Book Title: Jain Puran kosha
Author(s): Pravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan
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३८२ : जैन पुराणकोश
५.१२५-१३०, ८.७५, ११.१७१-१७४, ७५. ६२०-६२४, पपु०
५.२३०, २९.७६-७७ विष्टरक्षवा-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु०
२५.१६४ विष्ण-(१) महावीर-निर्वाण के बासठ वर्ष पश्चात् हुए पांच आचार्यों
में प्रथम आचार्य । ये अतकेबली थे। मपु० २.१४०-१४१, हपु०
(२) कृष्ण का एक नाम । मपु० ७२.१८१, हपु० ४७.१७, पापु० २.९५
(३) कृष्ण के कुल का रक्षक एक नृप । हपु० ५०.१३०
(४) जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में स्थित सिंहपुर नगर का राजा । यह इक्ष्वाकुवंश में उत्पन्न हुआ था। नन्दा इसकी रानी और तीर्थ- ङ्कर श्रेयांसनाथ इसके पुत्र थे। मपु० ५७.१७-१८, ३३, पपु० २०.४७
(५) भरतेश द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २४.३५
(६) हस्तिनापुर के राजा महापद्म (नवें चक्रवर्ती) का दूसरा पुत्र । यह अपने पिता के साथ दीक्षित हुआ। तप के प्रभाव से इसे विक्रियाऋद्धि प्राप्त हुई । (लोक में यही मुनि विष्णुकुमार के नाम से प्रसिद्ध हुआ)। इसके भाई पद्म के मंत्री बलि के द्वारा अकम्पनाचार्य आदि सात सौ मुनियों पर उपसर्ग किये जाने पर इसने दो पद में बिक्रियाऋद्धि से समस्त पृथिवी नाप कर उपसर्ग दूर किया था । तप द्वारा वह घातियाकर्मों का क्षय करके केवली हुआ और देह त्याग करके मुक्ति प्राप्त की। मपु० ७०.२८२-३००, पपु० २०.१७९१८३, हपु० २०.१५-६३, ४५. २४, पापु० ७.५७-७२ दे० अकम्पना
चार्य, पुष्पदन्त और बलि विष्णुधी-सिंहपुरी के राजा विष्णु की रानी । यह तीर्थङ्कर श्रेयांसनाथ
की जननी थी । पपु० २०.४७ विष्णुसंजय-कृष्ण का एक पुत्र । हपु० ४८.६९ विष्णुस्वामी-राजा जरासन्ध का एक पुत्र । हपु० ५२.३९ विष्वाणसमिति-अहिंसावत की पांच भावनाओं में पांचवीं भावना।
इसमें जल-पान और भोजन भली प्रकार देखकर ही करना होता है।
मपु० २०.१६१ विस्तारसम्यक्त्व-सम्यक्त्व के दस भेदों में सातवा भेद । जीव आदि
पदार्थों का विस्तृत कथन सुनकर प्रमाण और नयों के द्वारा धर्म में उत्पन हुआ श्रद्धान विस्तार-सम्यक्त्व कहलाता है। मपु० ७४.४३९
४४०, ४४५-४६, वीवच० १९.१४१, १४९ विहतान्तक–सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु०
२५.१४१ विहायस्तिलक-एक नगर । यहाँ का राजा सुलोचन था। इसने अपनी
उत्पलमती कन्या का विवाह चक्रवर्ती सगर के साथ किया था।
पपु० ५.७६-८३, दे० पूर्णघन बिहारक्रिया-गर्भान्वयी श्रेपन क्रियाओं में इक्यावनवी क्रिया । धर्मचक्र
विष्टरषधा-धीतशोकपुर को आगे करके तीर्थङ्करों का एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना विहारक्रिया कहलाती है । तीर्थङ्कर विहार करते समय आकाशमार्ग से चलते हैं । उनके चरणों के आगे और पीछे सात-सात तथा चरणों के नीचे एक इस प्रकार पन्द्रह कमलों की रचना की जाती है। मन्द-सुगन्धित वायु बहती है और भूमि निष्कण्टक हो जाती है।
मपु० ३८.६२-६३, ३०४, हपु० ३.२०-२४ विहीत-बाली के पूर्वभव के जीव मेघदत्त का पिता । यह ऐरावत क्षेत्र
के दितिनगर का निवासी था। इसकी स्त्री का नाम शिवमति था।
पपु० १०६.१८७-१८८ बीचार-अर्थ, व्यंजन तथा योगों का संक्रमण (परिवर्तन)। मपु०
२१.१७२ बीणागोष्ठी-वीणा-वादकों की गोष्ठी। इसमें वीणा-वादक एकत्रित
होकर वीणा-वादन द्वारा लोगों का मनोरंजन करते हैं। तीर्थकर
वृषभदेव ऐसी गोष्ठियों में सम्मिलित होते थे। मपु० १४.१९२ वीतकल्मष-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु०
२५.१३८ वीतभय-(१) मेरु गणधर के दूसरे पूर्वभव का जीव । पूर्व धातकीखण्ड
के पश्चिम विदेह क्षेत्र गन्धिल देश की अयोध्या नगरी के राजा अहंदास और रानी सुव्रता का पुत्र । यह बलभद्र था। नारायण विभीषण इसका छोटा भाई था । आयु के अन्त में नारायण रत्नप्रभा पृथिवी में उत्पन्न हुआ तथा यह अनिवृत्ति मुनि से संयम लेकर तप करके आदित्याभ नाम का लान्तवेन्द्र हुआ। मपु० ५९.२७६-२८०, हपु० २७.१११-११४
(२) सिन्धु देश का एक नगर । कृष्ण की पटरानी गौरी इसी नगर के राजा मेरु की पुत्री थी । हपु० ४४.३३-३६ । वीतभी-(१) सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.२११
(२) सूर्यवंशी राजा अविध्वंस का पुत्र । वृषभदेव इसका पुत्र था। पपु० ५.८, हपु० १३.११ बीतमत्सर-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तूत वृषभदेव का एक नाम । मपु०
२५.१२४ वोतराग-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० ___ २५.१८५ वीतशोक-पुष्करवर द्वीप में पश्चिम मेरु के सरिद देश का एक नगर ।
चक्रध्वज यहाँ का राजा था। मपु० ६२.३६४-३६५ वीतशोकपुर-(१) जम्बद्वीप के पश्चिम विदेहक्षेत्र में गन्धमालिनी देश
का एक नगर । वैजन्त यहाँ का राजा था । इसका अपर नाम बीतशोका था । मपु० ५९.१०९-११०, हपु० २७.५
(२) जम्बूद्वीप के पूर्वविदेहक्षेत्र में पुष्कलावती देश का एक नगर। जाम्बवती सातवें पूर्वभव में यहाँ के वैश्य दमक की पुत्री देविला थी। वीतशोका इसका अपर नाम था । मपु० ७१.३६०-३६१, ७६.१३०, हपु० ६०.४३, ६८-६९
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