Book Title: Jain Puran kosha
Author(s): Pravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 516
________________ ४९८ पुराणकोश १. पूर्व में २. दक्षिण में ३. पश्चिम में ४. उत्तर में रूचकवर पर्वत की विद्य ुत्कुमारी देवियाँ चित्रादेवी erefor हपु० ५.७१८- ७२१ कवर पर्यंत वासिनी विक्कुमारी देवियों की प्रधान देवियाँ रुचका देवी रुचकोज्ज्वला देवी १. ऐशान २. आग्नेय ३. नैऋत्य ४. वायव्य १. अनशन ४. रसपरित्याग १. प्रायश्चित्त ५. व्युत्सर्ग १. आलोचना ५. व्युत्सर्ग ९. उपस्थान १. ज्ञानविनय १. वाचना ४. आम्नाय २. अवमौदर्य ५. तन सन्ताप Jain Education International २. विनय ६. ध्यान पर देवी सूषामणि देवी तप-भेव बाह्यतप आभ्यन्तर तप रुचकाभा रुचकप्रभा २. प्रतिक्रमण ६. तप १. आभ्यान्तरोपाधि त्याग ३. वृत्तिपरिसंख्यान ६ विविशयनासन २. वैयावृत्य प्रायश्चित के भेद विनय तप के भेद २. दर्शन विनय ३. चारित्रविनय ३. तदुभय ७. छेद ० १८.६९, २०. १९० २०४ स्वाध्याय तप के भेद २. पृच्छना ५. उपदेश हपु० ५.७२२-७२४ उत्सर्ग तप के भेद पु० १८.६७-६८ ४. स्वाध्याय ४. विवेक ८. परिहार हपु० ६४,३२-३७ ४. उपचार विनय हपु० ६४.३८-४१ २. अनुप्रेक्षा हपु० ६०.४६-४८ २. बाह्योपाधि त्याग हपु० ६०.४९-५० १. प्राचार्य २. उपाध्याय ३. तपस्वी ४. शैक्ष्य ५. ग्लान इन दस प्रकार के मुनियों की सेवा । १. असुरकुमार ४. द्वीपकुमार ७. विद्युत्कुमार १०. वायुकुमार १. चन्द्र १. किन्नर ५. यक्ष देव-भेद १. भवनवासी देव २. व्यन्तर देव ३ ज्योतिष्क देव ४. वैमानिक देव बीवच १४.६४ १. सौधर्म ५. हा ९. शुक्र १३. आनत वैयावृत्य तप के भेद २. सूर्य २. नागकुमार ५. उदधिकुमार ८. दिपकुमार For Private & Personal Use Only भवनवासी देव-भेद ज्योतिष्क देव-भेद ३. ग्रह २. किंपुरुष ६. राक्षस १. नौ ग्रैवेयक ६. गण ७. कुल ८. संघ व्यन्तर देव-भेद २. महोरग ७. भूत ९. साधु १०. मनोश ( इनका एक साथ पुराणों में नामोल्लेख नहीं है) १०. महाशुक्र १४. प्राणत परिशिष्ट हपु ६०.४२-४५ ३. सुपर्णकुमार ६. स्तनितकुमार ९. अग्निकुमार वैमानिक कल्पोपपन्न देव-भेद २. ईशान ३. सनत्कुमार ६. ब्रह्मोत्तर ७. लान्तव ११. सतार १५. आरण ४. नक्षत्र ५. तारागण हपु० ६.७, वीवच० १४.५२ हपु० ४.६३-६५ ४. गन्धर्व ८. पिशाच मपु०, ६३.१८५-१८६ ४. माहेन्द्र ८. कापिष्ठ १२. सहस्रार १६. अच्युत वैमानिक कल्पातीत देव-भेद अधोवेयकमध्य ग्रैवेयक सुदर्शन, अमोष, सुप्रबुद्ध यशोधर, सुभद्र, सुविशाल सुमन, सौमनस्य प्रीतिकर ऊर्ध्व ग्रैवेयक २. नौ अनूदि आदित्य, अर्थ, अभिमालिनी, वज्र, वैरोचन, सौम्य, सौम्यरूपक, अंक, स्फुटिक । ३. पाँच अनुत्तर— विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित, सर्वार्थसिद्धि | हपु० ६.३९-४०, ५२-५३, ६३-६५ ०६३६-३८ www.jainelibrary.org

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