Book Title: Jain Puran kosha
Author(s): Pravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan
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संतान-संमान
जैन पुराणकोश : ४१९
संतान-देवलोक का एक पुष्प वृक्ष । इसके फूलों से देव माला का निर्माण
करते हैं । हपु० ८.१८९ संतानक-संतानवृक्ष के फूलों से बनी माला । यह माला प्रभास देव ने
लक्ष्मण को पहनायी थी। मपु० ६८.६५४ संतानवाद-तीनों काल में रहनेवाले स्कन्धों में कार्य-कारण भाव का
रहना संतानवाद कहलाता है । मपु० ६३.६२-६८ संत्रास-राम का पक्षधर एक विद्याधर राजा । पपु० ५८.५, ७ संषि-राजा के छः गुणों में प्रथम गुण । युद्ध करनेवाले दो राजाओं में मैत्री भाव हो जाना सधि कहलाती है। इसके दो भेद हैसावधि (अवधि सहित) और निरवधि (अवधि रहित)। मपु० ६८.
संध्या-(१) एक नगर । यहाँ का एक विद्याधर राम का पक्षधर था। पपु० ५५.२९-३०
(२) राजा कनक की रानी। विद्युत्प्रभा इसकी पुत्री थी । पपु० ८.१०५ संध्याकार-(१) लंका द्वीप का एक महारत्नों से पूर्ण उपद्रव रहित नगर । पपु० ६.६५-६६
- (२) एक राजा। रावण की दिग्विजय के समय यह भेंट लेकर रावण के पास गया था। रावण ने भी मीठी वाणी से इसे संतुष्ट किया था । पपु० १०.२४
(३) एक नगर । यहाँ राजा सिंहघोष की पुत्री हिडिम्बा का जन्म हुआ था। पापु० १४.२६-२९, हपु० ४५.११४ ।।
(४) लंका के पास स्थित एक द्वीप । यह समस्त भोगसामग्री से सम्पन्न और वन, उपवन से विभूषित था । पपु० ४८.११५-११६
(५) अमररक्ष के पुत्रों के द्वारा बसाये गये दस नगरों में एक नगर । पपु० ५.३७१-३७२ संध्याभ्र-(१) विजयाध पर्वत की दक्षिणश्रेणी का एक नगर । पपु० ३.३१३
(२) एक राक्षस । इन्द्र विद्याधर और रावण के बीच हुए युद्ध में इसने और इसके साथियों ने देवों की सेना को परास्त करके उन्हें
भयभीत कर दिया था। पपु० १२.१९७-१९८ संनिपात-तालगत गन्धर्व का आठवां प्रकार । हपु० १९.१५० संपरिकोति-राक्षस वंश का एक प्रधान पुरुष । यह राक्षस जितभास्कर
का पुत्र था। जितभास्कर इसे राज्य देकर मुनि हो गया था। अन्त में इसने भी अपने पुत्र सुग्रीव को राज्य सौंपकर दीक्षा ले ली थी।
पपु० ५.३८९ संप्रज्वलित-तीसरी मेघा पृथिवी के नौ प्रस्तारों में नौवें प्रस्तार का
इन्द्रक बिल । हपु० ४.८१,१२६ संभव-(१) अवसर्पिणी काल के तीसरे तीर्थकर । मपु० २.१२८, हपु० । १३.३१ दे० शम्भव-३
(२) जरासन्ध का पुत्र । हपु० ५२.३७ . संभिन्न-विजयाई पर्वत की दक्षिणश्रेणी में स्थित ज्योतिप्रभा नगरी का
राजा विद्याधर । सर्वकल्याणी इसकी रानी और दीपशिख पुत्र था। पोदनपुर के राजा श्रीविजय की रानी सुतारा के हरे जाने का समाचार राजा विजय को इसी ने दिया था । मपु० ६२.२४१-२६४,
पपु० ४.१५२-१६२ संभिन्नमति-(१) रावण का एक मंत्री। विभीषण ने इससे विचारविमर्श किया था । पपु० ४६.१९६-१९७
(२) तीर्थकर वृषभदेव के नौवें पूर्वभव का जीव-विजयार्द्ध पर्वत की अलकापुरी के राजा महाबल का मंत्री । यह मिथ्यात्वी होकर भी स्वामी का हितैषी था। इसने राजसभा में नास्तिक मत की सिद्धि की थी । अन्त में यह मरकर निगोद में उत्पन्न हुआ। मपु० ४.१९१
१९२, ५,३७-३८, १०.७ संभिन्नश्रोतृ-एक निमित्तज्ञानी। विजयाध पर्वत की उत्तरश्रेणी में
सुरेन्द्रकान्तार नगर के राजा विद्याधर मेघवाहन ने पुत्री ज्योतिर्माला के विवाह के संबंध में इन्हीं से परामर्श किया था । मपु० ६२.७१-७२,
८३-८४, पापु० ४.४०, वीवच० ३.७७-९५ संभिन्नश्रोतृबुद्धि-एक ऋद्धि । इससे नौ योजन चौड़े और बारह योजन
लम्बे क्षेत्र में फैले मनुष्य और तिर्यंचों के अक्षरात्मक और अनक्षरात्मक मिले शब्द भी एक साथ सुने जा सकते हैं । मपु० २.६७, ११.८० संभूत--(१) काशी नगरी का राजा । यह मुनि स्वतन्त्रलिंग का शिष्य
था । इसने अन्त में दोक्षा ले ली थी तथा मरकर यह कमलगुल्म विमान में देव हुआ । स्वर्ग से चयकर इसका जीव काम्पिल्य नगर में __बारहवाँ चक्रवर्ती ब्रह्मदत्त हुआ। पपु० २०.१९१-१९२
(२) प्रथम नारायण-त्रिपृष्ठ का पूर्वभव का गुरु । पपु० २०.२१६
(३) हरिवंशी राजा रत्नमाला का पुत्र और भूतदेव का पिता । पपु० २१.९
(४) राम के दीक्षागुरु । मपु० ६६.१२३
(५) विशाखनन्दी और विश्वनन्दी के दीक्षागुरु एक मुनि । मपु० ५७.७७-७८ संभूतरमण-एक वन । यहाँ ऐरावती नदी बहती थी। इस नदी के तट
पर इस वन में एक तपस्वियों का आश्रम था। तपस्वी कौशिक के ___ पुत्र मृगशृंग ने यहीं जन्म लिया था। मपु० ६२.३७९-३८० संभ्रमदेव-काशी नगरी का श्रावक । इसने अपनी दासी के कूट और
कार्पटिक दोनों पुत्रों को जिनमन्दिर में नियुक्त कर दिया था। पुण्य के प्रभाव से दोनों मरकर रूपानन्द और सुरूप नामक व्यन्तर देव
हुए । पपु० ५.१२२-१२३ संभ्रान्त-पहली धर्मा पृथिवी के तेरह प्रस्तारों में छठे प्रस्तार का छठा
इन्द्रक बिल । इस बिल की चारों दिशाओं में एक सौ छिहत्तर तथा विदिशाओं में एक सौ बहत्तर श्रेणीबद्ध बिल हैं । हपु० ४.७६,९४ संमति-रावण का सारथि । इन्द्र विद्याधर के स्वयं युद्ध में आने की
सूचना इसी ने रावण को दी थी । पपु० १२.२४८ संमद-आगामी दूसरा रुद्र । हपु० ६०.५७१ संमान-राम का हितैषो विद्याधर एक योद्धा । यह रावण की सेना
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