Book Title: Jain Puran kosha
Author(s): Pravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 469
________________ सुपम-सुप्रतिष्ठ जैन पुराणकोश : ४५१ (३) भरतक्षेत्र के चित्रकारपुरनगर के राजा प्रीतिभद्र को रानी । प्रीतिकर की ये जननी थी। मपु० ५९.२५४-२५५, हपु० २७.९७ । (४) मथुरा के राजा शूरसेन के सूरदेव पुत्र की स्त्री । यह विरक्त होकर दीक्षित हो गयो थी । हपु० ३३.९६-९९, १२७, ६०५१ (५) विजयाध पर्वत की अलका नगरी के राजा महासेन को रानी। इसके उग्रसेन और वरसेन दो पुत्र तथा वसुन्धरा पुत्री । मपु० ७६.२६२-२६३, २६५ (६) भीलों के राजा हरिविक्रम की स्त्री। इसका वनराज पुत्र था। मपु० ७५.४७९-४८० (७) जम्बूद्वीप संबंधी भरतक्षेत्र में वत्स देश की कौशाम्बी नगरी के राजा पार्थिव की रानी और सिद्धार्थ की जननी । मपु० ६९.२-४ (८) गन्धर्वपुर के राजा विद्याधर मन्दरमाली की रानी । चिन्तागति और मनोगति इसके दो पुत्र थे । मपु० ८.९२-९३ (९) जम्बद्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में पुष्कलावती देश की पुण्डरीकिणी नगरी के राजा प्रियसेन की रानी । इसके दो पुत्र थे-प्रीतिकर और प्रीतिदेव । मपु० ९.१०८-१०९ (१०) पुष्करद्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में मंगलावती देश के रत्नसंचय नगर के राजा महीधर को रानी। जयसेन इसका पुत्र था । मपु० १०.११४-११६ (११) रावण की एक रानी । मपु० ७७.१२ (१२) भरत को भाभो । पपु० ८३.९३ सुपद्म-कुरुवंशी एक राजा । ये राजा पद्म के पुत्र तथा पद्मदेव के पिता थे। हपु० ४५.२५ सुपदमा-एक देश । यह जम्बूद्वीप के पूर्वविदेहक्षेत्र में सीतोदा नदी के दक्षिण तट पर स्थित है। मपु० ६३.२१०, हपु० ३४.३, ५, २४९ सुपर्णकुमार-(१) हिमवान् पर्वत के हिमवत् कूट का निवासी एक देव । हपु० ११.४३-४४ (२) पाताल लोक का निवासी एक भवनवासी देव । हपु० ४.६३ सुपार्श्व-(१) सातवें तीर्थङ्कर । ये अवसर्पिणी काल के दुःषमा-सुषमा चौथे काल में उत्पन्न हुए थे। जम्बूदीप के भरतक्षेत्र में काशी देश की वाराणसी नगरी के राजा सुप्रतिष्ठ की रानी पृथिवीषेणा के गर्भ में ये भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी के दिन विशाखा नक्षत्र में स्वर्ग से अवतरित हुए थे। इनका जन्म ज्येष्ठ शुक्ला द्वादशी के दिन अग्निमित्र नामक शुभ योग में हुआ था। इनका यह नाम जन्माभिषेक करने के पश्चात् इन्द्र ने रखा था। इनके चरणों में स्वस्तिक चिह्न था । इनकी आयु बीस लाख पूर्व वर्ष की थी । शरीर दो सौ धनुष ऊँचा था। इन्होंने कुमारकाल के पाँच लाख वर्ष बीत जाने पर धन का त्याग (दान) करने के लिए साम्राज्य स्वीकार किया था। इनके निःस्वेदत्व आदि आठ अतिशय तथा पपु० और हपु० के अनुसार दश अतिशय प्रकट हुए थे। इनकी आयु अनपवयं थी। वर्ण प्रियंगु पुष्प के समान था। बीस पूर्वांग कम एक लाख पूर्व की आयु शेष रहने पर इन्हें बैराग्य हुआ। ये मनोगति