Book Title: Jain Puran kosha
Author(s): Pravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan
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बसुकोति-वसुन्धर
जैन पुराणकोश : ३५३
शीलायुध
(२) एक राजा। यह महावीर-निर्वाण के दो सौ पचासी वर्ष पश्चात् हुआ था। हपु०६०.४८९
(३) कुरुवंशी एक राजा । यह राजा वासव का पुत्र और सुवसु इसका पुत्र था। हपु० ४५.२६ वसुकोति-कुरुवंशी राजा कीर्ति के पश्चात् हुआ एक नृप । हपु०
४५.२५ वसुगिरि-(१) राजा हिमगिरि का पुत्र । यह राजा वसु के पूर्व अहिंसा
धर्म की रक्षा करने में तत्पर हरिवंशी चार राजाओं में चौथा राजा था। यह इन्द्रगिरि का पिता था। मपु० ६७.४१९-४२०, पपु० २१.७-८, हपु० १५.५९
(२) राजा जरासन्ध का पुत्र । हपु० ५२.३३ वसुबत्त-भरतक्षेत्र में स्थित एकक्षेत्र नामक नगर के वणिक् नयदत्त और
उसकी गृहिणी सुनन्दा का दूसरा पुत्र । यह धनदत्त का छोटा भाई था। इसी नगर के सेठ सागरदत्त की पुत्री गुणवती के लिए इसने इसी नगर के धनी सेठ के पुत्र श्रीकान्त से युद्ध किया था। इसी युद्ध में इसका प्राणान्त हो गया था। यह कई पर्यायों के उपरान्त नारायण
लक्ष्मण हुआ । पपु० १०६.१०-११, १३-२०, १७५ ।। वसुदर्शन-स्वयंभू नारायण के पूर्वभव के दीक्षा-गुरु । पपु० २०.२१६ वसुदेव-(१) तीर्थकर वृषभदेव के बीसवें गणधर । हपु० १२.५८
(२) यादवों का पक्षधर एक महारथ नृप। यह देवकी का पति और नवें नारायण कृष्ण का पिता था। शौर्यपुर के राजा अन्धकवृष्णि इसके पिता तथा रानी सुभद्रा माँ थी। इसके नौ बड़े भाई थे । वे है-समुद्रविजय, अक्षोम्य, स्तिमितसागर, हिमवान्, विजय, अचल, धारण, पूरण और अभिचन्द्र । कुन्ती और मद्री इसकी दो बहिनें थीं। इसकी माँ का अपर नाम भद्रा था। यह इतना अधिक सुन्दर था कि स्त्रियाँ इसे देखकर व्याकुल हो जाती थीं। राजा समुद्रविजय ने प्रजा के कहने पर इसे राजभवन में कैद रखने का यत्न किया था किन्तु दासी शिवादेवी के द्वारा रहस्योद्घाटित होते ही यह मन्त्रसिद्धि के व्याज से घर से निकल कर बाहर चला गया था। प्रवास में इसने विद्याधरों की अनेक कन्याओं को विवाहा था। विजया, पर्वत पर विद्याधरों की सात सौ कन्याएँ विवाही थीं। इसकी प्रमुख रानियों
और उनसे हुए पुत्रों के नाम निम्न प्रकार हैरानी का नाम
उत्पन्न पुत्र विजयसेना
अक्रूर और कर श्यामा
ज्वलनवेग, अग्निवेग गन्धर्वसेना
वायुवेग, अमितगति पद्मावती
दारु, वृद्धार्थ, दारुक नीलयशा
सिंह, पतंगज सोमश्री
नारद, मरुदेव मित्रत्री
सुमित्र कपिला
कपिल पद्मावती
पदम, पद्मक
अश्वसेना
अश्वसेन पौण्ड्रा
पौण्ड रत्नवती
रत्नगर्भ, सुगर्भ सोमदत्तसुता
चन्द्रकान्त, शशिप्रभ वेगवती
वेगवान्, वायुवेग मदनवेगा
दृढ़मुष्टि, अनावृष्टि
हिममुष्टि बन्धुमती
बन्धुषेण, सिंहसेन प्रियंगसुन्दरी प्रभावती
गन्धार, पिंगल जरा
जरत्कुमार, वाल्हीक अवन्ती
सुमुख, दुर्मुख, महारथ रोहिणी
बलदेव, सारण, विदूरथ बालचन्द्रा
वज्रदंष्ट्र, अमितप्रभ देवकी
कृष्ण जरासन्ध द्वारा समुद्रविजय के साथ इसका युद्ध कराये जाने पर इसने एक पत्र से युक्त बाण समुद्रविजय की ओर छोड़ा था। उसे ग्रहण कर सौ वर्ष बाद समुद्रविजय इससे मिलकर हर्षित हुए थे। द्वारकादहन के बाद यह संन्यासमरण कर स्वर्ग में उत्पन्न हुआ। दूसरे पूर्वभव में यह कुरुदेव में पलाशकूट ग्राम के सोमशर्मा ब्राह्मण का एक दरिद्र पुत्र था और प्रथम पूर्वभव में महाशुक्र स्वर्ग में देव हुआ था । मपु० ७०.९३-९७, २००-३०९, पपु० २०.२२४-२२६, हपु० १.७९, १८.९-१५, १९.३४-३५, ३१.१२५-१२८, ४८.५४-६५, ५०.७८, ६१.९१, पापु० ७.१३२, ११.१०-३०
(३) शामली-नगर के दामदेव ब्राह्मण का ज्येष्ठ पुत्र और सुदेव का बड़ा भाई । इसकी स्त्री का नाम विश्वा था । मुनिराज श्रीतिलक को उत्तम भावों से आहार देकर यह स्त्री सहित उत्तरकुरु की उत्तम भोगभूमि में उत्पन्न हुआ था । पपु० १०८.३९-४२
(४) गिरितट नगर का एक ब्राह्मण । यह सोमश्री का पिता था। हपु० २३.२६, २९ वसुधर्मा-कृष्ण के अनेक पुत्रों में एक पुत्र । यह कृष्ण के कुल का रक्षक
था । हपु० ४८.७०, ५०.१३१ वसुधा-(१) पुष्कलावती नगरी के राजा नन्दिघोष की रानी। यह नन्दिवर्धन की जननी थी। पपु० ३१.३०
(२) मिथिला नगरी के राजा जनक की रानी। यह सीता की जननी थी। मपु० ६७.१६६-१६७ बसुध्वज-(१) राजा जरासन्ध के अनेक पुत्रों में एक पुत्र । हपु० ५२.३४
(२) जरत्कुमार का पुत्र । हपु० ६६.२ वसुमन्वक-द्रोणाचार्य का एक खड्ग । पापु० १९.२२० वसुन्धर-(१) तीर्थकर वृषभदेव के इक्कीसवें गणधर । हपु० १२.५८
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