Book Title: Jain Puran kosha
Author(s): Pravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan
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जैन पुराणकोश : ४५३
सुप्रभार्य-सुभद्र
(८) एक शिविका । तीर्थङ्कर अजितनाथ ने दीक्षा वन जाते समय । इसका व्यवहार किया था। मपु० ४८.३७
(९) विजयाध पर्वत पर स्थित वस्त्वालय नगर के राजा सेन्द्रकेतु को रानी । यह मदनवेगा की जननी थी। मपु० ६३.२५०-२५१
(१०) सौधर्मेन्द्र की देवी। इसने मनुष्य पर्याय पाकर तप करने का विचार किया था। फलस्वरूप वहाँ से चयकर इसने श्रीषण राजा की पुत्री होकर दीक्षा धारण की थी। मपु० ७२.२५१-२५६
(११) वैशाली के राजा चेटक और रानी सुभद्रा की तीसरी पुत्री । हेमकच्छ नगर के राजा दशरथ की यह रानी थी। मपु० ७५.३-६, १०-११
(१२) एक गणिनी। राजा दमितारि को पुत्री कनकधी ने इन्हीं से दीक्षा लो थी। मपु० ६२.५००-५०८
(१३) पुण्डरीकिणी नगरी के वच वैश्य की स्त्री। मपु० ७१. ३६६
(१४) प्रथम नारायण त्रिपृष्ठ की पटरानी । पपु० २०.२२७२२८
(१५) किन्नरगीत नगर के राजा रतिमयूख और अनुमति रानी की पुत्री । पपु० ५.१७९
(१६) राजा रक्षस की रानी । आदित्यगति और बृहत्कीर्ति इसके पुत्र थे । पपु० ५.३७८-३७९
(१७) पांचवें बलभद्र सुदर्शन की जननी । पपु० २०.२३८-२३९
(१८) राजा दशरथ की रानी । शत्रुघ्न इसके पुत्र थे । पपु० २२. १७६, २५.३९, ३७.५०
(१९) जनक के छोटे भाई कनक की रानी । लोकसुन्दरी इसको कन्या थी । पपु० २८.२५८
(२०) देवगीतपुर नगर के चन्द्रमण्डल की पत्नी। चन्द्रप्रतिम इसका पुत्र था । पपु० ६४.२४-३१ सुप्रभार्य-तीर्थङ्कर नमिनाथ के प्रमुख गणधर । मपु० ६९.६० सुप्रयोगा-भरतक्षेत्र की एक नदी । दिग्विजय के समय भरतेश की सेना
ने इस नदी को पार करके कृष्णवर्णा नदी की ओर प्रस्थान किया
था। मपु० २९.८६ सुप्रवृद्ध-मानुषोत्तर पर्वत के प्रवालकूट का स्वामी देव । हपु० ५.६०६ सुप्रसन्न-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.
सुफल्गु-राजा समुद्रविजय का पुत्र । हपु० ४८.४४ सुबन्धु-(१) चम्पा नगरी का एक वैभव सम्पन्न वैश्य । इसकी पत्नी
धनदेवी थी। इसकी एक पुत्री थी, जो शरीर से दुर्गन्ध निकलने के कारण दुर्गन्धा नाम से प्रसिद्ध थी। मपु० ७२.२४१-२४३, पापु० २४.२४-२५
(२) एक निर्ग्रन्थ मुनि । शाण्डिल्या अपनी बहिन चित्रमति को गर्भावस्था में इनके पास छोड़ गयो थी। चित्रमति के पुत्र होने पर इन्होंने उसके पुत्र को चक्रवर्ती होने की भविष्यवाणी की थी । मपु०
६५.११६-१२३ सुबन्धुतिलक-कमलसंकुल नगर का राजा। इसकी रानी मित्रा और
पुत्री कैकयी थी । पपु० २२.१७३-१७४ सुघल-(१) सूर्यवंशी राजा वलांक का पुत्र । यह राजा महाबल का पिता था। पपु० ५.५, हपु० १३.८
(२) सोमवंशी राजा महाबल का पुत्र । यह भुजबली का पिता था । पपु० ५.१०, १२, हपु० १३.१७ सुबाला-(१) कौशल देश में साकेत नगर के राजा समुद्रविजय की रानी । यह राजा सगर की जननी थी। मपु० ४८.७१-७२
(२) वाराणसी नगरी के राजा दशरथ की रानी। राम की यह जननी थी । मपु० ६७.१४८-१५० सुबाहु-(१) वृषभदेव के ग्यारहवें गणधर । हपु० १२.५८
(२) मथुरा के निवासी बृहध्वज का पुत्र । हपु० १८.१ (३) राजा धृतराष्ट्र और रानी गान्धारी का ग्यारहवाँ पुत्र । पापु० ८.१९४
(४) पुण्डरीकिणी नगरी के राजा वज्रसेन का पुत्र । यह पूर्वभव में अधौवेयक में अहमिन्द्र था। मपु० ११.९, ११-१२ सुबुद्धि-पोदनपुर के राजा श्रीविजय का एक मन्त्री । पोदनपुर नरेश के
मस्तक पर बज गिरने की हुई भविष्यवाणी के अनुसार राजा की सुरक्षा के लिए इस मन्त्री ने राजा को विजयाध पर्वत की गुफा में रहने की सलाह दी थी । मपु० ६२.१७२-१७३, २००, पापु० ४.९६
९८,११५
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सुप्रीतिक्रिया-गर्भान्वय की पन क्रियाओं में तीसरी क्रिया । यह क्रिया गर्भाधान के पश्चात् पाँचवें माह में की जाती है। इसमें मन्त्र और क्रियाओं को जाननेवाले श्रावकों को अग्नि देवता की साक्षी में अर्हन्त को प्रतिमा के समीप उनकी पूजा करके आहुतियाँ देना पड़ती है । आहुतियां देते समय निम्न मन्त्र बोले जाते हैअवतारकल्याणभागीभव, मन्दरेन्द्राभिषेककल्याणभागीभव, निष्क्रान्तिकल्याणभागीभव, आर्हन्त्यकल्याणभागीभव, परमनिर्वाणकल्याणभागीभव । मपु० ३८.५१-५५, ८०-८१, ४०.९७-१००
सुभग-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१८४ सुभद्र-(१) तीर्थङ्कर महावीर का निर्वाण होने के पश्चात् हुए आचा
रांग के ज्ञाता चार मुनियों में प्रथम मुनि । मपु० २.१४९-१५०, ७६.५२५, हपु० १.६५, ६६.२४, वीवच० १.५०
(२) मध्यम वेयक का एक इन्द्रक विमान । मपु० ५३.१५, ७३, ४०, हपु० ६.५२
(३) क्षेम नगर का एक श्रेष्ठी। इसकी पुत्री क्षेमसुन्दरी जीवन्धरकुमार को विवाही गयी थी। मपु० ७५.४०३, ४१०-४११,
(४) एक मुनि । कृष्ण को पटरानी गौरी ने चौथे पूर्वभव में यशस्विनी की पर्याय में इन्हीं से प्रोषधव्रत लिया था। हपु० ६०. ८९-१००
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