Book Title: Jain Puran kosha
Author(s): Pravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

View full book text
Previous | Next

Page 431
________________ श्रीद्धित-श्रीशैल जैन पुराणकोश : ४१३ श्रीद्धित-अमोघशर ब्राह्मण और मित्रयशा ब्राह्मणी का पुत्र । व्याघ्रपुर । पुत्र अमिततेज को वरा था तथा अमिततेज की बहिन सुतारा ने नगर में इसने शिक्षा प्राप्त की थी। इसने राजा सुकान्त की पुत्री इसका वरण किया था । अपने ऊपर किसी निमित्तज्ञानी से वज्रपात शीला का हरण करके शीला के भाई सिंहेन्दु को युद्ध में पराजित होने की भविष्यवाणी सुनकर यह सिंहासन पर एक यक्ष की प्रतिमा किया । राजा कररुह को हराकर पोदनपुर का राज्य भी इसने प्राप्त विराजमान कर जिनचैत्यालय में शान्तिकर्म करने लगा था। सातवें कर लिया था । पपु० ८०.१६८-१७६ दिन यक्ष को मूर्ति पर वज्रपात हुआ और इसका संकट टल गया । श्रीवर्मा-(१) जम्बूद्वीप के मेरु पर्वत से पश्चिम की ओर विदेहक्षेत्र चमरचंचपुर के राजा इन्द्राशनि के पुत्र अशनिघोष विद्याधर ने में विद्यमान गन्धिल देश के सिंहपुर नगर के राजा श्रीषेण का छोटा कृत्रिम हरिण के छल से इसे सुतारा के पास से हटाकर तथा अपना पुत्र । यह जयवर्मा का छोटा भाई था। पिता ने प्रेम वश राज्य इसे श्रीविजय का रूप बनाकर सुतारा का हरण किया था। अशनिघोष ही दिया था। पिता के ऐसा करने से जयवर्मा विरक्त होकर दीक्षित ने वैताली विद्या को सुतारा का रूप धारण कराकर सुतारा के स्थान हो गया था। मपु० ५.२०३-२०८ में बैठा दिया था। कृत्रिम सुतारा से छलपूर्वक सर्प के द्वारा डसे जाने के समाचार ज्ञात कर इसने भी सुतारा के साथ जल जाने का (२) पुष्करद्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में मंगलावती देश के रत्नसंचय उद्यम किया था, किन्तु विच्छेदिनी विद्या से किसी विद्याधर ने नगर के राजा श्रीधर और रानी मनोहरा का पुत्र । यह बलभद्र वैताली विद्या को पराजित कर कृत्रिम सुतारा का रहस्य प्रकट कर और इसका छोटा भाई विभीषण नारायण था। पिता ने राज्य इसे दिया था। अशनिधोष विद्याधर के इस प्रपंच को अमिततेज के ही दिया था। इसकी माता मरकर ललितांग देव हुई थी। विभीषण आश्रित राजा सम्भिन्न से ज्ञातकर इसने उससे युद्ध किया । अन्त में के मरने से शोक संतप्त होने पर ललितांग देव ने इसे समझाया था, अशनिघोष युद्ध से भागकर विजय मुनि के समवसरण में जा छिपा । जिससे इसने युगन्धर मुनि से दीक्षा ले ली थी तथा तप किया था। पीछा करते हुए समवसरण में पहुँचने पर यह भी सभी वैर भूल आयु के अन्त में मरकर यह अच्युत स्वर्ग में देव हुआ। मपु० गया । इसे यहाँ सुतारा मिल गयी थी। इसने नारायण पद पाने का ७.