Book Title: Jain Puran kosha
Author(s): Pravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan
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३९६ : जैन पुराणकोश
शत्रु-शब्बनय
में उत्पन्न हुए। यह पर्वत एक तीर्थ के रूप में मान्य हुआ। मपु० ७२.२६७-२७०, हपु०६५.१८-२०
(२) राजा विनमि विद्याधर का पुत्र । हपु० २२.१०४
(३) विजयाध पर्वत की उत्तरश्रेणी का सातवाँ नगर। मपु० १९.८०,८७, हपु० २२.८६
(४) राजा धृतराष्ट्र और रानी गान्धारी का तिरेपना पुत्र । पापु०८.१९९
(५) एक राजा । यह रोहिणी के स्वयंवर में आया था। रोहिणी के लिए इसने वसुदेव के साथ युद्ध किया था। वसुदेव ने इसका रथ और कवच तोड़ डाला था और इसे मूच्छित अवस्था में छोड़ दिया था। हपु० ३१.२७, ९४-९५, ५०.१३१-१३२ शत्रु-आत्महितकारी तप, दीक्षा और व्रत आदि ग्रहण करने में बाधक
कुबुद्धि । वीवच० ८.४४ शत्रुघ्न-(१) सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५. २०१
(२) वसुदेव और देवकी का पाँचवाँ पुत्र । यह अपने भाई जितशत्रु के साथ युगल रूप से उत्पन्न हुआ था। कंस का यह घातक था। कंस-जन्मते ही इसका वध करना चाहता था। सुनैगम देव ने भदिलसा नगर के सुदृष्टि सेठ की अलका सेठानी के यहाँ हुए मृतयुगल पुत्र लाकर देवकी के पास रखे और देवकी के ये युगल पुत्र उसके पास रखकर इनकी रक्षा की थी। कंस मृत पुत्र देवकी के ही समझा था। यह अपने अन्य पाँचों भाइयों के साथ अरिष्टनेमि के समवसरण में आया था। यहाँ धर्म को सुनकर ये सभी भाई अरिष्टनेमि से दीक्षित हो गये थे । अन्त में छहों भाई तपकर गिरनार पर्वत से मोक्ष गये। चौथे पूर्वभव में यह मथुरा नगरो के भानु सेठ का शूरदत्त नामक पुत्र था। तीसरे पूर्वभव में यह सौधर्म स्वर्ग में त्रायस्त्रिंश जाति का देव हुआ । इस स्वर्ग से चयकर दूसरे पूर्वभव में धातकीखण्ड द्वीप के पूर्व भरतक्षेत्र सम्बन्धी विजया की दक्षिणश्रेणी में नित्यालोक नगर के राजा चित्रचूल का पुत्र मणिचूल विद्याधर
और प्रथम पूर्वभव में यह भरतक्षेत्र के हस्तिनापुर नगर के राजा गंगदेव और रानी नन्दयशा का पुत्र सुनन्द था। मपु० ७१.२०१- २०४, २४५-२५१, २६०-२६३, २९३-२९६, हपु० ३३.३-८, ९७, १३०-१४३, ५९.११५-१२०, ६५.१६-१७
(३) जम्बूद्वीप भरतक्षेत्र की अयोध्या नगरी के राजा दशरथ और रानी सुप्रभा का पुत्र । पद्म (राम) लक्ष्मण और भरत इसके बड़े भाई थे। पद्म का दूसरा नाम राम था। राम और लक्ष्मण के जन्म के समय दशरथ वाराणसी के राजा थे और भरत तथा इसके जन्म के समय वे अयोध्या में रहने लगे थे। लंका विजय करने के पश्चात् अयोध्या आकर राम के द्वारा अयोध्या का आधा राज्य या पोदनपुर, राजगृह, पौड्रनगर आदि नगरों में किसी भी नगर का राज्य लेने के लिए इससे आग्रह किये जाने पर इसने राम से मथुरा का राज्य चाहा था। मथुरा में राजा मधु का शासन था। इसने कृतान्तवक्त्र के
