Book Title: Jain Puran kosha
Author(s): Pravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 511
________________ परिशिष्ट १०. ११. १२. १३. १४. १५. १६. १७. १८. १९. २०. २१. २२. २३. २४. २५. २६. २७, २८. २९. ३०. ३१. ३२. ३३. ३४. ३५. ३६. ३७. ३८. कायबल कोष्ठबुद्धि सोरसाविणी क्ष्वेल घृतस्रावी घोरद्धि जंघाचारण जलचारण जल्ल तन्तुचारण तप तप्त तप्ततप्त दीप्त पदानुसारिणो पुष्पचारण प्राकाम्य प्राप्ति फलचारण बलद्धि बीबुद्ध मधुस्राविणी रसि वाग्विपुट विक्रिपद्धि श्रेणीचारण भिन्नोबुद्धि पिराखाविणी सर्वोषधि १. ज्ञानावरण - ५ १. मतिज्ञानावरण ४. मनः मर्ययज्ञानावरण २. दर्शनावरण - ९ मपु० २.७२ मपु० १४. १८२ मपु० २.७२ मपु० २.७१ मपृ० २.१२ मपु० ११.८२ मपु० २.७३ मपु० २.७३ मपु० २.७१ मपु० २.७३ मपु० ३६.१३९- १४१ ३. वेदनीय - २ १. साता वेदनीय Jain Education International मपु० ११.८२ मपु० ३६.१५० मपु० ११.८२ मपु० २.६७ मपु० २.७३ मपु० ३८.१९३ मपु० ३८.१९३ मपु० २.७३ मपु० ११.८७ मपु० ११.८० कर्मों की उत्तर प्रकृतियां मपु० २.७२ मपु० ३६.१५४ मपु० २.७१ मपु० २,७१ मपु० २.७३ मपु० २.६७, ११.८० मपु० २.७२ मपु० २.७१ २. श्रुतज्ञानावरण ५. केवलज्ञानावरण १. क्षुदर्शनावरण २. अनावरण ४. केवलदर्शनावरण ५. निद्रा ७. प्रचला ८. प्रचलाप्रचला २. असातावेदनीय ३. अवधिज्ञानावरण हपु० ५८.२२३ ३. अवधिदर्शनावरण ६. निद्रानिद्रा ९. स्त्यानगृद्धि हपु० ५८.२२६-२२९ हपु० ५८.२३० ४. मोहनीय - २८ दर्शन मोहनी -२ ३. सम्य मिथ्यात्व चारित्रमोहनीय २५ - १. सम्यक्त्व जैन पुराणकोश : ४९३ २. मिथ्यात्व हपु० ५८.२३१ १. नो कषाय - हास्य, रति, अरति, भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुरुषवेद और नपुंसक ५८. २३४-२३७ 1 For Private & Personal Use Only २. कवायतानुवन्धी कोष, मान, माया, लोभ अप्रत्याख्यानावरण संबंधी - क्रोध, मान, माया, लोभ प्रत्याख्यानावरण संबंधी — क्रोध, मान, माया, लोभ संज्वलन-संबंधी - क्रोध, मान, माया, लोभ । हपु० ५८. २३८-२४१ ५. आयु - ४ देव आयु, मनुष्य आयु, तिर्यच आयु और नरकायु । हपु० ५८.२४२ ६. नाम कर्म - ९३ गति नाम कर्म ४ -नरक, तिर्यच, मनुष्य और देवगति । जाति नाम कर्म: ५ – एकेन्द्रिय से पंचेन्द्रिय तक । शरीर नाम कर्म : ५- औदारिक, वैक्रियक, आहारक, तैजस और कार्माण । औदारिक, वैक्रियक, आहारक अंगोपांग नाम कर्म · निर्माण नाम कर्म : २ --स्थान निर्माण, प्रमाण निर्माण । बन्धन नाम कर्म : ५ – औदारिक, वैक्रियक, आहारक, तंजस और कार्माण | संघात नाम कर्म ५ औवारिक, वैकियक आहारक, सेक्स और कर्माण | संस्थान नाम कर्म : ६ - समचतुस्र, न्यग्रोधपरिमण्डल, स्वाति, कुब्जक, वामन, हुण्डक । संहनन नाम कर्म : ६ वज्रर्षभनाराच, वज्रनाराच नाराच, अर्धनाराच कीलक, असं प्राप्तस्पाटिका। स्पर्श नाम कर्म: ८- कड़ा, कोमल, गुरु, लघु, स्निग्ध, रुक्ष. शीत, उष्ण । रस नाम कर्म : ५ – कटुक, तिक्त, कषायला, आम्ल, मधुर । गन्ध नाम कर्म : २ – सुगन्ध, दुर्गन्ध । वर्णं नाम कर्म : ५ – कृष्ण, नील, रक्त, पीत और शुक्ल । आनुपूर्व्य नाम कर्म ४ मनुष्य तियंच, नारक अगुरुलघु - १, उपघात – १, परघात -१, आताप - १, १ उच्छ्वास - १, प्रत्येक शरीर १, साधारण - १, सुभग-१, दुभंग १, विहायोगति - १, त्रस - १, स्थावर - १, सुवर, स्वर-१, सूक्ष्म- १, बावर, स्थिर, आदेय-१, शुभ-१, पर्याप्ति-१, अनादेव - १ अशुभ- १, अपर्याप्त-१, पःकीर्ति-१ अपयशस्कीति - १ www.jainelibrary.org

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