Book Title: Jain Puran kosha
Author(s): Pravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan
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सूर्पणखा-सूर्यमित्र
मैन पुराणकोश । ४६५
सूर्पणखा-रावण की बहिन । रावण ने सीता को अपने में अनुरक्त करने के ध्येय से इसे सीता के पास भेजा था। इसने भी वहाँ जाकर जैसे ही राम को देखा कि उन पर वह मुग्ध हो गयी थी । असफल होने पर अपना वृद्धा का रूप बनाकर इसने सीता को सतीत्व से विचलित करना चाहा किन्तु असमर्थ रही। इसका अपर नाम चन्द्र- नखा था। मपु० ६८.१२४-१२५, १४९, १५२, १७८-१७९ दे०
चन्द्रनखा सूर्पणखा-नभस्तिलक नगर के राजा त्रिशिखर विद्याधर की रानी।
इसने विधवा होने पर मदनवेगा का रूप धारण करके छल से वसुदेव
का हरण किया था । हपु० २५.४१, २६-२८ सूर-भरतेश के छोटे भाइयों द्वारा त्यक्त देशों में भरतक्षेत्र के
पश्चिम आर्यखण्ड का एक देश । हपु० ११.७१, ७६ सूर्यजय-दशरथ के पूर्वभव का जीव । यह विदेहक्षेत्र में विजयार्घ पर्वत
पर स्थित शशिपुर के राजा रत्नमाली और रानी विद्य ल्लता का पुत्र था । अपने पिता को देव द्वारा कहे वचन सुनकर इसे वैराग्य उत्पन्न हुआ। इसने अपने पुत्र कुलन्द को राज्य देकर पिता के साथ तिलकसुन्दर आचार्य से दीक्षा ले ली थी तथा तप करके यह महाशुक्र स्वर्ग में देव हुआ और वहाँ से चयकर दशरथ हुआ। पपु० ३१.
३४.३५, ५०-५४ सूर्य-(१) हरिबंशी राजा शाल का पुत्र । इसने शुभ्रपुर नाम का नगर बसाया था। इसके पुत्र का नाम अमर था । हपु० २७.३२-३३
(२) जम्बूद्वीप में भरतक्षेत्र के विजया पर्वत की दक्षिणश्रेणी का सोलहवां नगर । हपु० २२.९५
(३) राजा वसु का आठवां पुत्र । हपु० १७.५९
(४) हस्तिनापुर का कुरुवंशी एक राजा। इसकी रानी श्रीमती थी। तीर्थकर कुन्थुनाथ के ये दोनों माता-पिता थे। महापुराण में तीर्थकर कुन्थुनाथ के पिता और माता का नाम सूरसेन एवं श्रीकान्ता दिया है । मपु० ६४.१२-१३, २२, पपु० २०.५३, हपु० ४५.६, २०
(५) निषध पर्वत से उत्तर की ओर नदी के बीच विद्यमान पांच ह्रदों में एक ह्रद । मपु० ६३.१९७-१९८, हपु० ५.१९६
(६) कृष्ण का पुत्र । हपु० ४८.७१
(७) सूर्यवंशी राजा महेन्द्रविक्रम का पुत्र और इन्द्रद्युम्न का पिता । पपु० ५.७, हपु० १३.१०
(८) महाकान्तिमान्, आकाश में नित्यगतिशील एक ग्रह । मपु० ३.७०-७१, पपु० ३.८१-८३ सूर्यक-नभतिस्तलक नगर के राजा त्रिशिखर का पुत्र । इसके लिए
राजा त्रिशिखर ने विद्यु द ग विद्याधर से उसकी पुत्री मदनवेगा की याचना की थी किन्तु उसकी याचना पूर्ण नहीं हुई थी। वसुदेव ने विद्य द्वग की ओर से इसके साथ युद्ध किया था तथा इसे मार डाला
था। हपु० २५.३८-४२, ६९ सूर्यकमला-किष्किन्धपुर के राजा किष्किन्ध और रानी श्रीमाली की
