Book Title: Jain Puran kosha
Author(s): Pravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan
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सुवर्णद्वोप-सुवेल
जैन पुराणकोश : ४६१ सवसु-(१) कुरुवंशो एक राजा । यह राजा वसु का नौवाँ पुत्र था। हपु० १७.५९, ४५.२६
(२) जरत्कुमार का पौत्र । यह वसुध्वज का पुत्र तथा भोमवर्मा का पिता था । हपु० ६६.२-४ सुवाक्-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१२० सुविधाना-एक विद्या । यह रावण को प्राप्त थी। पपु० ७.३२७,
किया था । मपु० ७५.४५०-४५४ सुवर्णद्वीप-एक द्वीप । चारुदत्त धन कमाने इसो द्वीप गया था। हपु०
२१.१०१ सवर्णनाभ-धातकीखण्ड द्वीप के मंगलावती देश में स्थित रत्नसंचयनगर के राजा पद्मनाभ का पुत्र । राजा इसे राज्य देकर दीक्षित हो गया
था। मपु० ५४.१३०-१३१, १५८-१५९ सवर्णपर्वत-अनन्तबल मुनिराज की तपोभूमि । रावण ने इन्हीं मुनि से
इमी पर्वत पर यह व्रत लिया था कि जो स्त्री इसे नहीं चाहेगी उसे
यह स्वीकार नहीं करेगा । पपु० १४.१०, ३७०-३७१ . सवर्णप्रभ-सौमनस वन का उत्तरदिशावर्ती भवन । यहाँ कुबेर सपरिवार क्रीडा करता है । यह पन्द्रह योजन चौड़ा, पच्चीस योजन ऊँचा तथा पैनालीस योजन को परिधिवाला है। चारों दिशाओं के भवन इसी प्रकार हैं । हपु० ५.३१५-३२१ । सवर्णभवन--सौमनस वन की चारों दिशाओं में विद्यमान चार भवनों
में पश्चिम दिशा का भवन । मह वरुण लोकपाल की क्रीडाभूमि है।
हपु० ५.३१९ दे० सुवर्णप्रभ सुवर्णयक्ष-एक यक्ष । इसने सत्यक मुनि को शस्त्र से मारने के लिए
उद्यत देखकर अग्निभूमि और वायुभूति दोनों ब्राह्मणों को कील दिया था। माता-पिता के निवेदन पर और जैनधर्म स्वीकार कर लेने पर इसने उन्हें मुक्त कर दिया था। मपु०७२.३-४, १५-२२ सुवर्णवती-भरतक्षेत्र को एक नदी। यह भरतक्षेत्र के इला पर्वत की दक्षिण दिशा में कुसुवतो , हरवती, गजवती और चण्डवेगा नदियों के
संगम में मिलती है । मपु० ५९.११८-११९, हपु० २७.१४ सवर्णवर-अन्तिम सोलह द्वीपों में आठवाँ द्वीप एवं समुद्र । हपु०
५.६२४ - सुवर्णवर्ण-(१) वीरपुर नगर का राजा। इसने तीर्थकर नमिनाथ को।
आहार देकर पंचाश्चर्य प्राप्त किये थे। मपु० ५९.५६।
(२) सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५,१९७ सुवर्णवर्मा-१) गांधार देश की उशीरवती नगरी के राजा आदित्यगति
का पौत्र तथा हिरण्यवती का पुत्र । हिरण्यवर्मा ने अभिषेकपूर्वक इसे राज्य देकर श्रीपुर नगर में श्रीपाल मुनि के पास जैनेश्वरी दीक्षा ले ली थी। मपु० ४६.१४५-१४६, २१६-२१७
(२) वंग केश के कान्तपुर नगर का राजा। इसकी रानी विद्युल्लेखा और पुत्र महाबल था। चम्पा नगरी के राजा श्रीषेण की
