Book Title: Jain Puran kosha
Author(s): Pravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 457
________________ सिंहनिष्क्रीडित-सिंहरथ (२) तीर्थङ्कर श्रेयांस की जन्मभूमि । महापुराण में श्रेयांसनाथ को जन्मभूमि का नाम सिंहपुर दिया है। पपु० २०.४७, दे० सिंहपुर-२ (३) राम का पक्षधर एक विद्याधर । इसने रावण के शौर्य की प्रशंसा करके राम की सेना को अनत्साहित करने का प्रयत्न किया था । पपु० ५४.२८ (४) एक अटवी । राम ने इसी अटवी में सेनापति कृतान्तवक्त्र से सोता को छोड़ आने के लिए कहा था। पपु० ९७.६३ सिंहनिष्क्रीडित-एक विशिष्ट तप। यह उत्तम, मध्यम और जघन्य के भेद से तीन प्रकार का होता है। जघन्य तप में साठ और बीस स्थानों की बीस पारणाएं की जाती हैं। उपवास निम्न क्रम में किये जाते हैं१, २, १, ३, २, ४, ३, ५, ४, ५, ५, ४, ५, ३, ४, २, ३,१, २, १, =६० मध्यम भेद में एक सौ त्रेपन उपवास और तैंतीस स्थानों की तैंतीस पारणाएँ करने का विधान है। ये उपवास निम्न क्रम में किये जाते है१, २, १, ३, २, ४, ३, ५, ४, ६, ५, ७, ६, ८, ७, ८, ९,८, ७,८, ६, ७, ५, ६, ४, ५३, ४, २, ३, १, २, १, १५३ उत्तम भेद में चार सौ छियानवें उपवास और इकसठ पारणाएँ की जाती है। उपवास निम्न क्रम में किये जाते है१, २, १, ३, २, ४, ३, ५, ४, ६, ५, ७, ६, ८, ७, ९,८,१०, ९, ११, १०, १२, ११, १३, १२, १४, १३, १५, १४, १५, १६, १५, १४, १५, १३, १४, १२, १३, ११, १२, १०, ११, ९, १०, ८, ९,७,८, ६, ७, ५, ६, ४, ५, ३, ४, २, ३, १, २, १४९६ मपु० ७.२३, हपु० ३३.१६६, ३४.५०, ७८-८३ सिंहपाव-एक मुनि । मथुरा का राजा मधु और उसका भाई कैटभ दोनों इन्हीं से धर्मोपदेश सुनकर मुनि हुए थे। पपु० १०९.१६४ १६८ सिंहपीठ-समवसरण में तीर्थंकरों के बैठने की आसन । मपु० २३.२५ ३०,२५.५६ सिंहपुर-(१) जम्बूद्वीप में मेरु पर्वत से पश्चिम की ओर विदेहक्षेत्र में स्थित गन्धिल देश का एक नगर । राजा वनजंघ चौथे पूर्व जन्म में यहाँ के राजा श्रीषेण का ज्येष्ठ पुत्र था । मपु० ५.२०३, ८.१८० (२) भरतक्षेत्र के शकट देश का एक नगर । तीर्थकर श्रेयांसनाथ की यह जन्मभूमि है । मपु० ५७.१७-१८, २१-२२, ३३ (३) जम्बूद्वीप के पश्चिम विदेहक्षेत्र में सीतोदा नदी के उत्तर तट पर स्थित सुगन्धिला, हरिवंशपुराण के अनुसार सुपद्मा देश का एक नगर । यहाँ का राजा अर्हद्दास था। मपु० ७०.४-५, हपु० ३४.३ सिंहपुरो-पूर्व विदेहक्षेत्र में सोतोदा नदी और निषध पर्वत के मध्य स्थित सुपमा देश को राजधानी । मपु० ६३.२१५, हपु० ५.२४९-२५०, २६१ जेन पुराणकोश : ४३९ सिंहबल-(१) लोहाचार्य के पश्चात् हुए आचार्यों में एक आचार्य । ये रत्नत्रय तथा ज्ञान लक्ष्मी से युक्त थे । हपु० ६६.