Book Title: Jain Puran kosha
Author(s): Pravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 485
________________ सोपान-सोमदेव सम्पूर्ण जानकारी सेनापति को ही होती थी। यहाँ सेना के ठहरने की व्यवस्था रहती थी। रावटी, तम्बू आदि लगाये जाते थे। तम्बुओं पर पताकाएँ फहराती थीं । मपु० २७.१२१, १२९, ३२.६५ सोपान-एक हार । इसमें सोने के तीन फलक लगे होते हैं । मपु० १६. ६५-६६ सोपारक-भरतक्षेत्र के आर्यखण्ड का एक नगर । यह राजगृह के पास था। पूतगन्धिका ने यहाँ आयिकाओं की उपासना की थी। हपु० सोम-(१) नन्दनवन की पूर्व दिशा में विद्यमान पण्य भवन का निवासी एक देव । हपु० ५.३१५-३१७ (२) वसुदेव के भाई राजा अभिचन्द्र का पुत्र । हपु० ४८.५२ (३) भरतक्षेत्र के सिंहपुर नगर का अभिमानी परिव्राजक । यह मरकर इसी नगर में भैंसा हुआ था। मपु० ६२.२०२-२०३, पापु० ४.११७-११८ (४) कैलास पर्वत के पास पर्णकान्ता नदी के तट पर रहनेवाला एक तापस । इसकी स्त्री श्रीदत्ता तथा पुत्र चन्द्र था। मपु० ६३.२६६२६७ (५) भरतक्षेत्र में मगध देश के लक्ष्मीग्राम का निवासी एक ब्राह्मण । इसकी पत्नी को मुनि को निन्दा करने से उदुम्बर रोग हो गया था। मपु० ७१.३१७-३२० (६) हस्तिनापुर का राजा। तीर्थङ्कर वृषभदेव ने इसे और राजा श्रेयांस को कुरुजांगल देश का स्वामी बनाया था। इसकी लक्ष्मीमती स्त्री थी। जयकुमार इसी के पुत्र थे। इसके विजय आदि चौदह अन्य पुत्र भी थे। पापु० २.१६५, २०७-२०८, २१४, ३.२-३ दे० सोमप्रभ (७) एक राजा । इसका पुत्र सिंहल कृष्ण का पक्षधर था। हपु० ५२.१७ (८) विद्याधरों के चक्रवर्ती इन्द्र का भक्त । माल्यवान् ने इसे भिण्डिमाल शस्त्र से मूच्छित कर दिया था। पपु० ७.९१, ९५-९६ (९) मकरध्वज विद्याधर और उसकी स्त्री अदिति का पुत्र । इन्द्र ने इसे द्यौतिसंग नगर की पूर्व दिशा में लोकपाल के पद पर नियुक्त किया था । पपु० ७.१०८-१०९ (१०) हस्तिनापुर का राजा। चौथे नारायण पुरुषोत्तम का यह पिता था। इसको रानी सीता थी । पपु० २०.२२१-२२६ (११) गन्धवतो नगरी का पुरोहित । इसके सुकेतु और अग्निकेतु नाम के दो पुत्र थे । पपु० ४१.११५-११६ (१२) नमि विद्याधर का एक पुत्र । हपु० २२.१०७ ।। (१३) सौधर्मेन्द्र का लोकपाल एक देव । नन्दीश्वर द्वीप के दक्षिण में विद्यमान अंजनगिरि की चारों दिशाओं में निर्मित वापियों में जयन्ती वापी इसकी क्रीडा स्थली है । हपु० ५.६६०-६६१ (१४) ऐशानेन्द्र का लोकपाल एक देव । नन्दीश्वर द्वीप की उत्तरदिशावर्ती आनन्दा वापी इसकी क्रीड़ा स्थली है । हपु० ५.६६४ जैन पुराणकोश : ४६७ सोमक-(१) तीर्थङ्कर नमिनाथ के प्रथम गणधर । हपु० ६०.३४८ (२) एक राजा। यह रोहिणी के स्वयंवर में आया था। हपु० ३१.