामक का पालन-पोषण किया था । महापुराण के अनुसार नंदयशा द्वारा सातवीं पुत्र अलग कर दिये जाने पर यही उसे नन्दयशा की बड़ी बहिन बन्धुमती को सौंपने गयी थी । मपु० ७१.२६० २६५, हपु० ३३. १४१-१४४
(४) सुकेतु के भाई विद्याधर रतिमाल की कन्या । यह बलभद्र को दी गयी थी । हपु० ३६.६०-६१
(५) जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में वृद्ध ग्राम के राष्ट्रकूट वैश्य की स्त्री । इसके भगदत्त और भवदेव दो पुत्र थे । मपु० ७६.१५२-१५३ रेवा - भरतक्षेत्र के आर्यखण्ड की एक नदी । इसी नदी के तट पर पौलोम और चरम दोनों ने मिलकर इन्द्रपुर नगर बसाया था । मपु० २९. ६५ पु० ३७.१८ हपु० १७.२७
रैवत्त - एक श्रेष्ठी । इसकी स्त्री का नाम धनश्री था। इन दोनों की एक पुत्री भीरूपी जो जम्बूस्वामी से विवाही गयी थी। मपु०
७६.४८-५०
रैवत - आगामी पन्द्रहवें तीर्थंकर का जीव । मपु० ७६.४७३ रेवतक एक पर्वत गिरनार तीर्थंकर नेमिनाथ का निर्वाण इसी पर्वत से हुआ था । इसी पर्वत पर रुक्मिणी को कृष्ण ने विधिपूर्वक विवाहा
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