२६ ___ (२) हस्तिनापुर के राजा पद्म का विरोधी राजा। पद्म ने इसे मंत्री बलि की सहायता से पकड़ा था । हपु० २०.१७ सिंहवाण-विद्यामय बाण । इससे गजबाण का नाश किया जाता था। मेघप्रभ ने सुनमि के द्वारा चलाये गये गजबाण का इसी बाण को चलाकर नाश किया था। मपु० ४४.२४२ सिंहभद्र-वैशाली नगरी के राजा चेटक और उनकी रानी सुभद्रा के दस पुत्रों में पांचां पुत्र । इसकी प्रियकारिणो आदि मात बहिनें थी। मपु०७५.३-७ सिंहयश-विद्याधर अमितगति तथा इसकी दूसरी रानी मनोरमा का ज्येष्ठ पुत्र । इसके छोटे भाई का नाम बाराहग्रीव थी। इसके पिता ने इसे राज्य देकर और इसके छोटे भाई को युवराज बनाकर दीक्षा ले ली थी। हपु० २१.११८, १२०-१२२ सिंहयान-विद्याधर वंश में हुआ एक राजा । यह राजा पद्मस्थ का पुत्र तथा राजा मृगोद्धर्मा का पिता था । पपु० ५.४९ सिंहरय-(१) एक विद्याधर । इसने कालसंवर विद्याधर के पांच सौ पुत्रों को युद्ध में पराजित किया था किन्तु अन्त में प्रद्युम्न के द्वारा पकडा लिया गया था । हपु० ४७.२६-२९ (२) सिंहपुर का राजा। राजगृह के जरासन्ध राजा ने इसे जीवित पकड़कर लानेवाले को जीवद्यशा पुत्री विवाहने की घोषणा की थी। वसुदेव ने कंस को साथ लेकर इसे जीवित पकड़ा था। हपु० ३३.२-११, पापु० ११.४२-४७ (३) राजगृह नगर का राजा। इसने भरतक्षेत्र के शाल्मलीखण्ड ग्राम की प्रजा का अपहरण करनेवाले चण्डबाण भील को मार कर प्रजा को बन्धनों से मुक्त कराया था । हपु० ६०.१११-११३ (४) कुण्डलपुर का राजा। इसके पुरोहित का नाम सुरगुरु था । मपु० ६२.१७८, पापु० ४. १०३-१०४ (५) विजयाध पर्वत की अलका नगरी के राजा विद्युदंष्ट्र विद्याधर और उसकी स्त्री अनिलवेगा का पुत्र। इसने अपने सुवर्णतिलक पुत्र को राज्य देकर धनरथ मुनि से दीक्षा ले लो थी। मपु० ६३. २४१, २५२-२५३, पापु० ५.६६ (६) जम्बूद्वीप के पूर्वविदेहक्षेत्र में वत्स देश की सुसीमा नमरी का राजा। इसने यतिवृषभ मुनि से धर्मोपदेश सुनकर और राज्यभार पुत्र को देकर संयम धारण कर लिया था । अन्त में यह सोलहकारण भावनाओं को भाते हुए तीर्थंकर प्रकृति का बन्ध कर और समाधि पूर्वक देह त्यागकर अनुत्तर विमान में उत्पन्न हुआ। वहाँ से चयकर यह कुन्थुनाथ तीर्थकर हुआ। मपु० ६४.२-१०, १४-१५, २३-२४ (७) तीर्थकर अरहनाथ के पूर्वभव का नाम । पपु० २०.२२ (८) इक्ष्वाकुवंशी अयोध्या के राजा सौदास और उसकी कनकाभा रानी का पुत्र । प्रजा ने राजा सौदास को उसके मांसाहारी हो जाने पर नगर से निकाल कर इसे राज्य सौंप दिया था। नगर से निकाले जाने पर महापुर नगर का राजा मर जाने के कारण प्रजा ने सौदास Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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