३० (३) राजा जरासन्ध का दूत । इसने जरासन्ध को युद्ध में आये समस्त राजाओं का परिचय दिया था। पापु० २०.३१९ सोमखेट-एक नगर । यहाँ के राजा महेन्द्र दत्त थे। इन्होंने तीर्थङ्कर सुपार्श्वनाथ को यहाँ आहार कराया था। मपु० ५३.४३ सोमदत्त-(१) महापुर नगर का राजा । यह रोहिणो के स्वयंवर में आया था। इसकी रानी पूर्णचन्द्रा, भूरिश्रवा पुत्र और सोमश्री पुत्री थीं जिसका विवाह वसुदेव से हुआ था । हपु० २४.३७-३९, ५०-५२, ५९, ३१.२९ (२) यादवों का पक्षधर एक अर्धरथ राजा । हपु० ५०.८४-८५ (३) तीर्थङ्कर वृषभदेव के आठवें गणधर । हपु० १२.५६ (४) भरतक्षेत्र की चम्पा नगरी के ब्राह्मण सोमदेव और उसकी स्त्री सोमिला का ज्येष्ठ पुत्र । सोमिल और सोमभूति इसके छोटे भाई थे। इसने अपने मामा की पुत्री धनश्री को तथा सोमिल ने मित्रश्री को विवाहा था। अन्त में यह और इसके दोनों भाई वरुण मुनि से दीक्षित हो गये थे। इसकी और इसके भाई सोमिल को पत्नी आर्यिकाएं हो गयी थी। आयु के अन्त में मरकर ये पांचों स्वर्ग में सामानिक देव हुए। स्वर्ग से चयकर यह युधिष्ठिर और इसके छोटे दोनों भाई भीम और अर्जुन हुए और दोनों पत्नियों के जीव नकुल एवं सहदेव हुए। मपु० ७२.२२८-२३७, २६१, २६२, हपु० ६४. ४-६, ९-१३, १३६-१३७, पापु० २४.७५ (५) वर्धमान नगर का राजा । इसने तीर्थङ्कर पद्मप्रभ को आहार देकर पंचाश्चर्य प्राप्त किये थे । मपु० ५२.५३-५४ (६) भरतक्षेत्र के नलिन नगर का राजा । इसने तीर्थकर चन्द्रप्रभ को नवधा भक्ति से आहार देकर पंचाश्चर्य प्राप्त किये थे। मपु० ५४.२१७-२१८ सोमदेव-(१) चम्पा नगरी का एक ब्राह्मण । इसकी पत्नी सोमिला थी। सोमदत्त, सोमिल और सोमभूति ये इसके तीन पुत्र थे । मपु० ७२.२२८-२२९ दे० सोमदत्त-४ (२) जम्बद्वीप के मगध देश में स्थित शालिग्राम का रहनेवाला एक ब्राह्मण । इसकी स्त्री अग्निला थी। इन दोनों के दो पुत्र थेअग्निभूति और वायुभूति । इसने और इसकी पत्नी दोनों ने सत्यक मुनि पर उपसर्ग करने की चेष्टा को। वहीं पर स्थित एक यक्ष द्वारा दोनों कोल दिये गये । अपने दोनों पुत्रों को जैनधर्म स्वीकार कर लेने का वचन देकर इसने मुक्त कराया था। बाद में यह और इसकी पत्नी दोनों सन्मार्ग से विचलित हो गये और इस पाप के कारण दोनों दीर्घकाल तक अनेक कुगतियों में भटकते रहे । मपु० ७२.३-४, १५-२३, पपु० १०९.३५-३८, ९८-१२६, हपु० ४३.९९-१००, १४१-१४४, १४७ (३) भरतक्षेत्र में मगधदेश के लक्ष्मीग्राम का ब्राह्मण । यह रुक्मिणी का पूर्वभव का पति था । हपु० ६०.२६-२७, ३९ For Private & Personal Use Only Jain Education Intemational www.jainelibrary.org

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