पुत्री । इसके दो भाई थे-सूर्यरज और यक्षरज। इसका विवाह
मेघपुर नगर के राजा मेरु विद्याधर के पुत्र मृगारिदमन से हुआ था।
पपु० ६.५२२-५२८ सूर्यकोटिसमप्रभ-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु०
२५.१९७ सूर्यघोष-कुरुवंशी एक राजा । इसे राज्य राजा हरिध्वज से प्राप्त हुआ
था । सुतेजस् इसका उत्तराधिकारी हुआ । हपु० ४५.१४ सूर्यज्योति-राम का पक्षधर एक विद्याधर योद्धा । पपु० ५८.४ सूर्यदेव-नषिकग्राम का एक राजा। इसकी रानी मतिप्रिया ने इसी
ग्राम के गिरि और गोभूति ब्राह्मणों को भात से ढककर स्वर्ण दान में दिया था। पपु० ५५.५७-५९ सूर्यपत्तन-राजा सूर की नगरी-शौरीपुर । राजा पाण्डु अंगूठी धारण कर
अदृश्य रूप से यहाँ कुन्ती से मिले थे । पापु० ७.१६७-१६८ सूर्यपुर-(१) विजयाध की दक्षिणश्रेणी का चवालीसा नगर । मपु० १९.५२-५३, हपु० २२.९५
(२) वसुदेव की निवासभूमि । छठा प्रतिनारायण बलि भी इसी नगर का निवासी था । पपु० २०.२४२-२४४, हपु० ३३.१ सूर्यप्रज्ञप्ति-अंगश्रुत का एक भेद । दृष्टिवाद अंग के प्रथम भेद परिकर्म
में पाँच प्रज्ञप्तियों का वर्णन है जिनमें यह दूसरो प्रज्ञप्ति है । इसमें पाँच लाख तीन हजार पदों के द्वारा सूर्य के वैभव का वर्णन किया
गया है । हपु० १३.६२, ६४ सूर्यप्रभ-(१) रानी रामदत्ता का जीव, सहस्रार स्वर्ग का एक देव ।
हपु० २७.७५ - (२) तीर्थंकर महावीर का जीव, सहस्रार स्वर्ग का एक देव । मपु० ७४.२४१, २५१-२५२, ७६.५४२
(३) चक्रवर्ती भरतेश का रत्न-निर्मित एक छत्र । मपु० ३७.१५६
(४) पुष्कराध द्वीप के विजया पर्वत की उत्तरश्रेणी का एक नगर एवं राजा। धारिणी इसकी रानी और चिन्तागति, मनोगति तथा चपलगति ये तीन पुत्र थे । मपु० ७०.२६-२९
(५) सौधर्म स्वर्ग का देव । यह भरतक्षेत्र के हरिवर्ष देश में भोगपुर नगर के राजा सिंहकेतु और उसकी रानी विद्य न्माला को मारने का विचार करनेवाले चित्रांगद देव का मित्र था। इसने चित्रांगद को समझा-बुझाकर इसे और इसकी रानी दोनों को बचाया था। मपु० ७०.७४-८३, पापु० ७.१२१-१२६ सूर्धप्रभा-तीर्थकर पुष्पदन्त को दीक्षा-शिविका । वे इसो में बैठकर ___ दीक्षाग्रहण के लिए पुष्पक बन गये थे । मपु० ५५.४६ सूर्यबाण---एक विद्यामय बाण । इससे तमोबाण का नाश किया जाता
है। मेघप्रभ ने सुनमि के द्वारा चलाये गये तमोबाण का इसी बाण
से नाश किया था। मपु० ४४.२४२ सूर्यमाल-सोलह वक्षार पर्वतों में चौदहवां वक्षार-पर्वत । यह पश्चिम विदेहधोत्र में नील पर्वत और सीतोदा नदी के मध्य स्थित है। मपु०
६३.२०१, २०४, हपु० ५.२३२ सूर्यमित्र-एक मुकुटबद्ध राजा । अर्ककीर्ति और जयकुमार के बीच हुए
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