१३-२४ निदान किया था। अन्त में श्रीदत्त पुत्र को राज्य देकर और (३) तीर्थकर चन्द्रप्रभ के पांचवें पूर्वभव का जीव-पुष्करद्वीप के समाधिमरण पूर्वक देह त्याग कर यह तेरहवें स्वर्ग के स्वस्तिक पूर्वमेरु से पश्चिम की ओर विद्यमान विदेहक्षेत्र के सुगन्धि देश में विमान में मणिचूल देव हुआ। मपु० ६२.१५३-२८५, ४०७, ४११, श्रीपुर नगर के राजा श्रीषेण और रानी श्रीकान्ता का पुत्र । यह पापु० ४.८६-१९१, २४१-२४५ उल्कापात देखकर भोगों से विरक्त हो गया था तथा इसने श्रीकान्त श्रीविजयपुर-एक नगर । इसे लक्ष्मण ने जीता था। पपु० ९४.८-९ ज्येष्ठ पुत्र को राज्य देकर श्रीप्रभ मुनि से दीक्षा ले ली थी। अन्त धीवृक्ष-(१) तीर्थंकरों के वक्षःस्थल पर रहनेवाला श्रीवत्स-चिह्न । में यह श्रीप्रभ पर्वत पर विधिपूर्वक संन्यासमरण करके प्रथम स्वर्ग मपु० २३.५९ के श्रीप्रभ विमान में श्रीधर देव हुआ । मपु० ५४-८-१०, २५, ३६, (२) राजा श्रीवर्धन का पुत्र । यह संजयन्त का पिता था । पपु० ३९, ६८, ८०-८२ २१.४९-५० (४) जम्बूद्वीप के ऐरावतक्षेत्र में अयोध्या नगरी का एक राजा । (३) एक विद्याधर राजा । यह राम का भक्त था । पपु०६१.१३ सुसोमा इसकी रानी थी। मपु० ५९.२८२-२८३ (४) कुण्डलगिरि के पश्चिम दिशावर्ती मणिकट का निवासी (५) अवन्ति देश की उज्जयिनी नगरी का राजा । इसी के बलि, एक देव । हपु० ५.६९३ आदि मंत्रियों ने हस्तिनापुर के राजा पद्म को प्रसन्न कर उनसे (५) कुण्डलगिरि की पश्चिम दिशा का एक कूट । यह एक हजार छलपूर्वक सात दिन के लिए राज्य लेकर अकंपन आचार्य के संघ पर योजन चौड़ा और पांच सौ योजन ऊँचा है । इस कूट पर नीलक उपसर्ग किये थे। पापु० ७.३९-५६ देव रहता है। हपु० ५.७०१-७०२ श्रीवल्लभ-राजा कृष्णराज का पुत्र । यह शक सम्वत् सात सौ पाँच श्रीवृक्षलक्षण-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु. में राज्य करता था। हपु० ६६.५२ २५.१४४ भोवसु-कुरुवंशी एक राजा। यह राजा सुवसु का पुत्र तथा वसुन्धर श्रीवत-कुरुवंशी एक राजा । यह वृषध्वज का पुत्र और राजा व्रतधर्मा का पिता था । हपु० ४५.२६ का पिता था। हपु० ४५.२९ श्रीवास-जम्बूद्वीप के विजयाचं पर्वत की उत्तरश्रेणी का बयालीसा श्रीश-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.२११ नगर । मपु० १९.८४, ८७ श्रोशेल-(१) हनुमान का अपर नाम । यह नाम हनुमान के शैल पर्वत बीविजय-तीर्थकर शान्तिनाथ के प्रथम गणधर चक्रायुध के दसवें ___में जन्म लेने तथा विमान से गिरकर शिला को खण्ड-खण्ड करने से पूर्वभव का जीव-प्रथम नारायण त्रिपृष्ठ और रानी स्वयंप्रभा का अंजना और अंजना के मामा द्वारा रखा गया था। पपु० १७.४०२ज्येष्ठ पुत्र । विजयभद्र इसका भाई और ज्योतिः प्रभा बहिन थी। स्वयंवर में इसकी बहिन ज्योतिःप्रभा ने इसके साले अर्ककीर्ति के (२) एक पर्वत । यहाँ श्रीशैल नामधारी हनुमान आकर ठहरे थे। ४०३ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576