सेनापतित्व में सेना संगठित कर अर्धरात्रि के समय मधु पर आक्रमण किया। युद्ध करते-करते हो मधु को वैराग्य उत्पन्न हुआ । द्विविध परिग्रह त्याग करके मधु ने हाथी पर बैठे-बैठे ही केशलोंच किये । मधु की यह स्थिति देखकर इसने नमस्कार करते हुए उससे क्षमा याचना की थी। इस प्रकार इसे मथुरा का राज्य प्राप्त हो गया था। मधु को दिया गया शूलरत्न लौटकर आने से मधु का मरण जानकर चमरेन्द्र कुपित हुआ और उसने मथुरा में महारोग फैलाये थे । चमरेन्द्र के उपसर्गों से त्रस्त होकर और कुल देवता की प्रेरणा से यह अध्योया लौट आया था। सप्तर्षियों के आने पर उपसर्ग दूर होने के समाचार ज्ञातकर यह मथुरा आया तथा इसने सप्तर्षियों के उपदेशानुसार नगर के भीतर और बाहर सप्तर्षि प्रतिमाएं चारों दिशाओं में स्थापित कराई थीं। अन्त में राम इसे राज्य देकर तप करना चाहते थे किन्तु इसने राज्य न लेकर समाधि रूपी राज्य प्राप्ति की कामना की थी । अन्त में यह निर्ग्रन्थ होकर श्रमण हो गया था। मपु० ६७.१४८-१५३, १६३-१६५, पपु० २५.१९, २२-२६, ३५३६, ८९.१-१०, ३६, ५६, ९६-११६, ९०.१-४, २२-२४, ९२.१
४,७-११, ४४-५२, ७३-८२, ११८.१२४-१२६, ११९.३८ शत्रुवमन-(१) कृष्ण का पक्षधर एक राजा । हपु० ५०.१२४
(२) वृषभदेव के चौथे गणधर । हपु० १२.५५ शत्रुवमनी-एक विद्या । यह विभीषण को प्राप्त थी । पपु० ७.३३४ शत्रुन्चम-क्षेमांजलि नगर का राजा । इसकी गुणवती रानी और जितपद्मा पुत्री थी । लक्ष्मण ने इसे पराजित कर जितपद्मा को अपनी
अर्धांगिनी बनाया था। पपु० ३८.५७, ७२-७३,१०६-१३९ शत्रुमर्दन-कपित्थ वन के दिशागिर पर्वत पर वनगिरि नगर के भीलों
के राजा हरिविक्रम का एक सेवक । मपु० ७५, ४७८-४८१ शत्रुसह-राजा धृतराष्ट्र और रानी गान्धारी का चौवनवाँ पुत्र । पापु०
८.१९९ शत्रुसेन-जरत्कुमार को सन्तति में हुए राजा अजातशत्रु का पुत्र और
जितारि का पिता । हपु० ६६.१-५ शनि-ज्योतिर्लोक के देव । ये आधा पल्य जीते हैं। इनके विमान तप्त
स्वर्ण वर्ण के होते हैं । हपु० ६.९, २१ शन्तनु-(१) बलदेव का चौदहवाँ पुत्र । हपु० ४८.६७,५०.१२५
(२) कुरुवंशी एक राजा । यह राजा शान्तिषेण का पुत्र था। योजनगन्धा इसकी रानी और धृतव्यास पुत्र था। पाण्डवपुराण में योजनगन्धा पाराशर ऋषि की पत्नी तथा व्यास की जननी भी कही
गयी है । हपु० ४५.३०-३१, पापु० २.३०-४१ शवर म्लेच्छ जाति के पुरुष । ये दूसरों की रक्षा करते थे। मपु०
१६.१६१ शम्दनय-सात नयों में पांचवाँ नय । यह नय लिंग, साधन (कारक),
संख्या (वचन), काल और उपग्रह पद के दोषों को दूर करता है। यह व्याकरण के नियमों के आधीन होता है । हपु०५८.४१,
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