Book Title: Jain Puran kosha
Author(s): Pravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 476
________________ ४५८ : जैन पुराणकोश सुमेरु-सुरसन्निभ सुमेरु-(२) राम-लक्ष्मण का एक सामन्त । पपु० १०२.१४६ (२) मध्यलोक का सुप्रसिद्ध पर्वत । यह स्वर्णवर्ण का और कूटाकार है। ऐसे पाँच पर्वत है-जम्बूद्वीप में एक, धातकीखण्डद्वीप में दो और पुष्कराद्धद्वीप में दो। सूर्य और चन्द्र दोनों इसकी परिक्रमा करते हैं। इसके अनेक नाम है-वज्रमूल, सवैडूर्य, चूलिक, मणिचित्त, विचित्राश्चर्यकोर्ण, स्वर्णमध्य, सुरालय, मेरु, सुमेरु, महामेरु, सुदर्शन, मन्दर, शैलराज, वसन्त, प्रियदर्शन, रत्नोच्चय, दिशामादि, लोकनाभि, मनोरम, लोकमध्य, दिशामन्त्य, दिशामुत्तर, सर्याचरण, सूर्यावतं, स्वयंप्रभ और सूरिगिरि । मपु० ३.१५४, हपु० ५.३७३ ३७६, ५३६-५३७, ५७६ सुयज्वा-सोधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१२७ सुयशोवत्त-काशी देश की श्रावस्ती नगरी का मन्त्री। इसने कारण पाकर जिनदीक्षा धारण कर ली थी। किसो व्याध ने इसे पूजा के लिए आयी स्त्रियों से घिरा हुआ देखकर कर्कश वचन कहे थे । उन वचनों को सुनकर इसके मन में क्रोध उत्पन्न हो गया था । इसी क्रोध कषाय के कारण यह कापिष्ठ स्वर्ग का देव न होकर ज्योतिष्क देव हुआ । पपु० ६.३१७-३२५ सुयोधन-(१) रावण का आधीन एक राजा । पपु० १०.२४-२५ (२) भरतक्षेत्र के चारणयुगल नगर का राजा । इसकी रानी अतिथि थी। सुलसा इन्हों दोनों की पुत्री थी, जिसने स्वयंवर में मगर का वरण किया था। मपु० ६७.२१३-२१४, २४१-२४२ सुरकान्ता- अयोध्या नगरी के इक्ष्वाकुवंशी राजा ययाति की रानी । गजा वसु की यह जननी थी । पपु० ११.१३-१४ सुरकान्तार-विजया पर्वत की दक्षिणश्रेणी का एक नगर । यहाँ का राजा विद्याधर केसरिविक्रम था । मपु० ६६.११४ सुरकोति-सीर्थकर शान्तिनाथ के संघ का प्रमुख श्रावक । मपु० ६३. ४९४ सरगिरि-सुमेरु पर्वत का अपर नाम । पूर्व विदेहक्षेत्र को पुण्डरीकिणी नगरी के राजा गुणपाल को मुनि अवस्था में इसी पर्वत पर केवल ज्ञान हुआ था । मपु० ४७.३-६ दे० सुमेरु । सुरगुरु-(१) कुण्डलपुर नगर के राजा सिंहरथ का पुरोहित । मपु० ६२.१७८, पापु० ४.१०३-१०४ (२) एक चारणऋद्धिधारी मुनि । इन्होंने एक मरते हुए बन्दर को पंचनमस्कार मन्त्र सुनाया था जिसके प्रभाव से वह मरकर सौधर्म स्वर्ग में चित्रांगद नामक देव हुआ । ममु० ७०.१३५-१३८ सुरवत्त-तीर्थङ्कर वृषभदेव के नौवें गणधर । हपु० १२.५६ सुरदेव-आगामी दूसरे तीर्थङ्कर । मपु० ७६.४७७, हपु० ६०.५५८ सरदेवीकूट-शिखरिन् कुलाचल का चौथा कूट । हपु० ५.१०६ सरध्वंसी-एक विद्या। यह रावण को प्राप्त थी। पपु० ७.