Book Title: Jain Puran kosha
Author(s): Pravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 463
________________ सोधु-सुकुम्भोज दिशा की ओर बहती है । क्षीरोदा और स्रोतोन्तर्वाहिनी तथा उत्तरविदेहक्षेत्र की गन्धमादिनी फेनमालिनी और ऊमिमालिनी ये नदियाँ इसी नदी में मिली है। मेरु दिशा में निषधाचल के पास इस नदी के दूसरे तट पर शाल्मलिवृक्ष है। मपु० ४.५१-५२, ६३.१९५, हपु० ५.१२३, २४१-२४२ (२) निषधाचल का सातवाँ कूट । हपु० ५.८९ (३) नील पर्वत का चौथा कूट । हपु० ५.१०० (४) विद्युत्प्रभ पर्वत का आठवाँ कूट । हपु० ५.२२३ सीधु-मद्यांग जाति के कल्प बृक्षों का रस । यह सुगन्धित और मिष्ठ होता है । इससे मदिरा बनाई जाती है। कामोद्दीपन की समानता होने से इसे उपचार से मद्य कहा जाता है । इसका सेवन भोगभूमि में उत्पन्न आर्य पुरुष करते हैं । मपु० ९.३७-३८ सीमंकर-(१) पांचवें कुलकर । ये चौथे क्षेमंधर कुलकर के पुत्र थे । इनके समय में कल्पवृक्षों की संख्या कम हो गयी थी। इसलिए इन्होंने प्रजा के लिए कल्पवृक्षों की सीमा निर्धारित की थी जिससे ये इस नाम से प्रसिद्ध हुए । इनकी आयु पल्य का लाखवा भाग थी। इनके पुत्र सीमंधर थे। मपु० ६.१०७-१११, पपु० ३.७८, हपु० ७.१५३१५५, पापु० २.१०५ (२) एक मुनि । ये जम्बूद्वीप के ऐरावतक्षेत्र में स्थित विध्यपुर नगर के राजा विध्यसेन के पुत्र नलिनकेतु के दीक्षागुरु थे। मपु० ६३.९९-१००, १०७-१०८ सीमन्त-एक पर्वत । हरिषेण चक्रवर्ती ने इसी पर्वत पर श्रीनाग मुनि के पास संयम धारण किया था। मपु० ६७.६१, ८४-८५ सीमन्तक-धर्मा पृथिवी का प्रथम इन्द्रक बिल । इसकी चारों दिशाओं में उनचास-उनचास और प्रत्येक विदिशा में अड़तालीस-अड़तालीस श्रेणिबद्ध बिल हैं । हपु० ४.७६, ८७, ८९ सीमन्धर-(१) छठे कुलकर । ये पांचवें सीमंकर कुलकर के पुत्र थे। इनकी नलिन प्रमाण काल की आयु थी। शरीर सात सौ पच्चीस धनुष ऊँचा था । इनके काल में कल्पवृक्ष बहुत कम रह गये थे। मपु० ३.११२-११५, पपु० ३.७८, हपु० ७.१५५, पापु० २.१०५ (२) तीर्थंकर शीतलनाथ का मुख्य प्रश्नकर्ता । मपु० ७६.५३० (३) तीर्थकर पद्मप्रभ के पूर्वभव के पिता । पपु० २०.२६ (४) पूर्व विदेहक्षेत्र के एक मुनि । पपु० २३.८, हपु० ४३.७९ सकक्ष-विजयाध पर्वत की दक्षिणश्रेणी का इकतीसवाँ नगर । हपु० २२.९७ सुकच्छ-(१) धातकीखण्ड द्वोप के पूर्व विदेहक्षेत्र का एक देश । यह सीता नदी के उत्तर-तट पर स्थित है । हपु० ५३.२ ।। (२) तीर्थकर वृषभदेव के चौहत्तरवें गणधर । हपु० १२.६८ सुकच्छा-पश्चिम विदेहक्षेत्र का एक देश । यह सीता नदी और नील कुलाचल के मध्य प्रदक्षिणा रूप से स्थित है। इसके छः खण्ड है। हपु० ५.२४५-२४६ सुकण्ठ-(१) भविष्यत् काल में होनेवाले पांचवें प्रतिनारायण । हपु० ६०.