Book Title: Jain Puran kosha
Author(s): Pravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan
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बनिसिंह-बरवत
३४८ : पुराणकोश
जनित महादुःख सहते है। इन जीवों की कुयोनियाँ दस लाख और कुलकोटियाँ अट्ठाईस लाख तथा उत्कृष्ट आयु दस हजार वर्ष होती है। ये जीव अनेक आकारों के होते हैं। मपु० १७.२२-२३, हपु०
३.२२१, १८.५४, ५८, ६०, ६६, ७१ वनिसिंह-एक पर्वत । नारायण त्रिपृष्ठ का जीव नरकगति से निकलकर
इसी पर्वत पर सिंह हुआ था । वीवच० ४.२ वन्दना-(१) अंगबाह्यश्रत का तीसरा प्रकीर्णक । इसमें वन्दना करने योग्य परमेष्ठी आदि की वन्दना-विधि बतलायी गयी है। हपु० २.१०२, १०.१३०
(२) छः आवश्यकों में तीसरा आवश्यक। इसमें बारह आवर्त और चार शिरोनतियां की जाती हैं । हपु० ३४.१४४ वन्ध–सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१६७ 'वन्धता-पारिवाज्यक्रिया के सत्ताईस सूत्रपदों में एक सूत्रपद । अर्हन्तदेव
की वन्दना करते हुए तपश्चरण करने से मुनियों को यह गुण प्राप्त हो जाता है । वन्द्य पुरुष भी ऐसे मुनियों की वन्दना करते हैं । मपु०
३९.१६५, १९२ वप्पिला-जम्बूद्वीप के बंग देश की मिथिला नगरी के राजा विजय की
रानी। यह तीर्थकर नमि की जननी थी। इसका अपर नाम वप्रा
था। मपु० ६९.१८-१९, २५, ३१ पपु० २०.५७ वप्रकावती-पश्चिम विदेहक्षेत्र के नीलपर्वत और सीतोदा नदी के मध्य स्थित देश । यह दक्षिणोत्तर लम्बे आठ देशों में चौथा देश है। अपराजित नगरी इस देश की राजधानी है । मपु० ६३.२०८-२१६,
हपु० ५.२५१-२५२ वप्रथु-हरिवंशी राजा सुमित्र का पुत्र और विन्दुसार का पिता। हपु०
१८.१९-२० • वप्रथी-(१) उज्जयिनी के राजा वृषभध्वज के योद्धा दृढ़मुष्टि की स्त्री।
वजमुष्टि इसका पुत्र था। मपु० ७१.२०९-२१० हपु० ३३.१०१- १०४
(२) जम्बुद्वीप के कौशल देश में स्थित अयोध्या नगरी के अहंद्दास सेठ की पली । पूर्णभद्र और मणिभद्र इसके पुत्र थे। मपु० ७२.२५
ग्यता, अवस्था, शील, श्रुत, शरीर, लक्ष्मी, पक्ष और परिवार ।
मपु० ६२.६४ वरका-वृषभदेव के समय का एक खाद्यान्न-मटर । मपु० ३.१८६ वरकीर्तीष्ट-विजयपुर का राजा । इसकी रानी कीर्तिमती थी। इसकी
पुत्री का विवाह निमित्तज्ञानियों ने श्रीपाल के साथ होना बताया था। मपु० ४७.१४१ वरकुमार-कुरुवंश का एक नृप । यह राजा सुकुमार का पुत्र और विश्व
का पिता था । हपु० ४५.१७ वरचन्द्र-(१) तीर्थकर चन्द्रप्रभ का पुत्र । तीथंकर चन्द्रप्रभ इसे ही राज्य सौप करके दीक्षित हुए थे। मपु० ५४.२१४-२१६
(२) आगामी छठा बलभद्र । मपु० ७६.४८६ वरचर्म-एक मुनि । जम्बद्वीप के ऐरावत क्षेत्र में स्थित श्रीपुर नगर का
राजा वसुन्धर अपनी रानी पद्मावती के वियोग से विरक्त होकर मनोहर वन में इन्हीं से संयमी होकर और समाधिमरण करके महा
शुक्र स्वर्ग में देव हुआ था। मपु० ६९.७४-७७ वरतनु-(१) एक व्यन्तर देव । यह व्यन्तर देवों का स्वामी था । चक्रवर्ती भरतेश ने इसे पराजित करके इससे भेंट में कवच, हार, चूड़ारल, कड़े, यज्ञोपवीत, कण्ठहार और करधनी आभूषण प्राप्त किये थे। मपु० २९.१६६-१६७, हपु० ११.१३-१४
(२) समुद्र के वैजयन्त गोपुर का एक देव । लक्ष्मण ने इसे पराजित किया था । मपु० ६८.६५१ वरत्रा-मजबूत रस्सी । यह चर्म की होती थी। मपु० ३५.१४९ वरव-(१) सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम। मपु०
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‘वप्रा-(१) जम्बद्वीप के पश्चिम विदेहक्षेत्र का एक देश । विजया नगरी
इस देश की राजधानी है । मपु० ६३.२०८-२१६, हपु० ५.२५१२५२
(२) तीर्थकर नमिनाथ की जननी । पपु० २०.५७ दे० वप्पिला
(३) काम्पिल्य नगर के राजा मृगपतिध्वज की रानी। दसवें चक्रवर्ती हरिषेण की यह माता थी । पपु० ८.२८१-२८३, २०.१८५
(२) समवसरण में स्थित तीसरे कोट के पश्चिम द्वार के आठ नामों में आठवाँ नाम । हपु० ५७.५६, ५९ वरवत्त-(१) तीर्थङ्कर नेमिनाथ के प्रथम गणधर । मपु० ७१.१८२, हपु० ५८.२, ६०.३४९, ६५.१५, पापु० २२.५९
(२) राजा विभीषण और रानी प्रियदत्ता का पुत्र । मपु० १०.१४९
(३) राजा भगीरथ का पुत्र । भगीरथ ने इसे ही राज्य सौंपकर कैलाश पर्वत पर योग धारण किया था। मपु० ४८.१३८-१३९
(४) एक केवली । ये जयसेन चक्रवर्ती के दीक्षागुरु थे। मपु. ६९.८८-८९
(५) द्वारावती नगरी का राजा। इसने तीर्थङ्कर नेमि को आहार देकर पंचाश्चर्य प्राप्त किये थे। मपु० ७१.१७५-१७६
(६) राजा सत्यन्धर के नगर-श्रेष्ठी धनपाल का पुत्र । यह जीवन्धर का मित्र था। मपु० ७५.२५६-२६०
(७) एक मुनि । हस्तिनापुर के राजा हरिषेण ने अपनी रानी विनयश्री के साथ इन्हें आहार कराया था, जिसके फलस्वरूप इसकी रानी मरकर हैमवत क्षेत्र में आर्या हुई थी। हपु० ६०.१०५१०७
बर-(१) समवसरण के तीसरे कोट की पूर्व दिशा में स्थित गोपुर के आठ नामों में आठवाँ नाम । हपु० ५७.५६-५७
(२) प्रचलित विवाहविधि से कन्या ग्रहण करनेवाला पुरुष । कन्या देने के पूर्व इसमें निम्न गुण देखे जाते हैं-कुलीनता, आरो
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