नामक शिविका पर आरूढ़ होकर सहेतुक वन गये तथा वहाँ इन्होंने ज्येष्ठ शुक्ल द्वादशी के दिन सायं वेला में एक हजार राजाओं के साथ संयम धारण किया। संयमी होते ही इन्हें मनःपर्ययज्ञान हुआ। सोमखेट नगर के राजा महेन्द्रदत्त ने इन्हें आहार दिया था। ये छद्मस्थ अवस्था में नौ वर्ष तक मौन रहे। सहेतुक वन में शिरीष वृक्ष के नीचे फाल्गुन कृष्ण षष्ठी के दिन सायंकाल के समय इन्हें केवलज्ञान हुआ था। इनके चतुर्विध संघ में पंचानवे गणधर, दो हजार तीस पूर्वधारी, दो लाख चवालीस हजार नौ सौ बोस शिक्षक, नौ हजार हजार अवधिज्ञानी, ग्यारह हजार केवलज्ञानी, पन्द्रह हजार तीन सौ विक्रिया ऋद्धिधारी, नौ हजार एक सौ पचास मनःपर्ययज्ञानी, आठ हजार छ: सौ वादी, इस प्रकार कुल तीन लाख मुनि, तीन लाख तीस हजार आर्यिकाएँ, तीन लाख श्रावक, पाँच लाख श्राविकाएं, असंख्य त देव-देवियाँ और संख्यात तिथंच थे। विहार करते हुए आयु का एक मास शेष रहने पर ये सम्मेदशिखर आये । यहाँ एक हजार मुनियों के माथ इन्होंने प्रतिमायोग धारण कर फाल्गुन कृष्ण सप्तमी के दिन विशाखा नक्षत्र में सूर्योदय के समय मोक्ष प्राप्त किया था । दूसरे पूर्वभव में ये धातकीखण्ड के पूर्व विदेहक्षेत्र में सुकच्छ देश के क्षेमपुर नगर के नन्दिषेण नामक नृप थे । प्रथम पूर्वभव में मध्यम अवेयक के सुभद्र नामक मध्यम विमान में अहमिन्द्र रहे। मपु० ५३.२-५३, पपु० २.८९-९०, हपु० १.९, ३.१०-११, १३.३२, पापु० १२.१, वीवच० १८.२७, १०१-१०५ (२) आगामी दूसरे तीर्थकर सुरदेव के पूर्वभव का जीव । मपु० •७६.४७१, ४७७ (३) आगामी तीसरे तीर्थकर । मपु० ७६.४७७, हपु० ६०.५५८ सुपार्श्वकोति-लक्ष्मण और उनको मनोरमा महादेवी का पुत्र । पपु० ९४.३५ सुपुत्र-पुष्कराध द्वीप सम्बन्धी पूर्व विदेहक्षेत्र के सुकच्छ देश में क्षेमपुर नगर के राजा नलिनप्रभ का पुत्र । नलिनप्रभ ने इसे राज्य देकर संयम ले लिया था। मपु० ५७.२-३, १२ सप्रकारपुर-एक नगर । कृष्ण को पटरानी लक्ष्मणा इसी नगर के राजा शम्बर को पुत्री थी । मपु० ७१.४०९-४१४ सुप्रजा-राजा दशरथ को रानी और शत्रुघ्न को जननी । यह मरकर आनत स्वर्ग में देव हुई थी । पपु० ८९.१०.१३, १२३.८० सुप्रणिधि-रुचकगिरि के सुप्रबुद्ध कूट को निवासिनो एक दिक्कुमारी देवी। हपु० ५.७०८ सुप्रतिष्ठ-(१) जम्बरोप के भरतक्षेत्र में स्थित पोदनपुर नगर के राजा सुस्थित और रानी सुलक्षणा का पुत्र । इसने अपने पूर्वजन्म की प्रवृत्तियों का स्मरण करके सुधर्माचार्य के पास दीक्षा ले ली थी। सुदत्त इसका छोटा भाई था जो मरकर सुदर्शन यक्ष हुआ था। इस यक्ष ने इनके ऊपर अनेक उपसर्ग किये थे जिन्हें सहकर ये केवली हुए । पश्चात् उस यक्ष ने भी इनसे धर्मोपदेश सुनकर समीचीन धर्म ___ धारण कर लिया था। शौर्य पुर के राजा शूर और मथुरा के राजा नगर Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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