३२६. ३३२ सुरनिपात-एक वन । यहाँ प्रतिमायोग में विराजमान कनकशान्ति मुनि- राज के ऊपर चित्रचूल विद्याधर ने उपसर्ग किये थे। मपु० ६३. १२७-१२९ सुरप-एक जीव-दयालु पुरुष । यह यक्षस्थान नामक नगर का निवासी था । इसक कर्षक नामका एक छोटा भाई भी था। इन दोनों भाइयों ने किसी शिकारी द्वारा पकड़े गये पक्षी को मूल्य देकर मुक्त करा दिया था। पक्षी मरकर म्लेच्छ राजा हुआ और ये दोनों उदित और मुदित नामक दो भाई हुए । मपु० ३९.१३७-१३९ सुरनपुर-विद्याधरों का एक नगर । यहाँ का राजा रावण का पक्षधर था। पपु० ५५.८६-८८ सुरपर्वत-सुमेरु पर्वत का अपर नाम । श्रीकण्ठ यहाँ वन्दना करने आया ___ था। पपु० ६.१३ दे० सुमेरु सुरप्रभ-वंशस्थलपुर नगर का राजा। यह राम-लक्ष्मण और सीता का भक्त था । पपु० ४.२, ४३ सुरमंजरी-राजपुर नगर के सेठ वैश्रवण और उसका स्त्री आम्रमंजरी की पुत्रो । इसके पास चन्द्रोदय नाम का तथा इसी नगर के कुमारदत्त सेठ की पुत्री गुणमाला के पास सूर्योदय नाम का चूर्ण था । जीवन्धरकुमार ने दोनों चूों में इसका चूर्ण श्रेष्ठ बताया था। यह जीवन्धरकुमार पर मुग्ध हो गयी थी। माता-पिता ने इसके मनोगत भाव जानकर इसे जोवन्धर के साथ विवाह दिया था। मपु० ७५.३११, ३४८-३५७, ३७०-३७२ सुरमन्यु सप्तषियों में प्रथम ऋषि । ये प्रभापुर नगर के राजा श्रीनन्दन तथा रानी धरणी के पुत्र थे। ये सात भाई थे। उनमें ये सबसे बड़े थे। इनके जो छोटे भाई थे उनके नाम है-श्रीमन्यु, श्रीनिचय, सर्वसुन्दर, जयवान्, विनयलालस और जयमित्र । पिता सहित ये सातों भाई प्रीतिकर मुनिराज के केवलज्ञान के समय देवों का आगमन देखकर प्रतिबोध को प्राप्त हुए थे। राजा श्रीनन्दन ने एक माह के बालक डमरमंगल को राज्य देकर इन सातों पुत्रों के साथ प्रीतिकर मुनि के समीप दीक्षा धारण कर ली थी। राजा श्रीनन्दन के मोक्ष जाने पर ये सातों भाई सप्तर्षि नाम से विख्यात हुए। इनके प्रभाव से चमरेन्द्र यक्ष द्वारा मथुरा नगरी में फैलाया गया महामारी रोग शान्त हो गया था। ये आकाशगामी थे। सीता ने विधिपूर्वक सहर्ष इनकी पारणा कराई थी । पपु० ९२.१-१३, ७८-७९ सुरमलय-एक उद्यान । जीवन्धरकुमार ने इसी उद्यान में वरधर्म यति से तत्त्व का स्वरूप जाना था तथा वीर जिनेश से संयम लिया था। मपु० ७५.३४६, ६७४, ६७९-६८२ सुरम्य-जम्बूद्वीप के दक्षिण भरतक्षेत्र का एक देश । पोदनपुर इसी देश का एक नगर था। मपु० ६२.८९, ७४.११९-१२०, पापु० ११.४३ सुरवती-सुग्रीव की सातवीं पुत्री । यह राम के गुण सुनकर स्वयंवरण की इच्छा से राम के निकट गयो थी । पपु० ४७.१३६-१४४ सुरश्रेष्ठ-इक्कीसवें तीर्थकर नमिनाथ के पूर्वभव का नाम । पप०२०. २३-२४ सुरसन्निभ-गन्धर्वगीत नगर का राजा। इसकी रानी गान्धारी तथा पुत्री का नाम गन्धर्वा था। राजा भानुरक्ष इसका जामाता था। पपु० Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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