रानी धनश्री इसको बहिन थी । मपु० ७५.८१-८२ सुवर्णाभपुर-विजयाध पर्वत की दक्षिणश्रेणी का एक नगर । यहाँ का
राजा विद्याधर मनोवेग चन्दना को हरकर ले गया था किन्तु अपनी पत्नी मनोवेगा द्वारा डांटे जाने पर पर्णलध्वी विद्या से उसे चन्दना को भूतरमण अटवी में छोड़ देना पड़ा था। मपु०७५.३६-४४ दे०
सुविधि-(१) तीर्थकर वृषभदेव के चौथे पूर्वभव का जीव । यह जम्बुद्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में महावत्स देश की सुसीमा नगरी के राजा सुदृष्टि और रानी सुन्दरनन्दा का पुत्र था। इसने बाल्यावस्था में ही धर्म का स्वरूप समझ लिया था। इसका विवाह अभयघोष चक्रवर्ती की पुत्रो मनोरमा से हुआ था। केशव इसका पुत्र था। पुत्र के स्नेहवश यह गृह जीवन मे ही रहा किन्तु श्रावक के उत्कृष्ट पद में स्थित रहकर कठिन तप करने लगा था। जोवन के अन्त में इसने दिगम्बर दीक्षा ले ली थी तथा समाधिमरणपूर्वक देह त्याग कर यह अच्युत स्वर्ग में इन्द्र हुआ। मपु० १०.१२१-१२४, १४३-१४५, १५८, १६९-१७०, हपु० ९.५९
(२) नौवें तीर्थकर पुष्पदन्त का अपर नाम । मपु० ५५.१, वीवच० १८.१०१-१०६ दे० पुष्पदन्त
(३) चक्रवर्ती भरतेश को यष्टि । मपु० ३७.१४८
(४) सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१२५ सुविनमि-विजयाध पर्वत की उत्तरश्रेणी के स्वामी विनमि विद्याधर
का पुत्र । मपु० ४३.३०२, पापु० ३.५३ सुविशाल-(१) वृषभदेव के सड़सठवें गणधर । हपु० १२.६७
(२) मध्यम ग्रेवेयक का तीसरा इन्द्रक विमान । हपु० ६.५२
(३) सौधर्म स्वर्ग का एक विमान । ममु० ३६.१०५ सुधीथी-राम की चन्द्रकान्त मणियों से निर्मित शाला । पपु० ८३.६ सुवीर-(१) जरासन्ध के अनेक पुत्रों में एक पुत्र । हपु० ५२.३२
(२) मथुरा के राजा नरपति का दूसरा पुत्र । शौर्यपुर नगर के राजा शूर का यह छोटा भाई था। हपु० १८.७-९
(३) एक देश । यहाँ का राजा नन्द्यावर्तपुर के राजा अतिवीर्य का मित्र था। पपु० ३७.८, २३-२५ सुवीय-(१) राजा धृतराष्ट्र तथा रानी गांधारी का छियालीसा पुत्र । पापु० ८.१९८
(२) आदित्यवंशी राजा अतिवीर्य का पुत्र । राजा उदित पराक्रम का यह पिता था । इसने निर्ग्रन्थ दीक्षा ले ली थी । पपु० ५.७,९-१०
हपु० १३.१० सुबेग-रथनपुर के राजा अमिततेज विद्याधर से पांच सौ पुत्रों में एक
पुत्र । मपु० ६२.२६६-२७२ दे० अमिततेज सुवेगा-भरतक्षेत्र के विजया पर्वत पर स्थित शिवंकरनगर के राजा
पवनवेग विद्याधर की रानी । दुसरे जन्म के स्नेहवश चन्दना का हरण करनेवाले मनोवेग की यह माता थी । मपु० ७५.१६३-१६५ सुवेल-(१) विद्याधर अमररक्ष के पुत्रों के द्वारा बताये गये दस नगरों
चन्दना
• सुवा -राजा धृतराष्ट्र और रानी गांधारी का पैंतीसवाँ पुत्र । पापु०
८.१९७
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