५७० जैन पुराणकोश : ४४५ (२) अश्वग्रीव प्रतिनारायण के छोटे भाई । ये मरकर असुर हए। मपु० ६३.३३-३५, पापु० ५.८-९ (३) विजया पर्वत के अरुण नगर का राजा। इसकी रानी कनकोदरी और पुत्र सिंहवाहन था । पपु० १७.१५४-१५५ सुकान्त-(१) वाराणसी नगरी के राजा अकम्पन और रानी सुप्रभादेवी का पुत्र । यह सुलोचना और लक्ष्मीमती का भाई था। मपु. ४३.१२४-१३५ (२) मृणालबतो नगरी के सेठ अशोकदेव और जिनदत्ता का पुत्र । इसका विवाह इसी नगरी में श्रीदत्त सेठ की पुत्री रतिवेगा से हुआ था। मपु० ४६.१०५, १०८, ४७.१०३,१०६ (३) चक्रवर्ती भरतेश का पुत्र । इसने जयकुमार के साथ दीक्षा ले ली थी। मपु० ४७.२८१-२८३ (४) व्याघ्रपुर नगर का राजा। इसको पुत्री शोला और पुत्र सिंहेन्द्र था । पपु० ८०.१७३-१७४ सुकान्ता-विजयाध पर्वत पर स्थित किन्नरगीत नगर के राजा चित्रचूल की पुत्री । इसका विवाह शुक्रप्रभ नगर के राजा इन्द्रदत्त के पुत्र ___ वायुवेग से हुआ था । मपु० ६३.९१-९३ सुकोति-कुरुवंशी एक राजा । इसके पिता और पुत्र दोनों का नाम कीर्ति था। हपु० ४५.२५ सुकुण्डली-धातकीखण्ड द्वीप के विजयाध पर्वत पर स्थित आदित्याभ नगर का राजा एक विद्याधर । इसकी स्त्री मित्रसेना और पुत्र मणिकुण्डल था । मपु० ६२.३६१-३६२ सुकुमार-कुरुवंशी चक्रवर्ती सनत्कुमार का पुत्र । पिता के दीक्षा लेने के पश्चात् राज्य इसे ही प्राप्त हुआ था। वरकुमार का यह पिता था । हपु०४५.१६-१७ सुकुमारिका-(१) ह्रीमन्त पर्वत के हिरण्यरोम तापस की पुत्री । इसका विवाह विजया पर्वत पर स्थित शिवमन्दिर नगर के राजा महेन्द्रविक्रम के पुत्र अमितगति के साथ हुआ था । हपु० २१.२२-२९ (२) धनदेव की स्त्री। कुमारदेव इसका पुत्र था। इसने सुव्रत मुनि को विष-मिश्रित आहार देकर मार डाला था, जिसके फलस्वरूप यह मरकर नरक गयो । हपु० ४६.५०-५२ सुकुमारी-चम्पापुर नगर के सुबन्धु सेठ और उसको स्त्री धनदेवी की पुत्री । इसके शरीर से दुर्गन्ध आती थी। इसी नगर का धनदत्त सेठ अपने ज्येष्ठ पुत्र जिनदेव का इससे विवाह करना चाहता था। जिनदेव इसकी दुर्गन्ध से अप्रसन्न होकर सुव्रत मुनि के पास दीक्षित हो गया था। इससे इसका विवाह जिनदेव के छोटे भाई जिनदत्त से हुआ। जिनदत्त ने भी इसे स्नेह नहीं दिया। अन्त में इसने आत्म निन्दा करते हुए शान्ति आर्यिका से दीक्षा ले ली और समाधिमरण करके अच्युत स्वर्ग में देवांगना हुई। स्वर्ग से चयकर यहो राजा द्रुपद की पुत्री द्रौपदी हुई। मपु० ७२.२४१-२४८, २५६-२५९, सुकुम्भोज-वैशालो नगरी के राजा चेटक और रानी सुभद्रा का छठा पुत्र । इसके धनदत्त, धनभद्र, उपेन्द्र, सुदत्त और सिंहभद्र ये वह Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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