Book Title: Jain Puran kosha
Author(s): Pravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 416
________________ ३९८ : जैन पुराणकोश शर्करानभा-शल्लको ६. संघाट २८.५०.००० योजन ७. जिह्व २७.५८.३३३३ , ८. जिबिक २६.६६.६६६३ , ९. लोल २५.७५.००० , १०. लोलुप २४.८३.३३३३ , ११. स्तनलोलुप २३.९१.६६६३ , इन्द्रक बिलों की मुटाई डेढ़ कोश, श्रेणीबद्ध बिलों की दो कोश और प्रकीर्णक बिलों की साढ़े तीन कोश होती है । इन्द्रक बिलों का अन्तर १९९९ योजन और ४७०० धनुष है। श्रेणीबद्ध बिलों का अन्तर २९९९ योजन और ३६०० धनुष तथा प्रकीर्णक बिलों का अन्तर २९९९ योजन और ३०० धनुष है। यहाँ के प्रस्तारों में नारकियों की आयु का क्रम इस प्रकार होता है १४ هه هه هه ماه معاویه های ماه هام नाम प्रस्तार जधन्य आयु उत्कृष्ट आयु १. स्तरक एक सागर, एक समय १३१ सागर २. स्तनक ११३ सागर ३. मनक ४. वनक ५. घाट ६. संघाट ७. जिह्व ८. जिह्विक ९. लोल १०. लोलुप ११. स्तनलोलुप २१३, ' इस नरक के नारकियों की ऊंचाई निम्न प्रकार होती हैनाम प्रसार १. स्तरक २३ २. स्तनक २२१ ३. मनक ४. वनक १४१३ ५. घाट ६. संघाट ७. जिह्व ८. जिह्विक २३५ ९. लोल १९. १०. लोलुप ११. स्तनलोलुप १५ २ नारकियों के उत्पत्ति स्थानों का आकार ऊँट, कुम्भी, कुस्थली, मुद्गर, मृदंग और नाड़ी के समान होता है। इन्द्रक-बिल तीन द्वारवाले तथा तिकोने होते हैं। श्रेणीबद्ध और प्रकीर्णक बिल तिकोने, पचकोने और सतकोने भी होते हैं। नारकियों के ये सभी उत्पत्ति स्थान है । इस पृथिवी के उत्पत्तिस्थानों में जन्मनेवाले जीव पन्द्रह योजन अढ़ाई कोश आकाश में उछलकर नीचे गिरते हैं। असुरकुमार देव यहाँ नारकियों को परस्पर में पूर्व वैरभाव का स्मरण कराकर लड़ाते हैं । सरक कर चलनेवाले जीव इस भूमि के आगे की भूमियों में उत्पन्न नहीं होते हैं। इस भूमि से निकला जीव मनुष्य या तिर्यच होकर पुनः इस भूमि में छ: बार उत्पन्न हो सकता है। यहाँ से निकला जीव सम्यग्दर्शन की शुद्धि से तीर्थंकर पद प्राप्त कर सकता है । मपु० १०.३१-३२, ४१, हपु० ४.७८-७९, १०५-११७, १५३, १६२, १८४-१९४, २१९, २२९-२३२, २५९-२६९ ३०६-३१६, ३४१-३४७, ३५१-३५२, ३५६, ३६२, ३७३, ३७७, ३८१ शर्करावती-भरतक्षेत्र के आर्यखण्ड की एक नदी। यह समुद्र में जाकर मिलती है । दिग्विजय के समय चक्रवर्ती भरतेश की सेना यहाँ आयी थी। मपु० २९.६३ शर्मा-राजा कृतवर्मा की रानी । तीर्थंकर विमलनाथ की ये जननी थीं। पपु० २०.४९ शर्वर-भरतक्षेत्र का एक देश । लवणांकुश और मदनांकुश ने इस देश के स्वामी को पराजित किया था । पपु० १०१.८१ शर्वरी-(१) एक विद्या । अर्ककीर्ति के पुत्र अमिततेज ने इसे सिद्ध किया था। मपु० ६२.३९५ (२) परियात्रा अटवी की एक नदी । वनवास के समय राम और लक्ष्मण यहाँ आये थे। पपु० ३२.२८-२९ शलभ-भरतक्षेत्र का एक देश । लवणांकुश और मदनांकुश कुमारों ने इस देश के स्वामी को पराजित किया था । पपु० १०१.७७ शलाकापुरुष-प्रत्येक कल्पकाल के तिरेसठ महापुरुष । वे हैं-चौबीस तीर्थकर, बारह चक्रवर्ती, नौ नारायण, नौ प्रतिनारायण और नौ बलभद्र । मपु १.१९-२०, पपु० २०.२१४, २४२, हपु०५४.५९-६० ६०.२८६-२९३, वीवच० १८.१०५-११६ शल्य-(१) यादवों का पक्षधर एक महारथी राजा । हपु० ५०.७९ (२) जरासन्ध का पक्षधर एक विद्याधर राजा । इसने प्रद्युम्न के साथ युद्ध किया था। इसके रथ के घोड़े लाल और ध्वजा पर हल्को लकीरें थीं । अन्त में यह युधिष्ठिर द्वारा युद्ध में मार डाला गया था। मपु० ७१.७८, हपु० ५१.३०, पापु० १९.११९, १७५, २०.२३९ (३) राम का पक्षधर एक राजा। यह विशुद्ध कुल में उत्पन्न हुआ था। इसने जोर्णतण के समान राज्य त्याग करके महाव्रत धारण कर लिये थे। आयु के अन्त में इसने परमात्म पद पाया । पपु० ५४.५६, ८८.१-३, ७-९ शल्लको-जम्बद्वीप के निज पर्वत की एक अटवी-वन । मुनि मृदु धनुष अंगुल १८१६ १२ यहाँ अवधिज्ञान का विषय साढ़े तीन कोश प्रमाण है। नारकी कापोत लेश्यावाले होते हैं। उन्हें उष्ण-वेदना अधिक होती है। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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