Book Title: Jain Puran kosha
Author(s): Pravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan
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३८० : जेन पुराणकोश
नहीं करना चर्या तथा आयु के अन्त में शरीर का आहार और समस्त चेष्टाओं का परित्याग करके ध्यान की शुद्धि से आत्मा को शुद्ध करना साधन कहलाता है । मपु० ३९.१४३ - १४९
विशोक - सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम। मपु० २५.१२४ विशोका - विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्र ेणी की चौबीसवीं नगरी । मपु० १९.८१, ८७
विश्रवस — यक्षपुर का एक धनिक । कौतुकमंगल नगर के विद्याधर राजा व्योमबिन्दु और रानी नन्दवती की बड़ी पुत्री कौशिकी का पति । वैश्रवण इसका पुत्र था । पपु० ७.१२६-१२८ विश्रुत -- (१) सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम। मपु०
२५.१२०
(२) समवसरण के तीसरे कोट के पूर्व द्वार का एक नाम । हपु०
५७.५७
विश्व – कुरुवंशी एक राजा । यह राजा वरकुमार का उत्तराधिकारी । था । इसके पश्चात् राजा वैश्वानर हुआ था । हपु० ४५.१७ विश्वकर्मा - सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम। मपु० २५.
१०३
।
विश्व कीर्ति एक मूनि पृतराष्ट्र के छोटे भाई बिदुर ने इन्हीं मुनि से मुनि धर्म श्रवणकर मुनिदीक्षा ग्रहण की थी । पापु० १९.६-७ विश्व केतु — कुरुवंशी एक राजा । इसे राज्य शासन राजा वैश्वानर से प्राप्त हुआ था । हपु० ४५.१७
विश्वक्सेन विजयार्थ पर्वत की दक्षिणश्रेणी में जम्बुपुर नगर के राजा जाम्बव-विद्याधर और रानी - शिवचन्द्रा का पुत्र । जाम्बवती इसकी बहिन थी जिसका कृष्ण के द्वारा हरण किये जाने पर इसके पिता ने अनावृष्टियोद्धा का सामना किया। युद्ध में पकड़े जाने पर उत्पन्न वैराग्यवश वह इसको कृष्ण के आधीन कर तप के लिए वन चला गया था । कृष्ण सम्मान पूर्वक इसे द्वारिका लाये थे । हपु० ४४.४-१६ विश्व सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम मपु०
२५.१२३
विश्वज्योति — सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१०३
विश्वत. पावसीधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत युषभदेव का एक नाम मपु० २५.२१०
विश्व सौपर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम मपु० २५.१०१
विश्वतोऽसि - भरतेश द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम। मपु०
२४.३२
विश्वतोमुख भरतेश एवं सोमेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २४.३१, २५.१०२
विश्वसौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम। ० २५.८१ विश्वभरतेय एवं सोयर्मेन्द्र द्वारा स्तुत भदेव का एक नाम। मपु० २४.३२, २५.१०३
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विशोक-विश्वभूति
विश्व [at] - सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१०२
विश्वदेव बातकीखण्ड द्वीप के पूर्वविदेहक्षेत्र में मंगावती देश के रत्नसंचय नगर का राजा । इसकी रानी अनुन्दरी थी। यह अयोध्या के राजा पद्मसेन द्वारा मारा गया था। इसका अपर नाम विश्वसेन था । मपु० ७१.३८६-३९७, हपु० ६०.५८-५९ विश्वधुक् — समवसरण के तीसरे कोट के पूर्वी द्वार का एक नाम । हपु० ५७.५७ विश्वनम्बी- प्रथम नारायण त्रिपृष्ठ पूर्वभव का जीव। यह जम्बूद्वीप में भरतक्षेत्र के मगध देश में स्थित राजगृह नगर के राजा विश्वभूति और रानी जैनी का पुत्र था। इसके चचेरे भाई विशाखनन्दी ने छलपूर्वक इसका नन्दन उद्यान ले लिया था। अतः इसने विशाखनन्द से युद्ध किया। युद्ध से विशाखनन्दी के भाग जाने पर इसे वैराग्य उत्पन्न हो गया । यह विशाखभूति के साथ सम्भूत गुरु के समीप दीक्षित होकर विहार करते हुए मथुरा आया। वहाँ किसी गाय के मारने से गिर गया। इस पर चचेरे भाई विशाखनन्दी ने उपहास किया । यह निदानपूर्वक मरकर महाशुक्र स्वर्ग में देव हुआ और वहाँ से चयकर प्रथम नारायण त्रिपृष्ठ हुआ । यही आगे तीर्थङ्कर महावीर हुआ। मपु० ५७.७०-८५, ७६.५३८, ० २०.२०६२०९, वीवच० ३.६१-६३, दे० महावीर विश्वनायक – सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१२३ विश्वप्रवेशिनी - कुल और जाति में उत्पन्न विद्या । यह विद्याधरों के पास होती है । अर्ककीर्ति के पुत्र अमिततेज ने यह विद्या सिद्ध की थी । मपु० ६२.३८७-३९१ विश्वभाववित्सीचन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम। म २५.२१०
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विश्वभुक्— भरतेश एवं सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २४.३२, २५.१२३
विश्व - (१) सोमेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम
२५.१००
(२) राजा सगर चक्रवर्ती का मंत्री । इसने षड्यन्त्र रचकर अपने स्वामी सगर का सुलसा से विवाह कराया था। इसका अपर नाम विश्वमूर्ति था। मपु० ६७.२१४०४५५, ६० २३,५६, दे० मधुपिंगल
विश्वभूति - ( १ ) सगर चक्रवर्ती का पुरोहित । सगर के कहने पर
इसने मनुष्यों के लक्षणों को बतानेवाला एक सामुद्रिक शास्त्र बनाया था। इसी शास्त्र की रचना से सगर सुलसा को स्वयंवर में प्राप्त कर सका था । इसका अपर नाम विश्वभू था । हपु० २३.५६, १०८-११०, १२५
(२) मगघदेश के और पुत्र विश्वनन्दि
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राजगृह नगर का राजा । इसकी रानी जैनी था। यह शरद् ऋतु के मेघों का विनाश
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